सच कहा भाईजी लेकिन मज़दूर को कंही भी नींद आ जाती है बरामदे में भी और लोगों को मकानों मे नींद के लिये गोली खाना पड़ता है।बहुत खूब कंही कोई और विचारधारा का जन्म तो नही हो रहा?
टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....
मेरे अजीजों, यही दस्तूर है मकानों का,
जवाब देंहटाएंबनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा॥
बहुत खुब जी
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंमेरे अजीजों, यही दस्तूर है मकानों का,
जवाब देंहटाएंबनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा॥
Baat bahut gahari hai, lekin ek kasak chod gai dil me....dhanywaad.
बनाने वाला हमेशा बरामदों में रहा॥
जवाब देंहटाएंबहुत सच्ची बात है ये अजय जी. आभार इतनी सुन्दर पंक्तियां पढवाने के लिये.
कितना सच कह रही हैं यह पंक्तियाँ.
जवाब देंहटाएंन जाने कितनी दर्द भरी कहानियां हैं इन चार पंक्तियों के पीछे
जवाब देंहटाएंचित्र भी उतना ही प्रभावशाली हैं जितना कि पंक्तियाँ
it is real fact of the life......
जवाब देंहटाएंसच कहा भाईजी लेकिन मज़दूर को कंही भी नींद आ जाती है बरामदे में भी और लोगों को मकानों मे नींद के लिये गोली खाना पड़ता है।बहुत खूब कंही कोई और विचारधारा का जन्म तो नही हो रहा?
जवाब देंहटाएंसच्चाई बताती हुई पंक्तियाँ...मकान बनाने वालों के पास ही खुद के मकान नहीं होते..
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