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गुरुवार, 8 अक्तूबर 2009

महिलाओं में परकाया प्रवेश : कुछ दिलचस्प तथ्य/अनुभव


संचिका वाली सुश्री लवली कुमारी ने अपनी इस पोस्ट के माध्यम से बहुत ही मह्त्वपूर्ण मुद्दा उठाया। उन्होंने अपने शोध /अध्य्यन और अनुभव के आधार पर महिलाओं में परकाया प्रवेश ..या कहें कि भूत प्रेत का आना ..पर एक सारगर्भित पोस्ट प्रस्तुत की । मैं खुद इस विषय पर काफ़ी पहले से कुछ लिखना चाहता था ।हालांकि इसका कारण मेरे पास कुछ निजी था । दरअसल आज से लगभग बीस साल पहले जब मेरे दीदी का स्वर्गवास हुआ तो उसके कुछ महीनों बाद मेरी एक चचेरी बहन की ससुराल से ये संदेश आया कि दीदी की तथाकथित आत्मा मेरी उस बहन के अंदर आ जाती है और उसे तथा उसके परिवार को तंग करती है।मुझे बहुत क्रोध आया क्योंकि मैं जानता था कि मेरी उस चचेरी बहन से हमारी मुलाकात भी शायद कभी एक आध बार ही हुई हो। इसके बाद अभी कुछ समय पहले स्वर्गवासी हुई मेरी माता जी भी उसी चचेरी बहन के सपने में आ गयी और उसके अनुसार उन्होंने उसे मारा पीटा। इस बार मेरी सहन शक्ति जवाब दे रही थी...सो मैंने कहलवा भेजा कि ..दरअसल वो ये कहना चाह रही थीं कि इतने नाटक कर रही हो किसी न किसी दिन तुम्हें सच में ही आकर इस बात के लिये कोई पीटेगा। वो और नाराज़ हो गयी और अब उन्हें सपने आने बंद हो गये।हमारे परिवार में इस भूत प्रेत के आने की बात हमारी दादी से शुरू हुई थी..जिन्हें हमने अपने बचपन से अभी कुछ दिनों पहले तक, जब तक कि उन्होंने बिस्तर न पकड लिया , किसी न किसी प्रेतात्मा, देवी के साथ ही देखा। इसका एक असर तो ये हुआ कि परिवार की कम से कम चार महिलायें/बेटियां/बहुएं .उन्हीं की प्रेरणा पाकर आगे जाकर काफ़ी प्रसिद्ध हुईं...मतलब खूब चर्चा हुई उनकी...और लानत मलामत भी।

अब जबकि लवली जी ने बहस की शुरूआत कर दी है तो लगा कि उचित होगा कि इस बहस को आगे बढाया जाये। इस व्यवहार/रोग/प्रचलन ....जो भी कहिये ..के वैज्ञानिक कारण और पहलू से मैं इतना वाकिफ़ नहीं हूं । किंतु अपने तथ्यों के संकलन और अनुभव के आधार पर मैंने कुछ दिलचस्प परिणाम ढूंढे हैं जिन्हें आपके सामने रख रहा हूं ।

उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में ये उतना देखने में नहीं आता ।
जी हां अब इसके कारण क्या हैं ये तो पता नहीं, किंतु ये सच है कि उत्तर भारत के बिहार , उत्तर प्रदेश , उडीसा, बंगाल आदि राज्यों में ही ये सबसे ज्यादा प्रचलित है। दक्षिण भारत में किसी एक राज्य, या किसी अमुक क्षेत्र में इस तरह के भूत प्रेतों का चलन महिलाओं में नहीं देखने को मिलता है। ऐसा नहीं है कि वे पराशक्तियों के अस्तित्व को नकारते हैं। मगर भूत प्रेत, देवी देवता, आदि मनुष्यों पर आते नहीं देखे जाते।

पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में इसका प्रतिशत लगभग नब्बे गुना ज्यादा है ।भूत प्रेत, चुडैल, देवी माता...आदि का जब भी जिक्र आता है तो अधिकांश घटनाओं में इससे ग्रस्त महिलाएं ही होती हैं...जबकि इनका इलाज करने वाले तथाकथित तांत्रिक/ओझा/गुनी/ ...अक्सर पुरुष होते हैं..जो खुद भी इनका इलाज करने के लिये ऐसी ही परकाया प्रवेश की शक्तियों के अपने अंदर होने का दावा करते हैं। इसका एक दुखद पहलू ये है कि अक्सर ये गुनी /ओझा/ ..इन सबका इलाज करने के बहाने ....इन पीडित महिलाओं का शोषण ..दैहिक/आर्थिक/सामाजिक रूप से करते हैं।मैंने अपने ग्राम्य जीवन के दौरान ओझाओं को इन महिलाओं के शरीर से इन भूतों का साया निकालने के लिये वो सब करते देखा है ....कि उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।

इसके अलावा एक दिलचस्प जानकारी ये मिली कि...ग्रामीण क्षेत्रों में ही ये भूत प्रेत, चुडैल आदि विचरते हैं। शायद वे ये सोच कर शहर नहीं आते होंगे कि शहर का इंसान तो अपने आप में ही किसी भूत से कम नहीं। यहां स्त्रियों में जो भी इस तरह की घटना घटती भी है तो वो देवी के आने के रूप में ही ज्यादा प्रचलित है। इसी तरह कामकाजी महिलाओं में इन परकाया भूतों का संचारण नहीं हो पाता है। शायद ही किसी महिला ...सैनिक/अधिकारी /कर्मचारी /डाक्टर आदि पर भूत आते देखा गया हो।

जहां तक इनके कारणों की बात है तो इसके प्रचलन का क्षेत्र/ पीडित महिलाओं का सामाजिक/शैक्षिक/मानसिक स्तर को देखते हुए कुछ बातें तो निष्कर्ष स्वरूप निकल ही आती हैं। ये मूलत: अशिक्षा/अज्ञान/और अंधविश्वास के मिलन का ही परिणाम होता है। सामाजिक परिवेश , धार्मिक कर्मकांड ,जागरूकता का अभाव तथा सरकार द्वारा ऐसी समस्याओं की उपेक्षा.....ही वो कारक हैं जिसके कारण आज जबकि देश वैज्ञानिक रूप से इतना विकसित हो चुका है ...फ़िर भी ये सब बदस्तूर जारी है। और निकट भविष्य में भी जारी रहेगा...ऐसा मुझे लगता है।


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