प्रचार खिडकी

बुधवार, 30 अप्रैल 2008

उत्पाद महंगे , उत्पादक भिखमंगे

बचपन में भी मैं उतना ही नालायक और लम्पट मूर्ख था जितना आज हूँ ,उसमें कहीं कोई फर्क नहीं आया है, और अब तो शायद आयेगा भी नहीं, इसलिए आपने देखा ही होगा कि मैं कभी पढाई लिखाई की बातें नहीं करता.लेकिन आज पता नहीं क्यों रह रह कर अर्थशाश्त्र का एक नियम बड़े जोरों से याद आ रहा है। वैसे तो , मेरा मानना ये है कि ये अर्थशास्त्र का विषय लेकर भी जिंदगी में मुझे ऐसा कोई अनोखा लाभ नहीं हुआ कि लगता कि मेरा अर्थशास्त्र के बोरिंग नियमों को पढ़ना सार्थक रहा। खैर ये तो मेरी बात हुई , छोडिये इसे, मैं कह रहा था कि मैंने पढा था कि जब भी मांग अधिक होती है उत्पाद महंगा होता है , और यदि उत्पाद महंगा होगा तो उत्पादक मालामाल होगा। मैंने इस बात को अब तक सच माना हुआ था, हाँ अब तक...

दरअसल हुआ ये कि ;उस दिन अचानक श्रीमती जी की जगह जोश में मैं ख़ुद राशन लाने चला गया, वहाँ जाकर मेरे अंदाजे का क्या रहा, या कि मुझे आंटे दाल का भाव कैसे पता चला, और ये कि मुझे ये नहीं समझ आया कि अब तक सब्जी , फलों वालों ने अपने यहाँ क्रेडिट कार्ड मशीन क्यों नहीं लगाई, इन सब बातों को तो रहने ही दिजीये, मैंने तो ये सोचा कि यार जब आंटे , चावल, दालों, सब्जी आदि का भाव इतना आसमान छू रहा है तो अपने किसान काका गाओं में बैठ कर चांदी कूट रहे होंगे , तभी कहूं कि इतने दिनों से मुझसे बात भी नहीं की। मैंने तय किया कि आज ही फोन मिलाता हूँ।

फोन मिलते ही मैंने तो बस हालचाल ही पूछा कि वो बगैर पूछे ही शुरू हो गए, " बेटा मैं तो पिछले कई दिनों से तुमसे बात करने की सोच रहा था , मगर झिझक के कारण कुछ कह नहीं पा रहा था , दरअसल तुम्हारी काकी, तुम्हारे भैया, भाभी सभी बीमार पड़े हैं और घर में इतने पैसे भी नहीं हैं कि इलाज करा सकूं। यहाँ सबका यही हाल है । वो जो कोने के मकान वाले दिनू चाचा थे उन्होंने तो परसों ही फांसी लगा ली बेटा साहूकार के कर्जे के कारण। तू जल्दी से कुछ पैसे भेज सके तो अच्छा हो।"

मैं सोच में पड़ा हुआ हूँ कि जब हम यहाँ आटे, दाल, चावल , का इतना दाम, चुका रहे हैं तो फ़िर उनका हाल इतना बुरा क्यों हैं जो इसे उगा, कर, पला बढ़ा कर, तैयार करके हमारे पास भेज रहे हैं। ये उलटा अर्थशास्त्र मेरे पल्ले तो पड़ ही नहीं रहा , आप को कुछ समझ आ रहा है तो बतायें.?

मंगलवार, 29 अप्रैल 2008

लो जी हो गया चीर हरण ( चीयर गल्स प्रकरण )

उस दिन हमारे मित्र बल्ले सिंग बिल्कुल हत्थे से उखड़े उखड़े लग रहे थे।

अमा, क्या हुआ, अब तो तुम्हारा लीग भी पोपुलर हो गया , इतना नाम तो आज़ादी की लड़ाई में मुस्लिम लीग का भी नहीं हुआ था जितना की तुम्हारी इस लीग का हो रहा है , फ़िर ये फटीचर बल्ले की तरह शक्ल क्यों बनाए हुए हो ?

