रोज़ दिखते हैं,
ऐसे मंज़र कि,
अब तो ,
किसी बात पर ,
दिल को,
हैरानी नहीं होती॥
झूठ और फरेब से,
पहले रहती थी शिकायत,
पर अब उससे कोई,
परेशानी नहीं होती॥
रोज़ करता हूँ ,
एक कत्ल,
कभी अपनों का,
कभी सपनो का,
बेफिक्र हूँ ,
गुनाहों कि फेहरिस्त,
किसी को दिखानी नहीं होती॥
लोग पूछते हैं,
बदलते प्यार का सबब,
कौन समझाए उन्हें,
रूहें करती हैं, इश्क,
मोहब्बत कभी,
जिस्मानी नहीं होती॥
सियासतदान जानते हैं,
कि सिर्फ़ उकसाना ही बहुत है,
शहरों को ख़ाक करने को, हर बार,
आग लगानी नहीं होती॥
पाये दो कम ही सही,
पशुता में कहीं आगे हैं,
फितरत ही बता देती है,
नस्ल अब किसी को अपनी,
बतानी नहीं होती॥
प्रचार खिडकी
शुक्रवार, 22 जनवरी 2010
गुनाहों कि फेहरिस्त, किसी को दिखानी नहीं होती
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
नज्म बहुत खूबसूरत है। कितनी भी बधाइयाँ कम पड़ेंगी।
जवाब देंहटाएंरोज़ करता हूँ ,
जवाब देंहटाएंएक कत्ल,
कभी अपनों का,
कभी सपनो का,
बेफिक्र हूँ ,
गुनाहों कि फेहरिस्त,
किसी को दिखानी नहीं होती॥
लोग पूछते हैं,
बदलते प्यार का सबब,
कौन समझाए उन्हें,
रूहें करती हैं, इश्क,
मोहब्बत कभी,
जिस्मानी नहीं होती॥
वाह झा साहब बहुत खूब ,
कल से तो आप लगातार कातिलाना हमले कर रहे है !
insaan jaanvaro se do pair kam jarur rakhta hi lekin, pashuta kewal insaan ka hi gun hai.
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna...
shubhkaamanaayein...
हमने लगाना चाहा था प्रेम का शजर
जवाब देंहटाएंइम्तिहान-ए-मुहब्बत मे था इक कहर
मामला संगीन हुआ रखने लगे खंजर
पता नही कब दिखाएं लहुलुहान मंजर
जय हो झा जी-
हमको तो इतना ही आया बस
bahut khoob likhaa aapane .
जवाब देंहटाएंभाई जब इतना अच्छा लिखते हो तो क्यों यूं ही इधर उधर समय गंवाते रहते हो :)
जवाब देंहटाएंझूठ और फरेब से,
जवाब देंहटाएंपहले रहती थी शिकायत,
पर अब उससे कोई,
परेशानी नहीं होती॥
बहुत सुंदर रचना लगी
धन्यवाद
काजल भाई , इधर उधर से आपका मंतव्य क्या है मैं ठीक ठीक समझा नहीं अलबत्ता ईशारा तो समझ रहा हूं कि ये शायद आपने चर्चा के लिए कहा है , मगर खुल कर कहते तो बात ठीक समझ में आ जाती , हां तारीफ़ के लिए शुक्रिया आपका
जवाब देंहटाएंअजय कुमार झा
तीखे व्यंग्यों से सुसज्जित एक खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंगजब की बेहतरीन रचना उतारी!!
जवाब देंहटाएंजबरदस्त!!
bhut hi behtreen rachna ajay ji smaaj ki vyavstaao se aahat antraatma ki aavaaj
जवाब देंहटाएंsaadar
praveen pathik
997196984
बहुत सुन्दर रचना है । यथार्थ को दर्शाती हुई । बधाई ।
जवाब देंहटाएं