प्रचार खिडकी

मंगलवार, 23 मार्च 2010

२३ मार्च को कुछ ख़ास है क्या ???? हैप्पी शहीद डे यार !

देश के तीन सपूत जिन्हें आज देश भुला बैठा है
पापा, आज २३ मार्च को कुछ ख़ास है क्या ?

हाँ बेटा, तुम्हें नहीं पता , आज शहीद दिवस है। आज ही के दिन तो हमारे आजादी के कुछ दीवाने हँसते हँसते अंग्रेजों के फांसी के फंदे को फूल की माला की तरह गले में लपेट कर झूल गए थे। तुम्हें नहीं पता ये।

लेकिन पापा यदि ये इतना ख़ास है तो फ़िर चारों तरफ़ इसकी बात होनी चाहिए थी न, जब वैलेंताईन डे आता है तो उसके कितने पहले से ही हर तरफ़ उसकी चर्चा और खबरें रहती हैं , तो मैं क्या ये मानू की वैलेंताईन डे इस शहीद दिवस से ज्यादा महत्वपूर्ण है। और उस वैलेंताईन डे को मनाने और विरोध करने वालों की भी कितनी बातें होने लगती हैं, अब तो हम बच्चों के भी पता है उसके बारे में।

अरे बेटा इस शहीद दिवस को जब कोई मनाने को ही तैयार नहीं है तो इस बेचारे दिवस का विरोध करने की बात कहाँ से होगी। अच्छा तुम ये बताओ तुम शहीद तो जानते हो न क्या होता है।

हाँ पापा वे लोग जो अब भी, (आज जब समाज में बहुत कम ही लोग ऐसे हैं तो अपने बारे में सोचने के अलावा भी कुछ सोचते और करते हैं ) अपने बारे में अपने बाल बच्चों और अपने परिवार के बारे में न सोच कर सिर्फ़ देश के बारे में सोचते हैं। न सिर्फ़ सोचते हैं बल्कि अपना तन मन, प्राण सब कुछ देश पर न्योछावर कर देते हैं। और इस देश के लोग कुछ दिनों बाद उनका नाम तक भूल जाते हैं। सरकार उनके नाम पर कभी पेट्रोल पम्प घोटाला तो कभी कोई और घोटाला करती रहती है। उन्हें ही शहीद कहा जाता है।

खैर , वो छोडिये पापा आप ये बताइए, की उन शहीदों को फांसी पर क्यूँ टांगा था और किसने टांगा था।
अरे बेटा उस वक्त अंग्रेजों का राज था, हमारे वे बांके लोग जो दीवानों की तरह देश को आजाद करवाने के लिए सर पर कफ़न बाँध कर घूम रहे थे उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था। जब अंगरेजी हुकूमत उनसे बुरी तरह डर गयी तो उन्होंने उन क्रांतिकारियों को पकड़ कर फांसी दे दी.

बेटा आश्चर्य में डूब कर बोला, अच्छा पापा बताओ ये क्या बात हुई भला। मैं सोच रहा हूँ की यदि उस वक्त यही अभी वाली सरकार होती तो क्या उन्हें कोई फांसी दे सकता था , पर हाँ दे भी सकता था यदि उन्हें फांसी से बचाया जा सकता था तो उसकी एक ही सूरत थी की वे भी आतंकवादी होते, तब जरूर ही हमारी सरकार उन्हें कुछ नहीं कहती।


नहीं बेटे , यदि वे आज जीवित होते तो ख़ुद ही फांसी के फंदे में झूल गए होते । और इस तरह मैंने और मेरे बेटे ने शहीद दिवस मन लिया.

15 टिप्‍पणियां:

  1. "नहीं बेटे , यदि वे आज जीवित होते तो ख़ुद ही फांसी के फंदे में झूल गए होते ।"


    शत-शत नमन !

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  2. आज शहीद दिवस है। आज ही के दिन तो हमारे आजादी के कुछ दीवाने हँसते हँसते अंग्रेजों के फांसी के फंदे को फूल की माला की तरह गले में लपेट कर झूल गए थे।
    bilkul sahi

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  3. आज भगत सिंह जिन्दा होते तो खुद ही फंदे पर झूल गए होते ...
    बिलकुल सही कहा ....!!

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  4. वही यह भी सही है कि उनके अभिभावकों ने, शिक्षकों ने , समाज ने देशप्रेम की घूंटी पिलाई थी ...हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए क्या उदहारण प्रस्तुत कर रहे हैं .....??

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  5. शहीदों कि चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले ,
    वतन पर मर मिटने वालों का यही बाकि निशा होगा ।

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  6. "नहीं बेटे , यदि वे आज जीवित होते तो ख़ुद ही फांसी के फंदे में झूल गए होते ।"
    एक कटु सत्य कह दिया आपने मगर फिर भी हम तो नमन जरूर करेंगे।
    शहीदों को कोटि कोटि नमन्।

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  7. शहीदों को शत् शत् नमन!!
    आप ने बिलकुल सही लिखा है, ऎसी सरकार .....

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  8. बाज़ार उन्ही को याद रखता है जिनसे उसे फायदा होता है । मारक व्यंग्य । शहीद दिवस की एक रपट यहाँ देखें http://sharadakokas.blogspot.com

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  9. तीनो शहीदों को मेरा कोटि कोटि नमन,अजय जी ये दुनिया इनको माने या ना माने पर हम तो आज अपने ऑफिस में जरूर ये दिवस इनको श्रधांजलि देकर मनाएंगे ! जय भारत जय हिंद

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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