प्रचार खिडकी

रविवार, 30 मई 2010

फ़ितरत छुपाने को, कोई ,नकाब तो लगाओ यारों......अजय कुमार झा


मुहब्बत कर न सको तो , नफ़रत की ही ,
कम से कम ,इंतहा तो दिखाओ यारों ,॥

कर देना पैवस्त खंजर ,मेरी पीठ पर ही सही,
चलो इसी बहाने इक बार ,गले तो लगाओ यारों ,॥

मैं समझ लूंगा तुमको, आईना , या अपने जैसा ,
फ़ितरत छुपाने को, कोई ,नकाब तो लगाओ यारों ,॥

माना कि चलना मुझे नहीं आता ,गिरता हूं संभलता हूं अक्सर,
मगर मुझे गिराने को , यूं ,खुद को तो न गिराओ यारों ,॥

कितना ज़ाया किया , मुझे सोच कर कर वक्त -बेवक्त तुमने अपना ,
थोडा सा तो अपने साथ , खुद के लिए भी वक्त बिताओ यारों ॥

सुना है कि ,उन रास्तों की मंजिल नहीं है , फ़िक्र होती है ,
कहीं इतनी दूर न निकल जाओ,कि लौट के आ न पाओ यारों ॥

गुरुवार, 27 मई 2010

"ब्लोग हलचल " में , कशमकश ,स्वच्छ संदेश , आज का मुद्दा ,लोकसंघर्ष, संजय खरे का ब्लोग तथा निहितार्थ ब्लोग का जिक्र



भटिंडा ,पंजाब से प्रकाशित दैनिक "पायलट " के इस अंक में स्तंभ
ब्लोग हलचल में माधुरी प्रकरण पर आधारित कुछ पोस्टों की चर्चा ।

चित्र को पढने के लिए उसे चटकाएं और छवि के खुलने पर उसे चटका कर आराम से पढा जा सकता है । उम्मीद है कि आपको प्रयास पसंद आएगा ।


बुधवार, 26 मई 2010

"ब्लोग हलचल " में आईपीएल प्रकरण के जिक्र करती हुई कई ब्लोग पोस्टों की चर्चा




मैंने एक नए प्रयास के तौर पर ब्लोग पोस्टों पर आधारित एक साप्ताहिक स्तंभ शुरू किया था जिसे नाम दिया गया ब्लोग बातें , मगर आगे इसे एक नया नाम मिला "ब्लोग हलचल" । अब ये स्तंभ नियमित हो गया है और खुशी की बात है कि आठ दस समाचार पत्रों में छप भी रहा है । इसकी प्रति आप रद्दी की टोकरी "और ब्लोग औन प्रिंट "पर देख पाएंगे । इस संबंध में आप मुझे जो भी सुझाव और सलाह देना चाहें उसका स्वागत है । तो इसी के तहत पढिए /देखिए इसका एक और अंक


चित्र को पढने के लिए उसे चटका दें , और छवि के खुलने पर उसे फ़िर चटका कर आराम से पढा जा सकता है । भटिंडा से प्रकाशित दैनिक "पायलट " में छपा ये स्तंभ , आपके लिए ।


इसीके साथ एक और विचार आपसे बांटते हुए अपेक्षा है कि आप उस पर अपने राय से अवगत कराएंगे । इस ब्लोग हलचल की प्रतिक्रिया को देखते हुए विचार आया है कि, हिंदी ब्लोगजगत के कुछ विशिष्टता वाले ब्लोग्स का जिक्र , उनके लेखकों के परिचय के साथ , उनकी विशेषताओं को भी दुनिया के सामने लाया जाए । इससे जहां ये होगा कि हिंदी ब्लोग जगत के सकारात्मक कार्यों का प्रसार होगा वहीं अन्य भी इससे प्रेरणा पा सकेंगे । बहुत जल्द ही शुरू किए जाने वाले इस स्तंभ का नाम होगा........................."ब्लोग खजाना "। तो इंतज़ार करिए इस नए स्तंभ का ।

सोमवार, 17 मई 2010

कसाब को फ़ांसी पर, आज के "दैनिक सच कहूं" में प्रकाशित मेरा एक आलेख

आलेख को पढने के लिए उस पर चटकाने पर जो छवि खुले उसे चटका कर आराम से
पढा जा सकता है । दैनिक सच कहूं , सिरसा एवं दिल्ली से प्रकाशित

रविवार, 16 मई 2010

हिंदी ब्लोगर के रूप में अविनाश वाचस्पति जी ने क्या कहा ...............

