अब क्षेत्रवाद का मैच ये,
और भी रोचक होगा,
नारे-दंगे, लाठी- डंडे,
सभी कहेंगे , बाप रे॥
मंजे हुए दोनों कप्तान,
इक पांडे, इक ठाकरे॥
अब जलने को तैयार रहो,
तिल तिल कर हर बार मरो,
इक डालेगा पैट्रोल, दूजा,
लगवाएगा आग रे ॥
पांडे बोले , जो बिदके,
अबकी उलटा सीधा,
तो न ताज रहें न राज रे॥
भागी सेना, पहुँची थाने,
डर और चिंता, लगी सताने,
गाने लगे, सब,
सुरक्षा का राग रे॥
गरीब भला ये क्या जाने,
आया था दो रोटी कमाने,
पीछे पड़ा , बोली-भाषा का नाग रे॥
चलिए , भगवान् करे पांडे ठाकरे टीम के इस मैच में किसी निर्दोष का विकेट न गिरे, मगर मुझे डर है की ऐसा ही होगा...
प्रचार खिडकी
शुक्रवार, 14 नवंबर 2008
पांडे V/S ठाकरे ( राजनीति का २०-२० )
लेबल:
बंटी पांडे,
राज ठाकरे,
व्यंग्य कविता
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
रविवार, 9 नवंबर 2008
दोस्त परेशान है , बताइए क्या करे
जब कोई आपके आसपार परेशान या दुखी हो तो जाहिर है की उसके प्रभाव से आप भी बच नहीं सकते, यदि आप सचमुच इंसान हैं तो , जरूर ही। बातों बातों में ही दोस्त से पता चल की आजकल वो बेहद परेशान चल रहा है , उसे कुछ भी नहीं सूझ रहा की क्या करे और कैसे इस परेशानी से निकले , हलाँकि मैंने उसे सभी मानवीय और कानूनी उपाय और रास्ते भी बता दिए हैं लेकिन मुझे नहीं लगता की वो इसमें से बाहर आ पाया है, जब मैं भी नहीं जानता कि, उसे कौन सा रास्ता अपनाना चाहिए, इश्वर करे उसे ये न पता चले कि मैंने उसकी समस्या यहाँ रख दी।
दरअसल कुछ साल पहले नौकरी की तलाश में गों से शहर आया, खूब भाग दौड़ के बाद एक अच्छी सी नौकरी भी मिल गयी, और किस्मत से अच्छी सी छोकरी भी, जी हाँ अपने दोस्त को या उनकी धर्मपत्नी जी को प्यार हो गया, परिणाम ये कि दोनों अलग क्षेत्र, अलग भाषी, और अलग संस्कृति के बावजूद, बहुत से विरोधों के बावजूद परिणय सूत्र में बाँध गए.दोनों की आपसी समझ भी अच्छी ही है, मगर आजकल स्थिति कुछ ठीक नहीं है। दोस्त के बूढे माँ बाप, जब कुछ दिनों के लिए गाओं से यहाँ शहर में अपने बेटे और बहू के पास रहने आए तो दिक्कत शुरू हो गयी। पता नहीं कौन सही है कौन ग़लत, किसका व्यवहार ठीक है किसका नहीं, दोनों के पास अपने अपने तर्क हैं, और एक लिहाज से दोनों ही कभी ठीक तो कभी ग़लत होते हैं। अब मुश्किल ये है कि दोनों ही एक दूसरे को देखना भी नहीं चाहते, नहीं सहायद मैं ग़लत कह गया, दरअसल हमारी भाभी जी को दोस्त की माताजी से बिल्कुल ही खुन्नस हो गयी है, और इसके लिए उनके पास शायद लाखों तर्क हैं। दोस्त ने प्यार से तकरार से, मान मनौव्वल से , रूठ कर और सख्ती से भी प्रयास कर देख लिया, मगर अफ़सोस कोई बात नहीं बनी। एक बार तो ऐसा समय आ गया कि दोस्त ने माँ बाप के लिए सब कुछ छोड़ने का फैसला कर लिया, मगर फ़िर अपने बच्चों के कारण ऐसा भी नहीं कर पाया।
अब हालात ये हैं कि वो कशमकश में फंसा हुआ , बेचारा सबसे पूछ रहा है कि क्या करे, माँ बाप को इस बुढापे में छोड़ दे या फ़िर बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दे।
मुझे तो सिर्फ़ एक ही रास्ता सूझा , वो ये कि , नहीं दोनों में से कुछ भी नहीं कर सकता इस लिए जब तक कर सकता है कोशिश करता रह और अपना कर्म भी , बिना कुछ सोचे और समझे।
अब ये बताइए, विशेषकर महिला समाज से तो जरूर ही जानना चाहूंगा कि दोनों ही औरतें उसकी जिम्मेदारी हैं उसका जीवन भी और दायित्व भी, तो ऐसे में वो क्या करे ..........?
