प्रचार खिडकी

रविवार, 28 दिसंबर 2014

कुछ बिखरे सिमटे आखर
















 



शनिवार, 27 दिसंबर 2014

कुछ शब्द चित्र ...


....... फ़ोटो खींचने और सहेज़ने की स्वाभाविक सी आदत कब शौक बन गई पता ही नहीं चला , अब उन सहेज़ी गई फ़ोटो को "शब्द-चित्रों" के रूप में प्रस्तुत करने का एक प्रयास किया है .............











बुधवार, 17 सितंबर 2014

जो भी हुआ , सरेआम हुआ है




तेरे ही रहे चर्चे पिछले दिनों , सुना बडा नाम हुआ है ,
हथकंडे चलते रहे थे जहां ,अबकि फ़ैसला-ए-अवाम हुआ है ॥


हर रोज़ लिखे जाते हों कानून के नए मसौदे जहां ,
काट दे थानेदार चालान बीवी का , लोगों ने कहा बडा काम हुआ है ॥


सुनो व्हाट्सअप को ही दुनिया मानने समझने वालों ,
आउटडेटेड होकर इन सबका , बस एक सा अंजाम हुआ है ॥


लल्लन चौकीदार के पास भी अब एंड्रॉयड है ,वाई फ़ाई के साथ ,
ससुरा कंप्यूटर बना मोबाइल ,समझिए तो चिनिया बदाम हुआ है ॥


ये वो दौर है, जब बस्तियां जला कर ,वो रौशनी चाहते हैं ,
देखेंगी तबाही,जाने कौन सी नस्लें ,किस्सा कई बार यूं तमाम हुआ है ॥


वो जो कुदरत है , बेपर्दा, बेशर्म , बेगैरत और बेदर्द सी ,
कहर बरपाया कयामत बनके टूटा ,जो भी हुआ , सरेआम हुआ है ॥


देश की राजनीति करवटें बदल रही है अंगडाइयां लेकर ,
तुम देखते जाओ कि देश बदल के दिखाएंगे , अभी तो शुरू काम हुआ है ॥



यार तू तो आया था आगे , लडने लडाई हर आदमी आम की ,
बस उंगलिया उठाते दूसरों पर , धत तू भी अब इक आदमी आम हुआ है ॥




बाज़ार को आदत पड गई थी सीढियों सी चढने की धपाधप ,
कैलकुलेटर में नई बैट्री डली तो, अबे पेट्रोल का भी कम दाम हुआ है ॥



नदी पहाडों और जंगलों के बीच पला बढा  हुआ देश इक ,
दूर हुआ इतना , वो बदले पे उतारू , अब मचा कोहराम हुआ है ॥

बुधवार, 23 अप्रैल 2014

दिल थाम के बैठना सामने चुनाव है







हम जानते हैं तुम जिस देस के वासी हो ,
उस देश को अर्से से इस खेल का चाव है ,

दिल थाम के बैठना सामने चुनाव है ॥

बडे भोले हो ओ बाउजी , फ़न्ने बने फ़िरते हो ,
वो पपलू बनाए जा रहे हैं ,पप्पू सा स्वभाव है ,

दिल थाम के बैठना सामने चुनाव है

साला मुर्गा टंगा है उलटा अस्सी रुपए में,
एक किलो टमाटर  होता सौ का भाव है ॥

दिल थाम के बैठना  सामने चुनाव है॥

न साले घोषणा बंद करते हैं न बोलना ही ,
गरीब के मेनिफ़ेस्टो में अब भी वडा पाव है,

दिल थाम के बैठना  सामने चुनाव है॥


बडे जिगरे वाले बनते हो लकतेजिगर बे ,ऐसा क्या ,
उत्ता तो कलेजा ही बडा नहीं,जित्ता बडा कलेजे पे घाव है ॥

दिल थाम के बैठना  सामने चुनाव है ॥

कभी कूका करते थे मोर पपीहे बागों में, अबे होंगे ,
आजकल हर बाग में उल्लू कौवों की कांव कांव है,

दिल थाम के बैठना सामने चुनाव है ॥

इहां पब्लिक का लुटिया गोल है खटते पिटते,
मुदा हाकिम के थर्मामीटर में ,ताप का बढाव है ,

दिल थाम के बैठना सामने चुनाव है

जरा पूछ के देखिए डोरेमॉन से , यही कह है केनिची से,
बेशक जीजा हमें " एक्सीडेंटल" मिले , दीदी में ठहराव है

दिल थाम के बैठना सामने चुनाव है

हर किसी के पास है , किसी ने छुपा रखी है आस्तीनों में ,
तो कोई मूंछों पे टिका के एक छप्पन ,दे रहा ताव है

दिल थाम के बैठना सामने चुनाव है

रविवार, 2 मार्च 2014

आईने खुद बखुद संवर जाएंगे





किताबों में बनके रहे , सूखे हुए गुलाबों की तरह ,
सिर्फ़ देखना , जो छूने की कोशिश की , टूट के बिखर जाएंगे ॥