राष्ट्रभाषा हिंदी की दशा और दिशा पर पत्रिका " संडे इंडियन " के ताजा अंक में अविनाश वाचस्पति जी ने हिंदी ब्लोग्गिंग और ब्लोग्गर्स का प्रतिनिधित्व करते हुए अंतर्जाल पर हिंदी के मजबूत होते कदम और उसमें हिंदी ब्लोग्गिंग के योगदान और महत्व की चर्चा की सबसे बडी बात ये रही है कि इसमें उन्होंने अपना परिचय सिर्फ़ एक हिंदी ब्लोग्गर के रूप में देते हुए हिंदी ब्लोग्गिंग की सार्थक बातों को लाखों पाठकों तक पहुंचाया इस तरह के प्रयास नि: संदेश प्रशंसनीय और अनुकरणीय है पूरी पत्रिका में बहुत सारे पन्नों में छपी हुई हिंदी राष्ट्रभाषा पर जारी एक बहस में भाग लेते हुए अविनाश भाई ने क्या कहा ये आप नीचे की छवि में पढ सकते हैं सभी ब्लोग्गर्स से यही अपेक्षा है कि इससे सीख लेते हुए ऐसे ही प्रयासों को बढावा देंगे



छवि को पढने के लिए उस पर क्लिक करें

शनिवार, 15 मई 2010

प्रिंट मीडिया बनाम इलेक्ट्रानिक मीडिया : दैनिक महामेधा में आज प्रकाशित मेरा एक लघु आलेख

इस आलेख को आप ब्लोग पोस्ट के रूप में पहले पढ चुके हैं , आलेख को पढने के चित्र को चटकाने पर जो छवि खुले उसे चटका कर आराम से पढ सकते हैं

सोमवार, 10 मई 2010

"दैनिक महामेधा "दिल्ली तथा "दैनिक सच कहूं सिरसा" में प्रकाशित दो लघु आलेख



दैनिक महामेधा में प्रकाशित

सच कहूं सिरसा हरियाणा में प्रकाशित

ये दोनों आलेख आप मेरी ब्लोग पोस्टों के रूप में पढ चुके हैं आलेख को के लिए उस पर चटका लगाने पर जो छवि खुले उसे फ़िर से चटका कर पढ लें

शनिवार, 8 मई 2010

ये हैं.... दिलशाद गार्डन दिल्ली से..... अजय कुमार झा



जी हां कुछ ऐसे ही अंदाज़ में शायद एक दो साल पहले तक विश्व की बहुत सी हिंदी रेडियो प्रसारण सेवा में मुझे और मुझे जानने वाले सभी परिचितों को मेरा नाम सुनने की आदत सी हो गई थी । बीबीसी रेडियो हिंदी सेवा , वायस औफ़ अमेरिका हिंदी सेवा ( जो अब बंद हो चुकी है , रेडियो पर ),रेडियो डोईचेवैले ( रेडियो जर्मनी हिंदी सेवा और एनएचके यानि रेडियो जापान हिंदी सेवा , और भी जाने कौन कौन सी हिंदी सेवाओं । शायद ये 1989 की बात थी जब मैंने पहली बार बीबीसी हिंदी सेवा को सुना था और इसके बाद बहुत से कारण थे जो मुझे ये लत लगती गई । उस समय मैं विदार्थी जीवन में था , इन प्रसारणों को लगातार सुनने का एक बडा फ़ायदा ये हुआ कि सभी सामयिक विषयों पर मेरी जानकारी अपने सभी मित्रों से अधिक रहती थी । ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण रेडियो ही एकमात्र साधन था , मनोरंजन का भी और ज्ञान का भी ।

