कैसे समय बीतते बीतते ठीक उसी जगह पर पहुंच जाता है....जहां से चलना शुरू करता है.....ऐसा लगता है जैसे अभी तो हिंदी दिवस बीता था....और अब बिना कुछ बदले...कुछ नया हुए....कुछ अलग हुए....फ़िर आ गया....ऐसा थोडी होता है....कम से कम ...त्रेता से द्वापर तक का समय तो मिलना ही चाहिये....तभी तो कुछ कर पायेंगे हिंदी के लिये....आखिर ..पूरे सवा या उससे भी ज्यादा लोगों को समझाना है कि हिंदी ही ......हमारी राष्ट्र भाषा है ...हमारी अपनी भाषा है....कम से कम वो एक इकलौती भाषा ....जिसके दम पर अपने इतने बडे देश में ..हम निश्चिंत होकर घूम सकते हैं....कि चलो कम से कम बतिया तो लेंगे ही सबसे ....न सही ..अपनी बात तो कह ही लेंगे......और यदि आज हिंदी दिवस के बहाने इसे दोबारा याद कर लिया जाये....कुछ देर आपस में बैठ कर हिंदी में बोल बतिया लेने से इसका रत्ती भर भी भला हो पाता है ...तो यही सही.....
हालांकि मुझे हमेशा ही इस बात से सख्त ऐतराज़ रहा है कि ....बहुत से लोग कहते हैं कि हिंदी कमज़ोर होती जा रही है.....इसकी सेहत की चिंता जाने कैसे कैसे ....कितनी जगह पर की जाने लगती है....और इस हफ़्ते...महीने में तो खास तौर पर इसे ..पल्स पोलियो ड्रोप्स पिलाने की तैयारी की जाती है....मैं तब सोचने लगता हूं.....ये अपनी हिंदी कमज़ोर कैसे हो गयी....बचपन से आज तक तो इसे वैसे ही ...सेहत मंद देखा है....घर से लेकर बाहर तक...दोस्त से लेकर दुश्मन तक.....गाने से लेकर ...रोने तक...और छोडने से लेकर ..लपेटने तक...सिर्फ़ हिंदी ही हिंदी दिखी मुझे तो ...दिखी क्या अब भी वही दिखती है.....मेरा दूध वाला.....मेरा सब्जी वाला.....मेरा मिस्त्री....मेरा ..अरे किस किस का नाम लूं सब के सब ....हिंदी मे ही बात करते हैं....अपनी उधारी भी हिंदी में ही वसूलने आते हैं....और खुदा ना खास्ता ...जब किसी बहाने पर उन्हें यकीन नहीं होता....तो ससुरे ...कोसते...गलियाते भी हिंदी में ही हैं.....कितनी बार कहा है..कि यार कम से कम गाली तो ........मगर न जी....पूछा भी कि अबे.....ये हिंदी दिवस लगता तुम लोगों के लिये ही मनाया जाता है....वे कहने लगे...कौन सा दिवस...कौन सी रात्रि....हम लोग तो यही बोलते समझते हैं....हमने मन ही मन कहा बेवकूफ़ कहीं के....कहां तो सरकार इनके लिये इत्ते पैसे खर्च कर रही है....और इन्हें पता तक नहीं.......क्या कहा इनके लिये थोडी कर रही है......तो फ़िर.....?
ओह तो उनके लिये.....जो टीवी....रेडियो....और अपने...इंटर्व्यू में...इंग्रेजी छांटते हैं...धत तेरे की....अपनी जनसंख्या में...वे लोग हैं ही कितने जी...मुट्ठी भर भी नहीं....उनके लिये इत्ता सारा ....और हमने तो सुना है कि ई सब बडका लोग भी ....अपने घर में...अपने धोबी, माली, नौकर, चाकर, ...सबसे हिंदी में ही...मतलब आ जाते हैं अपनी औकात पर ..........धत तेरे कि....यही सच है जी...
चलते चलते ...एक बात .....कल परसों जब मेरे कार्यालय में ...हिंदी कार्यशाला का आयोजन किया गया....तो जो हमारी कार्यशाला को संचालित करने आये थे....उन्होंने एक बात कही जो मेरे मन को बहुत ही गहरे तक प्रभावित कर गयी.....उनका कहना था.....संसक्रत (यदि किसी को बराहा में व्रित...प्रव्रति आदि लिखना पता हो तो बतायें...अब तो आप समझ ही गये होंगे..संस्क्रत ऐसे क्यों लिखा )....जो सभी भाषाओं की जननी यानि मां है...उसकी सेवा तो हम नहीं कर पा रहे हैं.....मगर कम से कम बेटी ...हिंदी की सेवा का जो मौका मिला है ..उसे तो कर ही सकते हैं...चाहे जिस रूप में भी हो....चाहे जिस तरह से भी हो......आने वाले बच्चों को हमें ये एह्सास कराना ही होगा कि ...हिंदी हमारी....हमारे परिवार की...देश की..समाज की ताकत है....उनकी अपनी ताकत है...
मेरी कोशिश जारी है.........................................और आपकी................................