प्रचार खिडकी

मंगलवार, 12 जनवरी 2010

जो मौन रहे , आखिर समय,, क्यों लिखेगा उनका अपराध ?




जो मौन रहे , आखिर समय,
क्यों लिखेगा उनका अपराध ?
क्यों यही विकल्प कि बनो, ग्राह्य,
या नहीं तो बन जाओ व्याध ॥

क्यों करूं व्यर्थ उर्जा अपनी,
क्यों रहूं न मैं बस मौन साध ?
हर जगह ही तो मुखर ही हूं ,
आरोपी किनका, बस एक आध ?

हो यदि तुम मुझसे और मैं तुमसा,
तो क्यों समझा मुझको अपवाद ??
अपने तूणीरों से निकाल रहे हैं विषबाण,
और रहे नित नए जो निशाने साध ॥

मुझसे पहले निश्चित ही ,
समय लिखेगा उनका अपराध,
मैं मौन रहूं ,या रहूं मुखर ,
मेरी शब्द यात्रा अवश्य चलेगी निर्बाध॥

26 टिप्‍पणियां:

  1. हो यदि तुम मुझसे और मैं तुमसा,
    तो क्यों समझा मुझको अपवाद ??
    अपने तूणीरों से निकाल रहे हैं विषबाण,
    और रहे नित नए जो निशाने साध ॥
    सही कहा ।

    जवाब देंहटाएं
  2. सही बात है भाई हर जगह थोडे ही अपुन को फटे मे पाव अडाना चाहिये. आपने बढिया लिखा तो आ गये टिपियाने अब कोई रोक सके तो रोक ले अपुन तो कहेन्गे बहुत बढिया लिखा है आपने.

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  3. कोई वार पर तुरंत प्रहार करता है
    कोई उचित समय का ईंतजार करता है
    जो खडा है साक्षी बनकर रण क्षेत्र मे
    इतिहास उसका भी सत्कार करता है

    हो सके अपराधी कोई नही
    या तो फ़िर सभी बधिक है
    जिसको जो लिखना लिखे
    हम तो राह के पथिक हैं

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  4. ललित भाई बहुत सुन्दर बात कही है

    जवाब देंहटाएं
  5. मुझसे पहले निश्चित ही ,
    समय लिखेगा उनका अपराध,
    मैं मौन रहूं ,या रहूं मुखर ,
    मेरी शब्द यात्रा अवश्य चलेगी निर्बाध॥

    बहुत बढिया...

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  6. मैं मौन रहूं ,या रहूं मुखर ,
    मेरी शब्द यात्रा अवश्य चलेगी निर्बाध॥


    -बिल्कुल जी!! अनेक शुभकामनाएँ.

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  7. बढिया रचना .. ललित जी ने भी अच्‍छी बातें कही !!

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  8. वाह-वाह। वहुत अच्छा। बहुत सही। आपको धन्यवाद।

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  9. कौन सुनेगा, किसको सुनको,
    इसलिए चुप रहते हैं...

    आपको लोहड़ी और मकर संक्रांति की बहुत बहुत बधाई...

    जय हिंद...

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  10. आपकी रचना के साथ ही ललित ने भी सही व बहुत बढ़िया कहा |

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  11. क्यों करूं व्यर्थ उर्जा अपनी,
    क्यों रहूं न मैं बस मौन साध ?

    हमेशा नही लेकिन कभी कभी मौन रहना उचित होता है

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  12. अब समय है कि मुखर होना ही पड़ेगा ।

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  13. मौन रहूं ,या रहूं मुखर ,
    मेरी शब्द यात्रा अवश्य चलेगी निर्बाध॥


    बहुत सुन्दर और शुभकामनाये !

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  14. अजय जी दिल को छू जाती हुई लायन
    जो मौन रहे , आखिर समय,
    क्यों लिखेगा उनका अपराध ?
    क्यों यही विकल्प कि बनो, ग्राह्य,
    या नहीं तो बन जाओ व्याध
    कर्तव्य विमूढ़ सा हूँ की क्या लिखूं सच में बस यही कहूँगा ,,
    हम तटस्थ ही सही , भले इतिहास नहीं होगा ,
    जब चाहे बोले चाहे जब मौन व्यर्थ उर्जा हास नहीं होगा
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  15. हो यदि तुम मुझसे और मैं तुमसा,
    तो क्यों समझा मुझको अपवाद ??
    अपने तूणीरों से निकाल रहे हैं विषबाण,
    और रहे नित नए जो निशाने साध ॥
    सही लिखा है आपने अच्छी रचना के लिये बधाई

    जवाब देंहटाएं
  16. वाह-वाह। वहुत अच्छा। बहुत सही। आपको धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  17. मौन रहने वालों का कब इतिहास लिखा गया है? बस मौन समाज का अवश्‍य इतिहास लिखा गया है। जैसे आज हम है, कल अवश्‍य कहेगा कि कैसा तो यह समाज था, कोई प्रतिक्रिया ही नहीं करता था। अच्‍छा लिखा है, आपने।

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  18. वाह वाह ये कवि रूप तो आज ही देखा...अच्छे शब्द दिए हैं,मनोभावों को...हाँ विषबाण से तो मौन लाख दर्जे बेहतर है....सुन्दर रचना

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  19. बिल्कुल दुरुस्त विचार है। शुभकामनाएं।

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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