उस समय मेरी इस आदत से सभी बांकी लोग खासे परेशान रहते थे यहां तक कि मैं कहीं बाहर भी जाता था तो वहां रेडियो साथ होता था और फ़िर ग्रामीण इलाके में पहले तो पहले अब भी रेडियो आराम से और बडे शौक से सुनते हैं सभी इसलिए आसानी से उपलब्ध हो जाता है । पहले सुना करता था फ़िर धीरे धीरे उन पर प्रतिक्रिया भी देने लगा । और आदत ऐसी हो गई कि उस समय कोई ऐसी विशेष प्रस्तुति नहीं होती थी जिस पर मेरी सक्रिय प्रतिक्रिया न पहुंचे । मेरे पत्रों ने मुझे इन तमाम संस्थानों में एक पहचान दिला दी । न सिर्फ़ इतना बल्कि , इनमें आयोजित होने वाले तमाम प्रतियोगिताओं में भागीदारी और ईनाम मिलना , उपहार , कैलेंडर, और ढेर सारी पाठ्य सामग्रियां मुझे मिलीं , इनके अलावा सभी के पत्र भी । मैं भी प्रतिक्रिया के साथ साथ बधाई कार्ड और संदेश आदि भेजने लगा ।

समय के साथ ही सब बदला , दिल्ली पहुंचने के बाद इन प्रसारणों को सुनने में बहुत कठिनाई होती थी मगर इसके बावजूद सिलसिला नहीं थमा । यहां के स्थानीय डाकघर में थोक के भाव पोस्टकार्ड लेने के कारण उन्होंने मेरा नाम ही "पोस्टकार्ड वाले भाई साहब" रख दिया ।दिल्ली आने का एक फ़ायदा ये हुआ कि जिन पत्रकारों , प्रसारकों को सुना करता था , उनसे रूबरू भी हुआ , अनेकों बार मुझे स्थानीय केंद्रों में बुला कर रिकार्डिंग करवाई गई श्रोता के रूप में ।रेडियो खराब हुआ बीच में तो सबसे ज्यादा मुश्किल हुई रेडियो ढूंढने में , यहां दिल्ली में सारे के सारे एफ़ एम रेडियो ही उपलब्ध थे , खैर जैसे तैसे ढूंढ ही लिया गया । मगर पिछले कुछ समय में बहुत से कारणों से , और कुछ अपनी उदासीनता के कारण भी इनमें अनियमित हो गया और नाता टूट सा गया । मगर फ़िर से अभी हाल ही में पुराने मित्र साथियों ने याद दिलाया कि आप तो खो गए हैं शायद इस दुनिया से । घर में अब नेट उपलब्ध है सो दोबारा शुरू हो गया , और बहुत जल्द ही उसी आदत और हालत में पहुंच जाऊंगा ।

अभी हाल ही में रेडियो जापान हिंदी सेवा द्वारा उनके एक सामयिक कार्यक्रम "दोच्चि" (जिसमें किसी भी दिए गए विषय पर दो चार मिनट में अपने विचार रखने होते हैं )के लिए मुझे रिकार्ड किया गया इसी वृहस्पतिवार को प्रसारित किया गया ।जिसे आप नीचे सुन सकते हैं । इन सेवाओं से जुडने का एक अपना ही आनंद है । तो आप भी जुडें और






शुक्रवार, 7 मई 2010

"ब्लोग बातें" का दूसरा अंक प्रकाशित होकर आया



जैसा कि आप सबको सूचित कर ही दिया था कि "ब्लोग बातें "नामक स्तंभ को शुरू करने जा रहा हूं ताकि ब्लोग्गिंग में चल रही बातों को और भी विस्तार दिया जा सके । उनकी पहुंच प्रिंट के आम जनमानस तक भी हो । उन्हें भी पता चले कि हिंदी ब्लोग्गिंग में सिर्फ़ लफ़्फ़ाजी नहीं की जा रही है । वर्तमान योजना के तहत इसमें किसी भी सामयिक विषय पर सप्ताह भर में लिखी गई पोस्टों में से कुछ चुनिंदा का जिक्र किया जा रहा है । एक प्रयोग के तौर पर इसे शुरू किया गया था , और मुझे खुशी है इस बात की ,कि इसे अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है । एक एक अंक दस से पंद्रह स्थानों पर छप रहा है । आगे के लिए ये योजना है कि ऐसा ही एक विशेष स्तंभ " ब्लोग बतंगड" के नाम से शुरू किया जाए जो सिर्फ़ एक ब्लोग पर आधारित होगा उसकी खूबियों को और ब्लोग्गर का परिचय करवाता हुआ । आप सबको प्रयास पसंद आएगा इसकी उम्मीद है मुझे । अब ये अंक देखिए , समाचार पत्र अपनी अपनी पसंद के हिसाब से इसे नाम देकर छाप रहे हैं । ये पंजाब (पटियाला )से प्रकाशित पत्र पायलट है जिसने इसे "ब्लोग हलचल " के नाम से प्रकाशित किया है