अरे छोडो यार, लीग की कोई बात ही मत करो, क्रिकेट का तो चीर हरण कर के रख दिया है, यहाँ तो कुछ लोगों को हमेशा किसी ना किसी से, और किसी भी बात से दिक्कत रहती ही है ।

क्या कह रहे हो यार, मैं समझा नहीं।

अरे वही यार चीर गर्ल्स के नृत्य संगीत पर पाबंदी लगा रहे हैं। दरअसल बल्ले सिंग जी चीयर गर्ल्स को अपने स्टाईल से हमेशा चीर गर्ल्स ही कहते थे , हालांकि इसके लिए उनके पास कई वाजिब तर्क भी थे ।( आप भी सुनिए, पहला ये की एक तो वे कपड़े चीर चीर कर पहनती हैं। टाँगें चीर चीर कर नाचती हैं, और जब भी नाचती हैं सबका कलेजा चीर कर रख देती हैं।). अब तुम्ही बताओ बेचारी उन अबलाओं के पेट पर लात मार कर क्या मिलेगा किसी को , फ़िर ये उनका ये अपमान क्या किस चीर हरार से कम है।

क्या बल्ले सिंग , तुम भी यार कमाल ही करते हो , अमा उनके पास उतना कपडा ही कहाँ होता की कोई चीर हरण की हिमाकत कर सके। और इसी वज़ह से तो उन पर प्रतिबंद लगाया जा रहा है ।

अच्छा , ये क्या बात हुई भाई, एक बात बताओ जब कोई कसरत करने जायेगा, जब कोई खेल के मैदान में उतरेगा तो जाहिर सी बात है की कम कपडों में उतरेगा ताकि उछलने कूदने और भागने दौड़ने में कोई कठिनाई ना हो , ठीक ऐसे ही उन बेचारी चीर गर्ल्स को भी करना पड़ रहा है। और सबसे जरूरी बात , जब खेल में सरे आम एक खिलाड़ी दूसरे को पीट रहा है, गाली गलौज चल रहा है तो कम से कम उस हिंसा से तो यही ठीक है न, की नृत्य का आनंद लिया जाए। यार बहुत अफ़सोस होता है आज भी अपने यहाँ महिलाओं के साथ कितना भेदभाव हो रहा है।

मैं बल्ले सिंग के तर्क पर शोध और मंथन कर रहा हूँ आप भी करें.

रविवार, 27 अप्रैल 2008

ब्लोग्गिंग की चर्चा अब रेडियो पर भी

यूं तो ये बात मैं तभी लिखना चाहता था जब मैंने रेडियो पर पहली बार एक कार्यक्रम में ब्लोग्गिंग की चर्चा, वो भी विशेषकर हिन्दी ब्लोग्गिंग की , सूनी थी। किंतु पिछले दिनों फ़िर विभिन्न रेडियो सेवाओं , (विदेशी हिन्दी सेवाओं में जब एक बार फ़िर हिन्दी ब्लोग्गिंग की चर्चा, इसका मौजूदा स्वरूप, इसका भविष्य, आदि पर विस्तृत चर्चा सूनी तो सोचा की आप लोगों को भी ये बात बताओं।

अभी पिछले दिनों रेडियो जापान और रेडियो जर्मनी की हिन्दी सेवाओं में ब्लोग्गिंग के बढ़ते चलन , फ़िर हिन्दी में हो रही ब्लोग्गिंग, हमारे मुख्य अग्ग्रीगातोर्स की बातें, उनमें आ रही सामग्री की चर्चा विस्तारपूर्वक की गयी॥ एक सबसे बड़े कमाल की बात तो ये रही की कार्यक्रम में हमारे कुछ वरिस्थ हिन्दी साहित्यकार और हमारे ब्लोग्गेर्स जी हाँ बिल्कुल सही हमारे ब्लॉगर अविनाश जी (मोहल्ले वाले ) भी शामिल हुए। कार्यक्रम के दौरान जब रेडियो जर्मनी के प्रस्तोता ने अविनाश जी और वरिस्थ साहित्यकार श्री विष्णु खरे जी से ब्लोग्गिंग ख़ास कर हिन्दी में हो रही ब्लोग्गिंग की बाबत पूछा तो जैसा की अपेक्षित था, विष्णु जी ने जहाँ ब्लोग्गिंग में आ रही सामग्री, लेख, कहानी, कविताओं आदि के बारे में कहा की वे इससे संतुष्ट नहीं हैं और उन्हें लगता है की इससे भाषा और साहित्य , दोनों को नुकसान भी पहुँच सकता है, फ़िर वे सबसे ज्यादा खफा इस बात से दिखे की जब कोई कुछ लिख रहा और ये जानते हुए लिख रहा की की उसे हजारों लोग पढने वाले हैं तो फ़िर चाहे किसी भी वजह से अपनी पहचान छुपाने का क्या मतलब।

