प्रचार खिडकी

शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

जाने क्यूं ...????




मैं अब तक ,
ये समझ नहीं पाया कि ,
जब हमारे पास हैं
कितनी उंगलियां ,
जिन्हें मिला कर ,
हम हाथ बना लेते हैं ,
हमारी तो ,
आदत है कि ,
हम तो तस्वीरों से भी ,
हाथ मिला लेते हैं ,
तो फ़िर जाने क्यों ,
अक्सर लोग ,
हमपे अपनी ,बस ,
एक उंगली उठा देते हैं

क्यूं यार क्यूं ......?????????.....मैं सोच रहा हूं ..... ॥

12 टिप्‍पणियां:

  1. अजय भईया आपका इशारा समझ रहा हूँ , लेकिन ये लोग शायद आपकी सोच से बिल्कुल हट के हैं ।

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  2. यही मैं भी सोचती हूँ...शायद सब सोचते हैं...क्यूँ आखिर क्यूँ ..:)..chill अजय जी..इतना दिल पे मत लीजिये

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  3. अगूठा तो अंगूठा है, एक उंगली हमारी ओर है तो बाकी तीन उंगलियाँ खुद की ओर भी हैं।

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  4. कुछ तो लोग कहेंगे..लोगों का काम है कहना
    इक रास्ता है ज़िंदगी ...जो थम गए वो कुछ नहीं ...
    इसलिए चलते रहो..सतत चलते रहो

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  5. मै समझ गया, लो यह रही हमारी टिपण्णी, अरे अब भी ऊंगली दिखा रहे हो भाई, कोई बात नही फ़िर हम भी दिनेश जी से सहमत है..:)

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  6. कुछ तो लोग उंगली करेंगे,
    लोगों का काम है उंगली करना,
    छोड़ो बेकार की बातों को,
    बस मन की कहते रहना...

    जय हिंद...

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  7. यह रचना अपसंस्कृति की दशा का वास्तविक चित्रण है।

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  8. उंगली उठाने वलून की तरफ पूरा पंजा उठा दो!!

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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