सिमटा रहने दे हमें , अपनी यादों के बंद एलबम में ,
जो पलट के देखा तस्वीरों को , अश्क बनके आंखों में उतर जाएंगे॥

एक तू, एक मैं ही नहीं , जिस पर समय ने ढाए सितम ,
तुझे ये लगा ही क्यूं , कि  अबकि वक्त के ये पहिए ठहर जाएंगे ॥

गरीब सो न सका जो फ़ुटपाथ पर , रहा रात इस फ़िक्र में ,
हाकिम ने भेजा संदेशा, नए सपने दिखाने , उसके घर आएंगे ॥

अब तो मौसम हुआ है , सडकों , मैदानों , दालानों का ,
रुत बदलते ही फ़िर टीवी , या बाइस्कोप में ही नज़र आएंगे ॥

कुछ अब भी जद्दोज़हद में है , जांच और परख की ,
मगर कशमकश भी बची है कहां , इधर जाएंगे या उधर जाएंगे ॥

क्यूं कोसते रहें आइनों को , कि जब चेहरे खुद बेइमान हैं ,
पहले हटाया जाए निशानों को तेज़ाब से , आइने खुद बखुद संवर जाएंगे ॥

सुनो सियासत में हंगामा क्यूं है बरपा , ऐसी क्या अलग कयामत होगी,
या बिगडों के साथ वो बिगड जाएंगे , या बिगडे हुए खुद सुधर जाएंगे ॥

हम बेशक बना लें वक्त से तेज़ भागती हुई चमकती लहकती हुई सडकें ,
सोचता हूं ,मौत सी रफ़्तार थामे स्कूटियों पे बैठे ये बच्चे कल किधर जाएंगे  ॥

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

आत्मा और आंखों को तृप्त करती ग्राम्य झलकियां ......



जब भी ग्राम प्रवास पर निकलता हूं तो मेरी सबसे बडी कोशिश ये होती है कि पत्थरों के इन जंगल से निकल कर प्रकृति के करीब से होकर गुजरती जिंदगी के एक एक लम्हे को यादों में कैद करके सहेज़ लिया जाए , क्या पता कल होकर जिंदगी रहे न रहे , ये प्रकृति वैसी रहे न रहे ..यादें तो हमेशा ही शाश्वत रहती हैं , इन्हें यहां सहेज़ने के पीछे यही एकमात्र उद्देश्य है और हां फ़ोटो खींचने में आनंद तो आता ही है , आप भी देखें कुछ फ़ोटो ...........




Photo: कुदरत के करिश्मे को जितना निहारा जाए कम ही लगता है .........रेल की खिडकी से खींची गई एक और फ़ोटो ......आप उकता तो नहीं रहे हैं न :) :) :) :)
..

Photo: आज की फ़ोटो ......वही रेल ..वही खिडकी ..वही कैमरा ..वही मैं       ;) ;) ;) ;)



Photo: रेल की खिडकी से .........और हां एक बार फ़िर बताता चलूं कि ये मेरे गांव से दिल्ली वापसी की रेल यात्रा के दौरान खिडकी वाली सीट पर जमे होने के कारण धडाधड खींची जाने वाली फ़ोटो में से एक है .......दूर भट्ठे की चिमनी ............................




 Photo: रेल की खिडकी से .......................दूर बहुत दूर जाते सूरज चचा , बोझिल सी खुमारी में डूबती सी सांझ ..........








मंगलवार, 28 जनवरी 2014

फ़ालतू स्टेटस को हाईड किया जाए


https://discussions.apple.com/___sbsstatic___/migration-images/179/17955646-1.png







"पर्सन पॉलिटिक्स" टार्गेट है , तभी वो हो जाते हैं जरा , पर्सनल ,
इतनी भी क्या तंगदिली साहेब, थोडा नज़रिया तो वाईड किया जाए
.
यूं तो "सपोर्ट"  और "सिस्टम" दोनों ही है मर्डर पर उतारू उनके ,
मगर चाहत ये कि मफ़लर गले में लटका के हाकिम खुद "आप" ही सुसाईड किया जाए
.
तू भी गलत और तू भी गलत , सिर्फ़ एक हम ठीक , बांकी सब उलट ही पुलट
छोडा जाए टिकट बेटिकट भाषण/शिगूफ़ा अब थोडा राजनीति को गाईड किया जाए
.
जब पलडा भारी लग ही रहा है तराज़ू का बाट से ज्यादा अपने सामान की तरफ़ ,
तो मारिए गोली सबको , ठेल ठाल के , धकिया मुकिया के साईड किया जाए ,
.
अब तो बता ही डालिए कायाकलप हो जाएगा कैसे यूं अचानक यकायक ,
कब तलक हवा के घोडे पे बैठ के , सनन सनन ,टनन टनन राईड किया जाए
.
और उन मितरों के लिए एक आइडिया है धांसू सा , और इत्तेफ़ाकन उपलब्ध भी है ,
बिन उकताए , बिन झुंझलाए , देखा जाए मुस्कुराकर , फ़ालतू स्टेटस को हाईड किया जाए
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