प्रचार खिडकी

रविवार, 31 मार्च 2013

ठीक है -- नहीं ठीक नहीं है

सब ठीक है



खौफ़नाक है मंज़र क्यूं , आज मेरे शहर का ,
वो कहते हैं , ठीक है , मगर इस देश की हालत ठीक नहीं है ॥


जंगलों में भी कहां दिखती है ऐसी हैवानियत अब,
खुद की नस्ल का शिकार करता , ये आदमजात ठीक नहीं है ॥


हर बार निपटने का वादा और अब न होने देने की बातें ,
हर बार कुछ हो जाने पर यही कहते हो , ये बात ठीक नहीं है ॥


इक तरफ़ पूजते हो माता और देवी कह -मान कर ,
मगर नारी के प्रति अब , तुम्हारे ख्यालात ठीक नहीं है ॥


कैसे कह दूं कि बसर हो रहा है जीवन चैन और सकून से ,
काले दिन भी डराते हैं मन को ,उजली ये रात ठीक नहीं है ॥


क्यूं करूं गैरों से गिले-शिकवे , और उंगली उठाऊं उनपे,
जब पाया है कि बंद कमरों में , अपनों का भी साथ ठीक नहीं है ॥


जो करता रहा है दावा , गरीबों मजलूमों के साथ होने का,
बरसों से भर रहा है जेबों को अपनी , वो "हाथ", ठीक नहीं है ॥


चलता है , जो किश्तों में मिले , ज़ख्मों का कतरा कतरा,
मगर दुखों से बांध दो रिश्ता , रंजो-गम की , बारात ठीक नहीं है ॥


हम निपट लेंगे, सुलट लेंगे, एक आध , तीन चार को भी ,
मगर धूर्तों की टोली, चोरों की पूरी जमात , ठीक नहीं है ॥


इतिहास का सबक सीखना होगा , बडे ही गौर से हाकिम ,
फ़िर किसी अंधे के हाथ हस्तिनापुर को देना , हे तात! ठीक नहीं है ॥


आप सियासती लोग हैं जो भी , खेलना खूब जानते होंगे,
अवाम क्या जाने शह-मात की भाषा , बिछाना यूं शतरंजी बिसात ठीक नहीं है ॥


लडने को गरीबी, बेकसी, बेकारी और बीमारी बहुत है ,
घसीटते रहो , भाषा, धर्म , मज़हब और जात-पात ठीक नहीं है ॥


तुम बढाने को खजाने का वजन , महंगा हर बाज़ार करो बेशक ,
मगर बोझ तले मर जाए आम आदमी ही , गरीब की छाती पर लात ठीक नहीं है ॥

तुम्हारी मजबूरी हम खूब समझते हैं , चुप रहने की , रहो खामोश ही,
मगर हमारे सैनिकों की सिरकटी लाश पर भी न छलकें , ज़ज़्बात ठीक नहीं है 


करो खूब दोस्ती के वादे उनसे , और निभाते चलो टूटते बनते रिश्ते,
हर बार बारूद की खेप , मिलती जो आतंक की सौगात ठीक नहीं है ॥


सोने चांदी की कीमत अब जान से ज्यादा है , मेहबूब मेरे,
यूं सरेआम निकल जाना पहन के जेवरात , ठीक नहीं है ॥ 



ठीक नहीं है .....ठीक नहीं है
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