सपने और फ़्रिज मे..क्या बात कही आपने..यही होता है..हाँ कभी कभी दिमाग के फ़्रीज़र की कैपेसिटी से ओवर हो जाते हैं सपने.. उम्मीद है कि मौसम बदलते ही फ़ॉइल पेपर से जल्द ही बाहर निकाल कर धूप मे लाये जायेंगेसपने ..
मौसम कितना भी बदले सपने नहीं पिघलेंगे फ्रिज के अंदर प्रकृति का नहीं इंसान का राज चलता है वहां पर कुछ नहीं पिघलता पिघलने लगता है तो हम चला लेते हैं इंवर्टर, जनरेटर वगैरह और फ्रिज के अंदर का मौसम नहीं बदलने देते।
सपनों को बाहर निकालिये आप सोच रहे होंगे कि बढ़ रहे होंगे अनुभव सपनों के पर सपने आपके सारे बर्फ में दफन हो रहे होंगे जिंदा तो रहेंगे पर वे आंखों में नहीं बस पायेंगे।
उन्हें आंखों में चाहते हैं बसाना तो पहले फ्रिज को बिजली देना बंद कीजिए जब किसी दिन धूप निकल आये इन कड़ाके की सर्दियों में भी तो उनकी एक पोस्ट बनाकर लगा दीजिए ब्लॉग पर ब्लॉग की आग यानी ऊष्मा से वे पनपेंगे, आंखों में खुशनुमा अहसास बिखेरेंगे।
तब ही सपनों का आना और फ्रिज का जाना सार्थक होगा सपने होंगे पल्लवित पुष्पित सारे ब्लॉग होंगे।
waah..........ye andaaz bhi bahut badhiya hai ..........aur freedge ka use bhi bahut achcha bataya hai.........magar sach mein aapki kavita kahin bahut gahri hai jo seedhe dil mein utar gayi upar jo kaha wo to sirf dillagi thi.
टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....
उन सपनो को ।
जवाब देंहटाएंफोंइल पेपर में,
लपेट कर,
फ्रिज में रख छोडा है,
मौसम जब बदलेगा,
और पिघलेगी बर्फ,
सपने फ़िर बाहर आयेंगे,
बिल्कुल ताजे और रंगीन.....
बहुत सुंदर पंक्तियाँ... फ्रिज में ताज़े भी रहेंगे....
सपने और फ़्रिज मे..क्या बात कही आपने..यही होता है..हाँ कभी कभी दिमाग के फ़्रीज़र की कैपेसिटी से ओवर हो जाते हैं सपने..
जवाब देंहटाएंउम्मीद है कि मौसम बदलते ही फ़ॉइल पेपर से जल्द ही बाहर निकाल कर धूप मे लाये जायेंगेसपने ..
भावावेग की स्थिति में अभिव्यक्ति की स्वाभाविक परिणति दीखती है।
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है.
जवाब देंहटाएंहालांकि मतभद है कि
सपनों को फ्रिज में डालना ठीक नहीं।
दिनेश जी से सहमत हु, अगर दिन भर बिजली चली गई तो???
जवाब देंहटाएंसपनें को फ्रीज करना...हम्म!! खैर, गरमी में देखा जायेगा!!
जवाब देंहटाएंठीक ही है सपने सोयें हुए हों और सुबह होने पर जग जाएँ !
जवाब देंहटाएंमौसम कितना भी बदले
जवाब देंहटाएंसपने नहीं पिघलेंगे
फ्रिज के अंदर
प्रकृति का नहीं
इंसान का राज चलता है
वहां पर कुछ नहीं पिघलता
पिघलने लगता है तो
हम चला लेते हैं
इंवर्टर, जनरेटर वगैरह
और फ्रिज के अंदर का मौसम
नहीं बदलने देते।
सपनों को बाहर निकालिये
आप सोच रहे होंगे कि
बढ़ रहे होंगे अनुभव सपनों के
पर सपने आपके सारे
बर्फ में दफन हो रहे होंगे
जिंदा तो रहेंगे
पर वे आंखों में नहीं बस पायेंगे।
उन्हें आंखों में चाहते हैं बसाना
तो पहले फ्रिज को
बिजली देना बंद कीजिए
जब किसी दिन धूप निकल आये
इन कड़ाके की सर्दियों में भी
तो उनकी एक पोस्ट बनाकर
लगा दीजिए ब्लॉग पर
ब्लॉग की आग यानी ऊष्मा से
वे पनपेंगे, आंखों में खुशनुमा
अहसास बिखेरेंगे।
तब ही सपनों का आना
और फ्रिज का जाना
सार्थक होगा
सपने होंगे पल्लवित
पुष्पित सारे ब्लॉग होंगे।
दिल्ली में तो इतनी सर्दी है कि सपनो को फ्रिज में रखने की ज़रुरत ही नहीं......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति......बधाई
waah..........ye andaaz bhi bahut badhiya hai ..........aur freedge ka use bhi bahut achcha bataya hai.........magar sach mein aapki kavita kahin bahut gahri hai jo seedhe dil mein utar gayi upar jo kaha wo to sirf dillagi thi.
जवाब देंहटाएंफोंइल पेपर में,
जवाब देंहटाएंलपेट कर,
फ्रिज में रख छोडा है,
फ्रिज में क्यों फ्रीजर में ही रख देते जनाव,
बहुत ही नया और नायाब ख्याल झा साहब !
सारगर्भित - अति सुंदर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति......बधाई
जवाब देंहटाएंजब दिमाग भी शांत और ठंडा हो जाता है तो वह फ्रिज की तरह ही हो जाता है तब सपने भी ऐसे ही आते है .. । बढ़िया रूपक है ।
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