जैसे जैसे कंप्यूटर और मोबाइल का चलन घर से लेकर दफ्तरों तक बढ़ गया है उससे
किताबों को पढ़ने की रवायत तो कम हो ही गई है इसके साथ साथ जो एक आदत
बिलकुल ख़त्म होती जा रही है वो है हाथों से कागज़ पर लिखना | कचहरी जैसे
दफ्तर में जहाँ कंप्यूटर तकनीक बहुत पहले आ जाने के बावजूद भी अब तक हाथों
से बहुत सारा लिखने की गुंजाईश बनी हुई है | अफ़सोस कि अब सहकर्मियों
,वरिष्ठ तो वरिष्ठ जो कनिष्ठ और युवा हैं वे भी यथासंभव हाथ से कुछ भी
लिखने की आदत से कतराते हैं | बहुत ऐसा इसलिए भी करते हैं क्युंकि उनकी
लिखावट साफ़ और स्पष्ट नहीं है |
मेरी आदत इससे ठीक उलट है | मैं आलेख पत्र आदि नियमित लिखने के साथ ही दफ्तर में भी पूरे दिन हाथ से लिखता रहता हूँ | लिखावट साफ़ और ठीक है सो महसूस किया है कि पहला ही प्रभाव सकारात्मक दिखता है और टाइपिंग कंप्यूटर से इतर हाथ की लिखावट उसे अलग कर देती है | मेरे दफ्तर में कोई भी कागज़ ,रजिस्टर ,यदि मेरी टेबल से होकर गुजरा है तो उसमें यकीनन ही मेरी लिखावट आपको कहीं न कहीं दिख जाएगी | इसी तरह जहाँ जहाँ भी मेरी नियुक्ति रही है अब तक उन तमाम विभागों ,संभागों ,में मेरी लिखावट के निशान उपलब्ध फाइलों ,रिकार्ड्स आदि पर अब भी वैसे के वैसे ही मिलते हैं |
मुझे हाथों से लिखना बेहद पसंद है और मेरी आदत भी। ....... और आपको
मेरी आदत इससे ठीक उलट है | मैं आलेख पत्र आदि नियमित लिखने के साथ ही दफ्तर में भी पूरे दिन हाथ से लिखता रहता हूँ | लिखावट साफ़ और ठीक है सो महसूस किया है कि पहला ही प्रभाव सकारात्मक दिखता है और टाइपिंग कंप्यूटर से इतर हाथ की लिखावट उसे अलग कर देती है | मेरे दफ्तर में कोई भी कागज़ ,रजिस्टर ,यदि मेरी टेबल से होकर गुजरा है तो उसमें यकीनन ही मेरी लिखावट आपको कहीं न कहीं दिख जाएगी | इसी तरह जहाँ जहाँ भी मेरी नियुक्ति रही है अब तक उन तमाम विभागों ,संभागों ,में मेरी लिखावट के निशान उपलब्ध फाइलों ,रिकार्ड्स आदि पर अब भी वैसे के वैसे ही मिलते हैं |
मुझे हाथों से लिखना बेहद पसंद है और मेरी आदत भी। ....... और आपको