प्रचार खिडकी

शुक्रवार, 29 जनवरी 2010

भीड़ से भरी ये दुनिया,
फ़िर भी है जल्दी में दुनिया,
बेचैनी सी छाई ,
संसार में है,
मैं क्यों रहूँ,
परेशान,
कि जानता हूँ,
आज हर आदमी,
कतार में है॥

कोई खुशी -गम के,
कोई सुख-दुःख,
कोई लड़ रहा है,
जिंदगी से,
कोई मौत के,
इंतज़ार में है॥

कोई धारा के बीच,
कोई तूफानों में,
किसी को मिला,
मांझी का साथ,
किसी के सिर्फ़,
पतवार है हाथ,
सच है तो इतना,
हर कोई मंझधार में है॥

सबकी सीरत एक सी,
और सूरत पे,
अलग-अलग,
चढा हुआ नकाब है,
किसी एक की बात,
क्यों करें, जब,
पूरी कौम ही ख़राब है।
फर्क है तो ,
सिर्फ़ इतना कि,
कोई विपक्ष में है बैठा,
कोई सरकार में है॥

हर कोई आज किसी न किसी कतार में है , क्यों है न ????

10 टिप्‍पणियां:

  1. जीवन की सच्चाई को सच साबित करती एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।

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  2. भाई आज लोगों की भीड़ इस कदर बढ़ गई है की बिना कतार के कहाँ काम चलाने वाला...दमदार रचना..बढ़िया लगी...बधाई

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस रचना को पढ़ अपुन में भी कविता के किटाणु कुलकुलबुलाने लगे हैं...पेड़-पौधे....नदी-नाले सब भाने लगे हैं
    सुंदर रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत बेहतरीन रचना के लिए बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. सच्चाई को उकेरती बेहद उम्दा रचना लगी ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आज के समाज पर सटीक है यह रचना, धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. लगता है कि कहना बहुत कुछ चाहते हो लेकिन कह नही पा रहे हो

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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