मैं अब तक ,
ये समझ नहीं पाया कि ,
जब हमारे पास हैं
कितनी उंगलियां ,
जिन्हें मिला कर ,
हम हाथ बना लेते हैं ,
हमारी तो ,
आदत है कि ,
हम तो तस्वीरों से भी ,
हाथ मिला लेते हैं ,
तो फ़िर जाने क्यों ,
अक्सर लोग ,
हमपे अपनी ,बस ,
एक उंगली उठा देते हैं ॥
क्यूं यार क्यूं ......?????????.....मैं सोच रहा हूं ..... ॥
प्रचार खिडकी
शुक्रवार, 15 जनवरी 2010
जाने क्यूं ...????
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
aapka ishara kuch kuch samajh aa raha hei
जवाब देंहटाएंअजय भईया आपका इशारा समझ रहा हूँ , लेकिन ये लोग शायद आपकी सोच से बिल्कुल हट के हैं ।
जवाब देंहटाएंयही मैं भी सोचती हूँ...शायद सब सोचते हैं...क्यूँ आखिर क्यूँ ..:)..chill अजय जी..इतना दिल पे मत लीजिये
जवाब देंहटाएंअगूठा तो अंगूठा है, एक उंगली हमारी ओर है तो बाकी तीन उंगलियाँ खुद की ओर भी हैं।
जवाब देंहटाएंमैं भी सोच रहा हूँ।
जवाब देंहटाएंकुछ तो लोग कहेंगे..लोगों का काम है कहना
जवाब देंहटाएंइक रास्ता है ज़िंदगी ...जो थम गए वो कुछ नहीं ...
इसलिए चलते रहो..सतत चलते रहो
मै समझ गया, लो यह रही हमारी टिपण्णी, अरे अब भी ऊंगली दिखा रहे हो भाई, कोई बात नही फ़िर हम भी दिनेश जी से सहमत है..:)
जवाब देंहटाएंसमझ तो रहे हैं.. :)
जवाब देंहटाएंकुछ तो लोग उंगली करेंगे,
जवाब देंहटाएंलोगों का काम है उंगली करना,
छोड़ो बेकार की बातों को,
बस मन की कहते रहना...
जय हिंद...
दिनेश जी से सहमत.
जवाब देंहटाएंयह रचना अपसंस्कृति की दशा का वास्तविक चित्रण है।
जवाब देंहटाएंउंगली उठाने वलून की तरफ पूरा पंजा उठा दो!!
जवाब देंहटाएं