प्रचार खिडकी
रविवार, 30 जुलाई 2017
ख़्वाब करेंगे गुफ्तगू अब .....
लेबल:
दो पंक्तियां,
बिखरे आखर,
हिंदी पंक्तियां
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
रविवार, 23 जुलाई 2017
बहुत गहरी हैं ये आँखें मेरी
लेबल:
बिखरे आखर,
शब्द चित्र,
हिंदी पंक्तिया
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
सोमवार, 17 जुलाई 2017
चंद कतरे , लिखे अनलिखे से
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
रविवार, 2 जुलाई 2017
घर मेरे भी ,बिटिया किलकने लगी है
अब नर्म धूप,
मेरे आँगन भी,
उतरने लगी है।
टिमटिमाते तारों की रौशनी,
और चाँद की ठंडक,
छत पर,
छिटकने लगी है।
पुरबिया पवनें,
खींच लाई हैं,
जो बदली , वो,
घुमड़ने लगी है।
दर्पर्ण मांज रहा है,
ख़ुद को,
आलमारी भी,
सँवरने लगी है ।
फूलों के खिलने में,
समय है,
कलियों पर ही,
तितलियाँ,
थिरकने लगी हैं।
शायद ख़बर,
हो गयी सबको,
घर मेरे भी, बिटिया,
किलकने लगी है.......
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
सदस्यता लें
संदेश (Atom)