दूसरी तरफ़ अपने अविनाश जी और एक और ब्लॉगर महोदय जिनका नाम अभी मुझे याद नहीं , उन्होंने हिन्दी ब्लोग्गिंग की खूब तारीफ की , उसे खूब सराहा। आने वाले समय में लेखकों , पाठकों की संख्या के हिसाब से और न सिर्फ़ गिनती के हिसाब से बल्कि , उन्होंने माना की आने वाले समय में बाज़ार भी जल्दी ही हिन्दी ब्लोग्गिंग को हाथों हाथ लेगा, और तब शायद जिस एक बात की कमी हरेक हिन्दी ब्लॉगर को खलती है की अन्य भाषाओं की अपेक्षा हिन्दी ब्लोग्गिंग में आर्थिक लाभ की गुंजाईश बिल्कुल न के बराबर है , तब शायद ये शिकायत भी दूर हो जायेगी।

जो भी हो जिस तरह से पिछले कुछ समय में विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, तथा अब रेडियो पर भी ब्लोग्गिंग , हिन्दी ब्लोग्गिंग की चर्चा हो रही है , उससे इतना तो स्पष्ट हो ही चुका है की भाई हम पर भी नज़र जा रही लोगों की , तो बस चलिए सजाते, सवारते हैं अपने इस ब्लॉगजगत को ताकि भविष्य में जब इसकी उपलब्धियों की बात हो तो हमें भी गर्व हो इसका हिस्सा बनने पर.

शनिवार, 26 अप्रैल 2008

चिट्ठाकारी से दूर कुछ दिन

कुछ माह पहले जब मैंने ये ब्लोग्गिंग शुरू की थी तब ये सोचा नहीं था की इतनी ज़ल्दी ये एक आदत या कहूं की लत सी बन जायेगी जिसे एक तरह से लोग addiktion कहते हैं। अब ऐसा सबके साथ होता है या की फ़िर सिर्फ़ मेरे साथ हुआ ये तो पता नहीं , मगर ऐसा लगने लगा था की यदि आज कोई पोस्ट नहीं लिखी या फ़िर की आज किसी भी वजह से थोड़ी देर भी ब्लॉगजगत पर नहीं बिताया, किसी को पढा नहीं किसी को कोई तिप्प्न्नी नहीं की तो एक खालीपन , एक सूनापन , एक बेचैनी से महसूस करने लगता था मैं। और बहुत सारे मित्रों और करीबी लोगों की नाराजगी झेलने के बावजूद ब्लोग्गिंग का साथ नहीं छूट रहा था, मैं चाहता भी नहीं था की किसी भी वज़ह से ये सिलसिला रुके। मगर कहते हैं न की सब कुछ अपने सोचे नहीं होता। तब मुझे ही कहाँ पता था की इतने दिनों तक मैं ऐसा फंस जाऊँगा की अलग अलग कारणों से कि लिखना तो दूर पढ़ना या फ़िर कि तिप्प्न्नी करना भी भारी पडेगा।

पहले किसी कारणवश सपरिवार यहाँ से बाहर जाना हुआ, वहाँ पर अपेक्षा से ज्यादा समय लग गया, मगर शुक्र था कि जल्दी न सही मगर लौटना तो हुआ जिसकी खुशी मैंने अपने पिछले पोस्ट के माध्यम से आप सब के साथ बाँटीं भी थी । लेकिन हाय , रे मेरी किस्मत अभी ठीक से यहाँ आया भी नहीं था कि घर से फोन आ गया कि माता जी की तबियत kहराब है फौरन घर आओ। और माता जी या बाबूजी से संबंधित कोई भी बात मेरे लिए तेलेग्त्राम के समान होती है, सर बोरिया बिस्तर बांधा और भाग लिया। उन्हें गठिया की परेशानी है , खैर अब पता नहीं कितने दिनों बाद lऔता हूँ तो बहुत कुछ सोचने लगा।

मुझे ऐसा लगने लगा था कीलगातार यहाँ ब्लॉग जगत पर लिखने के कारण मेरी लेखनी और मेरे विचारों में एक सीमितता सी आ गयी थी । मैं जो सप्ताह में कई बड़े बड़े लेख और कई कहानियां , व्यंग्य आदि जो सब लिखने रहता था वो सब यदि पूरी तरह बंद नहीं तो शिथिल तो जरूर ही पड़ गए थे। मेरे कहने का मतलब की मेरी सोच सिर पोस्ट के हिसाब से , यहाँ पर जगह और समय के हिसाब से थोड़ी संकुचित सी हो रही थी। हालांकि द्विवेदी जी सहित कुछ मित्रों ने सलाह भी दी थी की ये जरूरी नहीं की रोज़ रोज़ थोडा लिखा ही जाए । दिमाग को यदि थोडा आराम देने से कुछ बेहतर पकता है तो उसे आराम करने दो । अब जाकर समझ आया। एक दूसरा ख्याल ये आया की ये जरूरी नहीं की एक ही पोस्ट में सारी बात या कहूं की एक ही दिन सारी बात कह डालूँ सो तय किया है की अब यदि कोई बड़ी और लम्बी बात कहनी होगी तो उसे टुकडों में कहूंगा।