दरअसल कुछ साल पहले नौकरी की तलाश में गों से शहर आया, खूब भाग दौड़ के बाद एक अच्छी सी नौकरी भी मिल गयी, और किस्मत से अच्छी सी छोकरी भी, जी हाँ अपने दोस्त को या उनकी धर्मपत्नी जी को प्यार हो गया, परिणाम ये कि दोनों अलग क्षेत्र, अलग भाषी, और अलग संस्कृति के बावजूद, बहुत से विरोधों के बावजूद परिणय सूत्र में बाँध गए.दोनों की आपसी समझ भी अच्छी ही है, मगर आजकल स्थिति कुछ ठीक नहीं है। दोस्त के बूढे माँ बाप, जब कुछ दिनों के लिए गाओं से यहाँ शहर में अपने बेटे और बहू के पास रहने आए तो दिक्कत शुरू हो गयी। पता नहीं कौन सही है कौन ग़लत, किसका व्यवहार ठीक है किसका नहीं, दोनों के पास अपने अपने तर्क हैं, और एक लिहाज से दोनों ही कभी ठीक तो कभी ग़लत होते हैं। अब मुश्किल ये है कि दोनों ही एक दूसरे को देखना भी नहीं चाहते, नहीं सहायद मैं ग़लत कह गया, दरअसल हमारी भाभी जी को दोस्त की माताजी से बिल्कुल ही खुन्नस हो गयी है, और इसके लिए उनके पास शायद लाखों तर्क हैं। दोस्त ने प्यार से तकरार से, मान मनौव्वल से , रूठ कर और सख्ती से भी प्रयास कर देख लिया, मगर अफ़सोस कोई बात नहीं बनी। एक बार तो ऐसा समय आ गया कि दोस्त ने माँ बाप के लिए सब कुछ छोड़ने का फैसला कर लिया, मगर फ़िर अपने बच्चों के कारण ऐसा भी नहीं कर पाया।
अब हालात ये हैं कि वो कशमकश में फंसा हुआ , बेचारा सबसे पूछ रहा है कि क्या करे, माँ बाप को इस बुढापे में छोड़ दे या फ़िर बच्चों का भविष्य दांव पर लगा दे।
मुझे तो सिर्फ़ एक ही रास्ता सूझा , वो ये कि , नहीं दोनों में से कुछ भी नहीं कर सकता इस लिए जब तक कर सकता है कोशिश करता रह और अपना कर्म भी , बिना कुछ सोचे और समझे।
अब ये बताइए, विशेषकर महिला समाज से तो जरूर ही जानना चाहूंगा कि दोनों ही औरतें उसकी जिम्मेदारी हैं उसका जीवन भी और दायित्व भी, तो ऐसे में वो क्या करे ..........?