चित्र पर क्लिक करके जो छवि खुले उसे चटका कर पढ सकते हैं ॥

गुरुवार, 6 मई 2010

भारत में उठी यौन व्यवसाय पर एक बहस ( मेरा एक प्रकाशित आलेख )

दैनिक महामेधा दिल्ली में आज ही प्रकाशित आलेख जो "मुद्दा "
स्तंभ के अतंर्गत प्रकाशित हुआ है । अबकि बार आप बस एक
क्लिक करें छवि बडी ही नहीं बहुत बडी हो जाएगी ।

बुधवार, 5 मई 2010

सिलिगुडी की यात्रा , गुलाबी चाय और बैंकिंग परीक्षा (यात्रा संस्मरण )




कल की पोस्ट में जब कहा कि केले खाने का मन नहीं था , तो उसके पीछे कोई विशेष कारण नहीं था बल्कि ,केले खाने का मन इसलिए नहीं था क्योंकि उस गर्मी में पौलोथिन में शायद उतनी बुरी हालत उनकी भी होती जितनी कि हम दोनों जन के बीच में पिस जाने से हुई अब इस हालत में उन केलों को उन्हीं जाम में बाहर सडक किनारे विसर्जन करना ही उनको सच्ची श्रद्धांजलि होती , और हमने भी दे ही दी बस मजे में टनटना कर रुक गई थी और सवारियां भी बाहर निकलने के लिए बेताब थीं हमने भी कौन सा सुरक्षा पेटियां बांधी हुई थीं सो हम भी बाहर को निकल लिए

वाह क्या नजारा था , ऐसा लग रहा था मानो बौर्डर पर लगे जाम को फ़ुल्ल्म फ़ुल इंज्वाय किया जा रहा था पुलिस अपने काम में मशगूल थी जैसे तैसे आढे टेढे करके ट्रकों को टोल टैक्स लेकर , और शायद कुछ अपना टैक्स लेकर भी, निकलने की जगह दी जा रही थी वहां लगने और लगाए जाने वाले नियमित जाम का ही असर था ये शायद कि वहां पर बहुत बडी तादाद में खाने पीने के चीज़ें बेचने वाले खडे थे हम दोनों भी बस में लग रही उमस से बचने और कुछ पेट पूजा के जुगाड में नीचे उतरे और कुछ ऐसा ही मोबाईल खाद्य पदार्थ ले लिया थोडी देर सभी सवारियां सडक किनारे खडी होकर हाथ पांव सीधी करती रहीं तभी कंडक्टर ने ईशारा किया चलिए अंदर सब थोडी देर के बाद बस सरकने लगी और आधे घंटे में हम जाम के बाहर थे मौसम में बढती उमस ने बता दिया था कि बहुत जल्द ही तेज़ बारिश हो सकती है , और हुआ भी वही थोडा सा आगे बढने पर तेज़ तूफ़ानी अंधड चलने का एहसास हुआ बस की स्पीड अपने आप कम हो गई ।इसके बाद झमाझम बारिश बारिश इतनी तेज़ थी कि ड्राईवर को चाहते हुए भी एक जगह पर साईड करके बस को रोक कर खडा होना पडा