चिट्ठाकारी से कुछ दिनों की दूरी मुझे आखरी तो बहुत मगर बहुत कुछ पता भी चल गया , विशेष कर ये बात की चलो यदि कभी मजबूरी में कभी थोड़ी दूरी हो भी जाए तो नयी उर्जा और नयी सोच के साथ वापसी और भी ज्यादा आनंद देती है। वैसे फिलहाल तो अपना जमे रहने का इरादा है.

बुधवार, 2 अप्रैल 2008

लो जी हम वापस आ गए

" लो जी , हम वापस आ गए । " जैसे ही हमारे मुखार्बिंदु से ये खुशी के उदगार निकले कि हमारी तरह ही ख़ुद को परम विद्वान् और धाँसू ब्लागिये मानने वाले मित्र चप्टू जी ने नाक भौं सिकोड़ ली।

अमा चप रहो, तुम क्या गरीब रथ एक्प्रेस हो कि तुम्हारे आने से अयेर्कंदीशन की ठंडक का एहसास हो , या कि बर्ड फ्लू हो जो सरकार और प्रशाशन टीके और इंजेक्शन लेकर तैयार हो जाएं, और फिर तुम बिपाशा बासु के आईटम सोंग वाली कोई पिक्चर भी नहीं हो , तो तुम्हारा आना क्या और जाना क्या बे ।

हमें ताज्जुब तो हुआ ही थोडी सी बेईज्ज़ती सी भी हुई । अरे चुप तुम रहो बोले ही चले जा रहे हो । तुम शायद भूल रहे हो कि तुम्हारे पोस्टों पर, पोस्टों क्या तुम्हारे ब्लॉग पर अजो इकलौती टिप्पणी होती है वो इसी खाकसार की होती है। चलो माना कि तुम्हें हमारी पोस्टों का न सही मगर हमारी तिप्प्न्नियों का तो जरूर इंतज़ार होगा, क्यों।

चप्टू जी फिर बिदक गए। काहे की टिप्पणी बे, रोज़ रोज़ एक ही बात चेप देते हो , कविता लिखूं या कहानी, व्यंग्ये लिखूं या साहित्य तुम्हारी नज़र में सब बराबर हैं। मुझे तो शक होता है कि तुम सिर्फ़ कट और पेस्ट करते हो। कोई बड़ा वरिष्ठ ब्लोगिया या कोई छाट्ठाकारनी मुझे प्रोत्साहित करते तो बात बनती। तुम जैसा bलोगैड़ी यदि कोई तिप्प्न्नी कर भी देता है तो क्या फर्क पड़ता है.

क्या , क्या कहा ब्लोगैडी, ठीक से बताओ , क्या कहना चाह रहे हो . मुझे अच्छे तरह याद है कि ऐसे ही पहली पहली बार तुमने मुझे कहा था कि यार मुबारक हो , सुना है तुम वल्गर बन गए हो बाद में पता चला कि तुम कहना ये चाह रहे थे कि मैं ब्लॉगर बन गया हूँ , सात्यानाश हो तुम्हारी डिक्शनरी का. ये बताओ ये ब्लोगैडी का क्या मतलब.

यार ये कौन सा मुश्किल है जैसे नशे का आदि नशेड़ी होता है वैसे तुम्हारी तरह ब्लॉग का आदि ब्लोगैडी होता है.

अरे छोडो तुम्हें न सही हमारे ब्लॉग जगत के मित्रों को तो जरूर ही इंतज़ार होगा हमारे वापस लौटने का.

हाँ, हाँ , पता है हमें तुम्हारे मित्रों का , आज तक किसी ने कभी पूछा भी है, लिंक देना और लिखना तो दूर रहा, किसी ने पसंद किया है कभी ....

और पता नहीं चप्टू जी क्या क्या बोल कर मुझे चपटा करके चल दिए.
बहरहाल हम अब वापस तो आ ही गए हैं, देखिये आगे क्या होता है ?
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