प्रचार खिडकी

शनिवार, 14 मार्च 2020

मैं अब भी लिखता हूँ...... और आप ??





जैसे जैसे कंप्यूटर और मोबाइल का चलन घर से लेकर दफ्तरों तक बढ़ गया है उससे किताबों को पढ़ने की रवायत तो कम हो ही गई है इसके साथ साथ जो एक आदत बिलकुल ख़त्म होती जा रही है वो है हाथों से कागज़ पर लिखना | कचहरी जैसे दफ्तर में जहाँ कंप्यूटर तकनीक बहुत पहले आ जाने के बावजूद भी अब तक हाथों से बहुत सारा लिखने की गुंजाईश बनी हुई है | अफ़सोस कि अब सहकर्मियों ,वरिष्ठ तो वरिष्ठ जो कनिष्ठ और युवा हैं वे भी यथासंभव हाथ से कुछ भी लिखने की आदत से कतराते हैं | बहुत ऐसा इसलिए भी करते हैं क्युंकि उनकी लिखावट साफ़ और स्पष्ट नहीं है |

मेरी आदत इससे ठीक उलट है | मैं आलेख पत्र आदि नियमित लिखने के साथ ही दफ्तर में भी पूरे दिन हाथ से लिखता रहता हूँ | लिखावट साफ़ और ठीक है सो महसूस किया है कि पहला ही प्रभाव सकारात्मक दिखता है और टाइपिंग कंप्यूटर से इतर हाथ की लिखावट उसे अलग कर देती है | मेरे दफ्तर में कोई भी कागज़ ,रजिस्टर ,यदि मेरी टेबल से होकर गुजरा है तो उसमें यकीनन ही मेरी लिखावट आपको कहीं न कहीं दिख जाएगी | इसी तरह जहाँ जहाँ भी मेरी नियुक्ति रही है अब तक उन तमाम विभागों ,संभागों ,में मेरी लिखावट के निशान उपलब्ध फाइलों ,रिकार्ड्स आदि पर अब भी वैसे के वैसे ही मिलते हैं |

मुझे हाथों से लिखना बेहद पसंद है और मेरी आदत भी।    ....... और आपको

रविवार, 1 मार्च 2020

दंगों वाली दिल्ली पर दो टूक





मैं शुरू से ही ये मान रहा था और जहां भी मुझे लगा यही कह रहा था की नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों के सामने हर हाल में सिर्फ और सिर्फ वर्दी वाले ही होने चाहिए ,सत्ता और प्रशासन ही रहने चाहिए | 

चाहे कुछ  भी हो ,इस कानून का और सरकार के इस रुख का समर्थन करने वाले हर व्यक्ति को अपना समर्थन दिखाने जताने बताने के लिए सड़क पर आने और आर पार खड़े होने की कोई आवश्यकता नहीं है बिलकुल भी नहीं क्यूंकि यही वो समय होगा जब पूरा विपक्ष और उनके इर्द गिर्द भिनभिनाते अन्य तमाम इसे मज़हबी उन्माद और दंगों की शक्ल देने में रत्ती भर समय भी नहीं लगाएंगे | 

यही हुआ ,साजिश रचने वालों को बस उस मौके उस बहाने की तलाश थी जिसके नाम पर वो महीनों से इकठ्ठा कर रहे असलों का उपयोग और अच्छी तरह से सीख सकें | जहर जब जमीन के नीचे रिस कर चला जाता है तो फिर फसलें नहीं नस्लें बर्बाद होती हैं ,ये वही समय है , अफ़सोस की बात है कि ये इन सब बातों का अंत नहीं है 

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वे आपके लिखे लिखाए क़ानून के पन्नों पर लिखे शब्दों को ठीक आपकी कनपटी के नीचे टिकाते हुए बड़ी ही तफसील के साथ वो सब बदस्तूर और बेख़ौफ़ करते रहेंगे कि जिनकी बाबत आपका सोचना ये है कि एक दिन न्याय व्यवस्था आपको इन सबसे छुटकारा दिलवा सकेगी मैं विशवास दिलाता हूँ न्याय व्यवस्था जिस रफ़्तार से अपनी साख खो रही है और खोने के बावजूद चिंतित नहीं है जनता सड़कों पर इसी तरह के फैसले कुछ इन्हीं तरीकों से ले रही होगी |

 दिल पर हाथ रख कर बताइये कि 150 से अधिक मुकदमे और 700 के लगभग अपराधियों में से कितनों को लोगों के घर फूंकने ,चाकू से गोद कर हत्या करने के लिए जिम्मेदार ठहरा कर सजा दी जा सकेगी तिस पर गारंटी अगले दंगे न होने देने की नहीं है हाँ मुआवजे और जांच कमीशन की जरूर पक्की है ,कमीशन अच्छा है न दोनों सहानुभूतियों में 



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