बारिश की रफ़्तार थोडी कम हुई तो बस ने धीरे धीरे अपनी रफ़्तार बढानी शुरू की आगे जाकर बारिश बंद हो गई थी और ठंडी हवाएं तन मन को सुकून पहुंचा रही थीं आगे बैठे हुए कडंक्टर को बता दिया गया था कि हमें कहां उतरना है वो शायद किसी चाय बागान का पता था जो कि सिलिगुडी शहर से थोडा पहले पडता था , हम बता कर चुपचाप फ़िर झपकी मारने लगे नींद तब खुली जब कंडक्टर ने बाकायदा झंझोड के उठाया और बताया कि बाबूजी उठिए , आपका स्टौप आने वाला है मेरी तो आंखें खुलते ही जो नज़ारा मुझे दिखाई दिया उसने देखने की शक्ति को दोगुना और सुनने की शक्ति को आधा कर दिया गुलाब जी उससे पूरी जानकारी ले रहे थे और हम खिडकी पर मौजूद होने का पूरा फ़ायदा उठाते हुए मीलों तक फ़ैली हुई हरियाली को निहार कर तरे जा रहे थे समझ रहे थे कि अगले तीन चार दिन आंखों के लिए बडे ही अनमोल रहने वाले हैं

बस में से देखा कि दोनों तरफ़ चाय बागानों की हरियाली फ़ैली हुई थी ऐसा लग रहा था जैसे पहाडियों ने हरी चादर ओढ रखी है , नहीं चादर नहीं शायद लहर दार दुशाला , बारिश में धुल कर चाय के पौधों की पत्तियां यूं चमक रही थीं , मानों कह रही हों ये है धरती का असली रंग सडक बिल्कुल सपाट और सीधी सुबह लगभग साढे नौ बजे हम एक चाय बागान के स्टौप पर उतर गए गुलाब जी को मोहन जी ने बता दिया था सारा पता सो उन्हीं के निर्देशों का पालन करते हुए हम लोग वहां उतर गए थे उतर के देखा तो मोहन जी भी मजे में वहीं हमारा इंतज़ार कर रहे थे गुलाब जी का वहां पर रुकना पहले से तय था मगर हमारी कुछ टालमटोल थी , सो हमें भी साथ आया देख मोहन नी प्रसन्न हो उठे , आखिर कल होने वाली बैंकिंग परीक्षा के टिप्स भी तो हमारे साथ ही थे

रात को वहां भी बारिश हुई थी , मगर पहाडों की यही तो खासियत होती है कि बारिश के बाद पानी ठहरने , कीचड कादो होने की कोई गुंजाईश नहीं होती हम सब उस छोटी छोटी बजरीली भूमि के कच्चे मगर चौडे चढाईनुमा रास्ते पर बढते जा रहे थे मैं कब से चाय के पौधों को एक बार छूना चाहता था , सो सबसे पहला काम तो वही किया कि के पौधे पर हाथ फ़ेरा मेरी आशा के विपरीत उन पौधों की पत्तियां कडी थीं , बहुत ही सख्त हां ऊपर की छोटी छोटी नई पत्तियां जरूर कोमल थीं मोहन जी , जो चार दिन पहले से डटे हुए थे उनसे कुछ जानना चाहा तो उन्होंने कहा , यार चाचा जी से ही पूछना कुछ भी हम तो बस पढाई में व्यस्त रहे हमें बाद में जाकर पता चला कि वे अपने चाचाजी के पडोस में स्थित एक घर में रह रहे परिवार में एक जबरन बनाए हुए एक भैय्या और भौजाई के यहां भौजाई की छोटी बहिन जी के साथ पढाई कर रहे थे वहां उन्हें भरपूर आदर सत्कार के साथ उदर संतुष्टि भी इसलिए मिल रही थी ,क्योंकि भौजाई को पता चला था कि मोहन जी जल्द ही बैंक में बडे अफ़सर लगने वाले हैं , और उन्हें ये भी पता था कि बैंक में काम करने वालों को पैसे को कोई कमी नहीं रहती , सारा पैसा उनका अपना होता है खैर , एक और चीज़ जो मुझे आकर्षित कर रही थी वो थी वहां के बांस ऐसे बांस मैंने पहली बार देखे थे

