जाने तेरी इन काली,मोटी,गहरी, आखों में,
कभी क्यों मेरे सपने नहीं आते,
तू तो ग़ैर है फिर क्यों करूं तुझसे शिक़ायत,
जब पास मेरे, मेरे अपने नहीं आते।
उन्हें मालूम है कि हर बार में ही माँग लूँगा माफी ,
इसलिए वो कभी मुझसे लड़ने नहीं आते।
जो शमा को पड जाये पता,कि उनकी रौशनी से,
परवाने लिपट के देते हैं जान, वे कभी जलने नहीं आते।
जबसे पता चला है कि यूं जान देने वालों को सुकून नहीं मिलता,
हम कोशिश तो करते हैं पर कभी मरने नहीं पाते।
जो कभी किसी ने पूछ लिया होता, मुझसे इस कलमज़ोरी का राज़,
खुदा कसम हम कभी यूं लिखने नहीं पाते।
पर किसी ने कभी पूछा नहीं इसलिए लिखे चले जा रहे हैं .
प्रचार खिडकी
रविवार, 17 जनवरी 2010
जब पास मेरे ........मेरे अपने नहीं आते !!!
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उन्हें मालूम है कि हर बार में ही माँग लूँगा माफी ,
जवाब देंहटाएंइसलिए वो कभी मुझसे लड़ने नहीं आते....
bahut khoobsoorat.
waah .........bahut khoob.
जवाब देंहटाएंkoi puche chahe na puche magar aap likhte jaiye aur hum padhte jayenge.
कलमकार की तमन्ना होती की बस यूं ही कलम चलती रहे ..... बहुत बढ़िया भाव
जवाब देंहटाएंसुंदर, बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंजो कभी किसी ने पूछ लिया होता, मुझसे इस कलमज़ोरी का राज़,
जवाब देंहटाएंखुदा कसम हम कभी यूं लिखने नहीं पाते।
वाह,बहुत बढिया ।
बहुत खूब भाई !
जवाब देंहटाएंअच्छी बात कही,,,,,,,,,,,,,,,,
ग़जब! इस विधा में भी आप निष्णात हैं।
जवाब देंहटाएं@ मोटी आँखें
ऊपी या बिहार वाला भैया 'बड़ी' कहता। भाभी जी का असर है!
@जबसे पता चला है कि यूं जान देने वालों को सुकून नहीं मिलता,
हम कोशिश तो करते हैं पर कभी मरने नहीं पाते।
जो कभी किसी ने पूछ लिया होता, मुझसे इस कलमज़ोरी का राज़,
खुदा कसम हम कभी यूं लिखने नहीं पाते।
इतनी तिक्तता क्यों ?
________________________
माना कि ग़म हैं, सही हैं, सामने भी हैं
हालात पर क्या करें शिकायत, कुछ कह नहीं पाते।
कहें भी क्या जो देख ली तुम्हारी ये ग़जल
मुस्कान जिन्दा जो है,यूँ मायूस सूरत सह नहीं पाते।
जबसे पता चला है कि यूं जान देने वालों को सुकून नहीं मिलता,
जवाब देंहटाएंहम कोशिश तो करते हैं पर कभी मरने नहीं पाते।
kamaal ka likha hai... ab raaz bata bhi diziye.. :)
Jai Hind...
आते तो होंगे
जवाब देंहटाएंपर वो काली मोटी
आंखें बताती नहीं होंगी।
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंएकदम चकाचक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा आपने. बधाईयाँ .
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना जी
जवाब देंहटाएंअरे!...आपके इस हुनर के बारे में तो पता ही ना था...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
ajay ji shayed maine to pehli baar aapki kalam ka ye rang dekha hai..pehli baar apki gazel padhi..bahut acchhi likhi hai..lekin...
जवाब देंहटाएंजो शमा को पड जाये पता,कि उनकी रौशनी से,
परवाने लिपट के देते हैं जान, वे कभी जलने नहीं आते।
ye line samajh me nahi aayi...
jo parwane ko pad jaye pata ki shama ki raushni se...vo lipat ke jaan se jate hai, ve kabhi jalne nahi aate....ye shayed u honi chaahiye....agar me galat hu to pls. samjha dijiye...gustakhi maaf ho.
मर के भी चैन कहां हम पाएंगे...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंआदरणीय अनामिका आपका बहुत बहुत धन्यवाद , निश्चित ही आपने उन दो पंक्तियों को मुझ से बेहतर लिखा । आभार
जवाब देंहटाएंजाने तेरी इन काली,मोटी,गहरी, आखों में,
जवाब देंहटाएंकभी क्यों मेरे सपने नहीं आते,
तू तो ग़ैर है फिर क्यों करूं तुझसे शिक़ायत,
जब पास मेरे, मेरे अपने नहीं आते।
वाह, बहुत खूब , अति सुन्दर !
क्या बात कही झा साहब। बहुत खू़ब।
जवाब देंहटाएंअरे!...आपके इस हुनर के बारे में तो पता ही ना था...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...