होंठो को मना लूंगा मैं,वे मान भी जाएंगे,हमेशा की तरह,शिकायत को भी ,नहीं खुलेगें ,और मौन रहेंगे,एक दूसरे को ,जकडे हुए जबरन ,इन आखों का,क्या ये तो ,पलक झपकते ही ,सब देख लेती हैं ,और जो बंद ,हो भी जाएं तो ,जाते जाते सब ,कह जाती हैं ,मस्तिष्क को ,जिसके बंद होने पर ,सुना है कि,इंसान मर जाता है ॥
प्रचार खिडकी
शनिवार, 9 जनवरी 2010
होठों को मना लूंगा , पर आखों का क्या
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ बहुत सुंदर कविता....
जवाब देंहटाएंआप तो ऐसे ना थे ... मियाँ...ऐसी रचनाएँ कब से लिखने लगे? ....
जवाब देंहटाएंसुंदर...अति सुंदर
बहुत बोलती है तुम्हारी ये आंखें
जवाब देंहटाएंचलो इन पे पर्दे गिरा दें...
जय हिंद..
एक सुंदर अभिव्यक्ति..बेहद प्रभावशाली बात..सुंदर रचना..धन्यवाद अजय जी!!
जवाब देंहटाएंdil ko choo liya aapane.
जवाब देंहटाएंअरे वाह बहुत मस्त ओर सुंदर लिखा आप ने
जवाब देंहटाएंसच्चाई को चुप न रहने दीजिये
जवाब देंहटाएंइन आँखों को कहने दीजिये
सच को बयाँ नहीं करने से वाकई इंसान मर जाता है
बहुत खूबसूरत रचना
बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन। लाजवाब।
जवाब देंहटाएंहोठ चुप रह कर भी बोलते हैं और आँखें देखती ही नहीं बहुतत कुछ कहती भी हैं।
जवाब देंहटाएंजो होंठ न कह सकेंगे वो आँखें कह देंगी वैसे राजीव जी ने सही कहा है । शुभकामनायें आशीर्वाद --
जवाब देंहटाएंवाह ,अच्छी रचना.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंwaah bahut hi sundar bhavon se bhari rachna..........vaise dinesh ji ne bhi sahi kaha hai.
जवाब देंहटाएंkya baat hai? bahut khoob
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा आपने काश .....
जवाब देंहटाएंवाह .. वाह ... वाह ....
सच को बयाँ नहीं करने से वाकई इंसान मर जाता है
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना