प्रचार खिडकी

शनिवार, 16 जनवरी 2010

ताज्जुब है कि, ये , दुनिया फ़िर भी चलती है ॥

ताज्जुब है कि, ये ,
दुनिया फ़िर भी चलती है ॥

शहर की हर गली मैं, एक कोठी,
और इक झुग्गी मिलती है।
ताज्जुब है कि, ये ,
दुनिया फ़िर भी चलती है ॥


लखटकिया , फ़टफ़टिया, और सायकल,
लालबत्ती पर सारी रुकती है।
ताज्जुब है कि, ये ,
दुनिया फ़िर भी चलती है ॥


घर के एक कमरे से कातिल,
दूसरे से लाश निकलती है।
ताज्जुब है कि, ये ,
दुनिया फ़िर भी चलती है ॥


प्रेम , दोस्ती, रिश्ते की परिभाषा,
हर रोज़ बदलती है ।
ताज्जुब है कि, ये ,
दुनिया फ़िर भी चलती है ॥


गिरने के डर से ही, मैं नहीं दौडा,
वो रोज़ गिरती है, वो रोज़ संभलती है।
ताज्जुब है कि, ये ,
दुनिया फ़िर भी चलती है ॥


मैं समझ नहीं पाता, कैसे मेरे अन्दर,
प्यार भी पलता है, नफरत भी पलती है।
ताज्जुब है कि, ये ,
दुनिया फ़िर भी चलती है ॥



बेटा जिस कोख में मारे किलकारी,
बेटी के लिए उसमें मौत ही पलती है।
ताज्जुब है कि, ये ,
दुनिया फ़िर भी चलती है ॥


हाँ , और कमाल की बात है कि ये दुनिया तो फ़िर भी चलती ही रहेगी ............

18 टिप्‍पणियां:

  1. भाई बहुत बढ़िया बात उठाई आपने पर ताज्जुब करने की ज़रूरत नही है क्योंकि ये दुनिया ऐसे ही लोगों से चलती है जहाँ लोग बस स्वार्थ और लालच के मद से मस्त है..कुछ ही है जो जीने की सार्थकता और मनुष्य को मनुष्य समझते है..

    बढ़िया रचना..धन्यवाद भाई

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  2. हाँ , और कमाल की बात है कि ये दुनिया तो फ़िर भी चलती ही रहेगी ..........
    बहुत सही कहा !!

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रेम , दोस्ती, रिश्ते की परिभाषा,
    हर रोज़ बदलती है ।
    ताज्जुब है कि, ये ,
    दुनिया फ़िर भी चलती है ॥
    मर्मस्पर्शी पंक्तियों से सजी यह कविता दिल को छू गयी।

    जवाब देंहटाएं
  4. बेटा जिस कोख में मारे किलकारी,
    बेटी के लिए उसमें मौत ही पलती है।


    -उफ्फ!! झा जी, गज़ब की सन्नाट पंक्ति है..ओह!! छा गये...बहुत जबरदस्त और करारा है!!

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  5. बहुत से प्रश्न खड़े किए हैं इस रचना ने। दुनिया तो चलेगी ही। देखना है कि वह कैसे चलती है।

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  6. नदिया चले, चले रे धारा,
    चंदा चले, चले रे तारा,
    ओ तुझको चलना होगा, तुझको चलना होगा...

    जीवन कहीं भी ठहरता नहीं है,
    आंधी हो तूफां, ये थमता नहीं,
    तू न चला तो चल दे किनारा,
    बड़ी ही तेज़ समय की ये धारा,
    ओ तुझको चलना होगा, तुझको चलना होगा...

    जय हिंद...

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  7. बेटा जिस कोख में मारे किलकारी,
    बेटी के लिए उसमें मौत ही पलती है।
    ताज्जुब है कि, ये ,
    दुनिया फ़िर भी चलती है ॥

    yahi kalyug hai ji shayad ..isliye itna sab hai fir bhi dunia chalti hai....

    behad praabhvshali abhivyakti.

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  8. ताज्जुब है कि, ये , दुनिया फ़िर भी चलती है , लेकिन कितने ही सवाल छोड देती है अपने पीछे??

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  9. बहुत सही वर्णन किया है आपने दुनिया का. वाकई में इस दुनिया का चलना ऊपरवाला ही जानता हैं .

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  10. बस एक पंक्ति - आपकी रचना ने मन मोह लिया।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  11. दूसरे से लाश निकलती है।
    ताज्जुब है कि, ये ,
    दुनिया फ़िर भी चलती है ॥

    प्रेम , दोस्ती, रिश्ते की परिभाषा,
    हर रोज़ बदलती है ।
    ताज्जुब है कि, ये ,
    दुनिया फ़िर भी चलती है ॥ ...
    बहुत खूब.

    जवाब देंहटाएं
  12. ्चल रही है शायद इसीलिये दुनिया कहलाती है
    शान्दार कविता

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  13. कितने दिन ऐसे ही चलेगी पता नहीं!!!

    जवाब देंहटाएं
  14. ये दुनिया फिर भी चलती है (..और चलती रहेगी ..)
    बहुत अर्थपूर्ण प्रभावित करती रचना !

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  15. hakikat bayan kar di .......isse jyada kya kahun kyunki ye duniya hai chalti hai aur chalti rahegi.

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  16. जिसने बनाई है अब तो उसे भी आश्चर्य होता होगा कि यह चल कैसे रही है।

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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