आम तौर पर मिलने वाले बांसों से बिल्कुल ही अलग , हल्के हरे रंग के , लंबे कम मगर मोटाई चौडाई बहुत ज्यादा देखने पर लग रहा था जैसे पोपले से हों , मगर खासे मजबूत इसका अंदाज़ा भी इस बात से हुआ कि आगे जाकर देखा तो वहां लोगों ने अपने घर झोपडियां बनाने में उसका भरपूर उपयोग किया हुआ था पक्के मकान के नाम पर अब तक जो दिखा था वो मोहन जी के चाचा जी वाला स्कूल था हम लोग शायद एक किलोमीटर चल चुके थे , मगर पता ही नहीं चल रहा था , चढाई होने के बावजूद सुबह की चमकीली धूप और ठंडी हवा , कुल मिला के कौकटेल का मजा दे रहे थे , और चखना के रूप में चारों ओर फ़ैली हरियाली थी ही थोडी देर में चाचाजी के घर पहुंच चुके थे वहां ज्यादा आबादी नहीं थी चाचाजी से पूछा तो उन्होंने बताया कि चाय बागानों में काम करने वाले मजदूर सभी स्थानीय लोग ही थे यहां तो टाटा साहब के अन्य संस्थानों , मसलन वहां स्थित स्कूल, अस्पताल आदि में कार्यरत कर्मचारी लोग ही थे कोई जगह की कमी नहीं , जिसको जहां मन था घर बना लिया गया था , वही बांस वाला

चाचीजी हम लोगों को देख कर बहुत ही खुश थीं हमें वो नहीं पहचानती थीं , मगर बाबूजी को जरूर जानती थीं सो जान गईं कि हम आखिर हैं कौन जाते ही गर्मागर्म चाय मिली मगर ये क्या गुलाबी रंग की चाय उस चाय से खुशबू भी एकदम अलग सी रही थी मैंने अचंभित होकर थोडा सा झिझकते हुए चाची की तरफ़ देखा तो वे बोलीं बेटा ये चाय सीधा चाय के पौधों से तोडी गई कोमल पत्तियों की है , हम यहां यही चाय पीते हैं , तुम्हें अच्छी लगेगी यकीन मानिए मैंने अब तक कुछ यादगार प्यालियां सुडकी हैं चाय की उनमें से एक ये भी थी ठंडे ठंडे पानी से नहा धो कर हम थोडा सा तैयार शैयार हुए परीक्षा कल थी , गुलाब और मोहन जी की पहली पाली में तो मेरी दूसरी पाली में चाची ने कहा कि हम थक कर आए होंगे इसलिए हमें थोडा आराम कर लेना चाहिए मगर मन कहां मानने वाला था सो हमने सबने तय किया कि अभी थोडी देर में नाश्ता वैगेरह करके आसपास ही घूमा जाए

चाची ने गर्मा गर्म रोटियां बनाई , और वो भी सफ़ेद उजली बिल्कुल झक , खाया तो पता चला कि चावल के पिसे हुए आटे की थीं , साथ में अपनी गैया का गर्मा गर्म दूध और गुड ओह ये वो रेसिपि है जो दुनिया में कहीं और नहीं मिल सकता ही किसी खाने खजाने में वो स्वाद मिल सकता था हमने फ़टाफ़ट वो उडा कर बाहर का रुख किया साथ में चाचा जी का बडा बालक राम , जो खुद भारतीय नेवी में जाने की तैयारी कर रहा था , हमारे साथ हो लिया हमने राम से कहा कि हमें बागान और उसके आसपास की जगह घुमाए राम ने बिल्कुल मंझे हुए गाईड की तरह हमें घुमाया मीलों तक फ़ैले चाय के बागान , और चाय के पौधों , उनके रखरखाव , उनकी देखभाल , उनमें से पत्तियों का तोडा जाना , जैसी बहुत सी जानकारियां उसने दीं राम ने बताया कि चाय का पौधा बहुत ही मजबूत होता है , इतना कि उसकी जडें और शाखें , टेबल और फ़ैसी फ़र्निचर के पाए बनाने के काम भी आते हैं बरसात के बाद जब नई नई कोपलें और कोमल पत्तियां निकलती हैं तो वे ही चाय पत्ती बनाने के लिए तोडी जाती हैं पुरानी पत्तियों को वैसे ही छोड दिया जाता है समय समय पर उनमें खाद वैगेरह भी डाली जाती है

ओह .............ये प्रवास तो तीन चार दिनों का था सो आज भी सब कुछ नहीं कहा जा सकता .........तो फ़िर कल मिलते हैं चाय के बागानों के बीच
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