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
शनिवार, 8 नवंबर 2008
औरत एक अंतहीन संघर्ष यात्रा
अपनी पिछले पोस्ट में नारी ने मुझे शिकायत की , कि मैंने ब्लॉग्गिंग पर लिखे और छपे अपने विस्तृत आलेख में महिला ब्लोग्गेर्स के लिए ज्यादा नहीं लिखा, हलाँकि मैंने उन्हें आश्वाशन दे दिया है कि जल्दी ही मैं उनकी ये इच्छा भी पूरी कर दूंगा, मगर फिलहाल मुझे लगा कि शायद ये उपायुक्त अवसर होगा कि महिला जीवन पर मेरा एक आलेख को मैं यहाँ पर छाप सकूं।
* छपे हुए आलेख को पढने के लिए उस पर क्लिक करें.
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
शुक्रवार, 7 नवंबर 2008
ब्लॉग्गिंग पर मारा आलेख २९ समाचार पत्रों में छपा
जैसा की बहुत पहले ही सोचा था कि जब ब्लॉग्गिंग हो ही रही है तो , इसके बारे में अन्यत्र भी चर्चा होनी चाहिए, खासकर उन माध्यमों में तो जरूर ही जहाँ मैं सक्रिय हूँ, पहले रेडियो, फ़िर प्रिंट में भी सोचा था, आखिरकार ब्लॉग्गिंग के विषय में पहला आलेख फीचर के माध्यम से अब तक २९ समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में छपा। सबसे अच्छी बात ये रही कि ये आलेख, हैदराबाद, श्रीगंगानगर, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार आदि कई राज्यों में छपा। मेरी कोशिश तो यही रही कि सब कुछ लिख सकूँ , पर जाहिर है कि एक ही पोस्ट में ऐसा सम्भव नहीं था, इसलिए फैसला किया है कि ,जल्द ही एक नियमित स्तम्भ , "ब्लॉग बातें " विभ्हिन्न समाचार पत्रों में दिखाई देगा, योजना को मूर्त रूप देने में लगा हूँ, आप लोगों का साथ रहा तो जल्दी ही और भी कुछ सामने आयेगा.
लेबल:
नियमित,
पर आलेख,
ब्लॉग बातें,
ब्लॉग्गिंग,
स्तम्भ
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
मंगलवार, 4 नवंबर 2008
लीजिये अब पौधे भी करेंगे ब्लॉग्गिंग
जी हाँ, आप ये कदापि न सोचें कि, मैं यूँ ही कोई रद्दी माल उठा कर आपके सामने परोस रहा हूँ। ये बिल्कुल सच है ,आप ख़ुद ही sochiye कि यदि कोई पौधा ये कहता है कि आज तो बहुत अच्छा लगा, दिन भर गुनगुनी धुप सेंक कर बड़ा अच्छा लगा , वो भी अपने ब्लॉग पर तो कैसा लगेगा, खैर आप जब तक ये सोचें कि आप उस पौधे की पोस्ट पर क्या टिप्प्न्नी करेंगे, तब तक में आपको पूरी ख़बर बताता हूँ।
दरअसल जापान में एक विशेष तकनीक विकसित की गयी है जिसके जरिये पौधा भी अपनी भावनाएं ब्लॉग के माध्यम से व्यक्त कर सकेगा। एक इन्टरनेट कैफे में लगा मदोरी सेन नामक एक पौधा नियमित रूप से इन्टरनेट पर ब्लॉग लिख रहा है। वैज्ञानिकों द्वारा आविष्कार किए गए सेंसर के माध्यम से पौधे की भावनाओं को जापानी भाषा में ( यहाँ ये बता दूँ कि जापानी भाषा में इसलिए कि आंकडों के अनुसार दुनिया में सर्वाधिक पोस्ट जापानी भाषा में ही किए जाते हैं ) अनुवाद कर उसके ब्लॉग पर डाल दिया जाता है ।
