जाने कबसे अपने आसपास,
एक छद्म संसार बना रखा है ॥
हरकतों से पकडे जाते हैं, हैवानों ने भी,
इंसान का नकाब लगा रखा है ॥
कोई बेच रहा धर्म तो कोई शर्म और ईमान,
कईयों ने तो जीवन को ही दुकान बना रखा है ॥
बेदिली की ये इंतहा है यारों , माओं ने ,
कोख को बेटियों का शमशान बना रखा है ॥
कितनी बेकसी का दौर है ये , न दिल में जगह है, न घर में,
लोगों ने मां-बाप को भी मेहमान बना रखा है ॥
लपटें सी उठ रही हैं, शहर के हर घर से ,
इसीलिए,गांव में भी इक मकान बना रखा है ॥
अभी तो उंगलियों ने रफ़्तार नहीं पकडी है ,घरवालों की तोहमत
हमने चिट्ठों को ही अपनी संतान बना रखा है ॥
नए साल पर एक रिठेल ही हो जाए तो कोई बुराई तो नहीं , यही सोच कर टोकरी में पडा बासी माल फ़िर से परोस दिया है ..................जाने आपको इसका स्वाद कैसा लगता है ..????????????
बहुत उत्तम स्वाद है....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।
हमारे यहाँ मैथी, चना और अफीम की भाजी को सुखा कर डब्बों में बंद कर लिया जाता है। जिस मौसम में खास तौर पर गर्मी में जब हरी सब्जियाँ गायब हो जाती हैं तब उनकी सब्जी बना कर खाई जाती है। कुछ कुछ वैसा ही स्वाद इस रचना में भी मिला।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब भाई उम्दा ...
जवाब देंहटाएंदिनेश जी की बात ठीक है, हम भी भारत से सरसो का सांग, मेथी सुखे रुप मै ले आते है जिन्हे हमारे घर वाले ओर रिस्ते दार प्यार से देते है, ओर जब उन्हे हम यहां पकाते है तो साथ मै उन का प्यार भी याद आता है, आप की पोस्ट भी वेसी ही स्वाद वाली लगी.
जवाब देंहटाएंबढिया रिठेल है ।
जवाब देंहटाएं"लोगों ने मां-बाप को भी मेहमान बना रखा है"
जवाब देंहटाएंसच है! कई ऐसे भी हैं जिन्होंने मेहमान बनाने के बदले घर से ही निकाल रखा है।
आईना दिखाता हुआ हर लफ्ज़...और कवितायें कब से बासी होने लगीं??..पूरी टोकरी ही खाली कर डालिए....जायका बहुत उम्दा है
जवाब देंहटाएंरीठेल भी अच्छी है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे,
जवाब देंहटाएंअजय जी,
जवाब देंहटाएंपुराने चावल, पुराना गुड़ ज्यादा मजेदार होते हैं।
बहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।
बेदिली की ये इंतहा है यारों , माओं ने ,
जवाब देंहटाएंकोख को बेटियों का शमशान बना रखा है ॥
कितनी बेकसी का दौर है ये , न दिल में जगह है, न घर में,
लोगों ने मां-बाप को भी मेहमान बना रखा है ॥
बहुत खूब......सच्चाई बयां करती रचना.....बधाई
behtreen ajay ji......
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