भीड़ से भरी ये दुनिया,
फ़िर भी है जल्दी में दुनिया,
बेचैनी सी छाई ,
संसार में है,
मैं क्यों रहूँ,
परेशान,
कि जानता हूँ,
आज हर आदमी,
कतार में है॥
कोई खुशी -गम के,
कोई सुख-दुःख,
कोई लड़ रहा है,
जिंदगी से,
कोई मौत के,
इंतज़ार में है॥
कोई धारा के बीच,
कोई तूफानों में,
किसी को मिला,
मांझी का साथ,
किसी के सिर्फ़,
पतवार है हाथ,
सच है तो इतना,
हर कोई मंझधार में है॥
सबकी सीरत एक सी,
और सूरत पे,
अलग-अलग,
चढा हुआ नकाब है,
किसी एक की बात,
क्यों करें, जब,
पूरी कौम ही ख़राब है।
फर्क है तो ,
सिर्फ़ इतना कि,
कोई विपक्ष में है बैठा,
कोई सरकार में है॥
हर कोई आज किसी न किसी कतार में है , क्यों है न ????
फ़िर भी है जल्दी में दुनिया,
बेचैनी सी छाई ,
संसार में है,
मैं क्यों रहूँ,
परेशान,
कि जानता हूँ,
आज हर आदमी,
कतार में है॥
कोई खुशी -गम के,
कोई सुख-दुःख,
कोई लड़ रहा है,
जिंदगी से,
कोई मौत के,
इंतज़ार में है॥
कोई धारा के बीच,
कोई तूफानों में,
किसी को मिला,
मांझी का साथ,
किसी के सिर्फ़,
पतवार है हाथ,
सच है तो इतना,
हर कोई मंझधार में है॥
सबकी सीरत एक सी,
और सूरत पे,
अलग-अलग,
चढा हुआ नकाब है,
किसी एक की बात,
क्यों करें, जब,
पूरी कौम ही ख़राब है।
फर्क है तो ,
सिर्फ़ इतना कि,
कोई विपक्ष में है बैठा,
कोई सरकार में है॥
हर कोई आज किसी न किसी कतार में है , क्यों है न ????
bahut achha likha hai apne, kavita waqai khubsurat hai
जवाब देंहटाएंजीवन की सच्चाई को सच साबित करती एक बेहतरीन रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंभाई आज लोगों की भीड़ इस कदर बढ़ गई है की बिना कतार के कहाँ काम चलाने वाला...दमदार रचना..बढ़िया लगी...बधाई
जवाब देंहटाएंआपकी इस रचना को पढ़ अपुन में भी कविता के किटाणु कुलकुलबुलाने लगे हैं...पेड़-पौधे....नदी-नाले सब भाने लगे हैं
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
बहुत बेहतरीन रचना के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंसच्चाई को उकेरती बेहद उम्दा रचना लगी ।
जवाब देंहटाएंआज के समाज पर सटीक है यह रचना, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंलगता है कि कहना बहुत कुछ चाहते हो लेकिन कह नही पा रहे हो
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
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