अब बताइये है न कमाल की बात, यार ये जाप्नीयों के दिमाग में होता क्या है। वैसे मैं सोच रहा हूँ कि यदि मुझे भी ये प्रोग्राम मिल गया तो सबसे पहले मैं आलू , प्याज, और टमाटर के अन्दर उसे फ़िर करके पोस्ट करवाउंगा, और जरूर पूछूंगा कि भाई, कब तक तुम्हारी वजह से मीर हैसियत यूँ गरीबों वाली रहेगी।
आप भी सोचें कि आपने किस पौधे से क्या पोस्ट करवाना है,या कौन सी टिप्प्न्नी करनी हैं।
अब होगी ओबामा और ओसामा की लडाई : - मेरे मित्र पलटू राम की ये आदत कभी नहीं जायेगी, कि वो हमेशा किसी भी चीज को, घटना को, दुर्घटना को भी उल्टे होकर देखते हैं, पता नहीं शायद उल्टे पैदा हुए थे। खैर जब उनसे पूछा कि क्यों भाई सबसे शक्तिशाली आदमी के रूप में ओबामा को ही देखा जा रहा है क्या कहते हो। वो कहने लगे, यार ये तो पता नहीं मगर मुझे लगता है कि यदि ओबामा जीत गए तो ओसामा को नहीं छोडेंगे, देखो न कितना मिलता जुलता नाम है, उन्हें इसी का कोम्प्लेक्स सताता रहेगा, तो लगता है कि जल्दी ही कोई बड़ी लड़ाई छिड़ने वाली है, कमाल है ये कौन सा एंगल था यार.
दरअसल जापान में एक विशेष तकनीक विकसित की गयी है जिसके जरिये पौधा भी अपनी भावनाएं ब्लॉग के माध्यम से व्यक्त कर सकेगा। एक इन्टरनेट कैफे में लगा मदोरी सेन नामक एक पौधा नियमित रूप से इन्टरनेट पर ब्लॉग लिख रहा है। वैज्ञानिकों द्वारा आविष्कार किए गए सेंसर के माध्यम से पौधे की भावनाओं को जापानी भाषा में ( यहाँ ये बता दूँ कि जापानी भाषा में इसलिए कि आंकडों के अनुसार दुनिया में सर्वाधिक पोस्ट जापानी भाषा में ही किए जाते हैं ) अनुवाद कर उसके ब्लॉग पर डाल दिया जाता है ।
अब बताइये है न कमाल की बात, यार ये जाप्नीयों के दिमाग में होता क्या है। वैसे मैं सोच रहा हूँ कि यदि मुझे भी ये प्रोग्राम मिल गया तो सबसे पहले मैं आलू , प्याज, और टमाटर के अन्दर उसे फ़िर करके पोस्ट करवाउंगा, और जरूर पूछूंगा कि भाई, कब तक तुम्हारी वजह से मीर हैसियत यूँ गरीबों वाली रहेगी।
आप भी सोचें कि आपने किस पौधे से क्या पोस्ट करवाना है,या कौन सी टिप्प्न्नी करनी हैं।
अब होगी ओबामा और ओसामा की लडाई : - मेरे मित्र पलटू राम की ये आदत कभी नहीं जायेगी, कि वो हमेशा किसी भी चीज को, घटना को, दुर्घटना को भी उल्टे होकर देखते हैं, पता नहीं शायद उल्टे पैदा हुए थे। खैर जब उनसे पूछा कि क्यों भाई सबसे शक्तिशाली आदमी के रूप में ओबामा को ही देखा जा रहा है क्या कहते हो। वो कहने लगे, यार ये तो पता नहीं मगर मुझे लगता है कि यदि ओबामा जीत गए तो ओसामा को नहीं छोडेंगे, देखो न कितना मिलता जुलता नाम है, उन्हें इसी का कोम्प्लेक्स सताता रहेगा, तो लगता है कि जल्दी ही कोई बड़ी लड़ाई छिड़ने वाली है, कमाल है ये कौन सा एंगल था यार.
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
सदस्यता लें
संदेश (Atom)