और देखिए कि पोजवा भी उहे है |
प्रचार खिडकी
शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011
वही बातें वही अंदाज़ है , हां बदला बदला कुछ आज़ है
लेबल:
आम आदमी,
दो पंक्तियां,
बिखरे आखर,
मन की बात
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
मंगलवार, 27 दिसंबर 2011
कुछ कहते ,कुछ सुनते
लिखते थे कागज़ पर कभी , इस ब्लॉगिरी ने मि.खिटपिट बना दिया ,
पढते थे कुछ कागज़ कभी , फ़ेसबुक ने चेहरों को ही पुस्तक बना दिया,
आगे का सितम , न पूछो और हमसे सनम यूं खुलेआम कभी ,
रही सही जो बांकी थी , वो भी गई , इस मुएं ट्विट्टर ने 1:40 का लोकल बना दिया
चुनाव जीत दें अन्ना को जवाब , मेड्म्म जी का आदेश हुआ ,
लोकपाल से जनलोकपाल , हाय जी का ये कलेश हुआ ........
उफ़्फ़ आदत ही लग गई खसोटने की , अब इस देश का देखभाल उनसे किया नहीं जाता ,
साठ बरसों के लोकतंत्र में ,पहली बार मांगे जनता , इक लोकपाल तक दिया नहीं जाता ।
करवट भर बदल के , जम्हाई जरा तोडी भर है ,
अवाम के हुंकार से ही सियासत कांप रही थर थर है
सियासत के जिम्मे था वो विकास का माहौल बनाएगी ,
अबे हमें क्या मालूम था , ससुरी लोकतंत्र का माखौल उडाएगी
पहले निपट लो ज़रा इस लोकपाल से , सत्ता वालों ,
अब तो हर कानून से पहले , तुमसे ज़िरह होगी
जयललिता ने प्रधान जी से मुलाकात कर बढाया दबाव ,
नोंच नांच के हर कोई खाय , पिरधान जी बने हड्डी कबाब
मुशर्र्फ़ जानते थे आईएसआई ने लादेन को छिपा रखा है ,
तो का हुआ बे ओबमवा के डायरी में मुशर्रफ़ का भी एड्रेस लिखा रखा है
सरकार को आशंका है ,फ़िर बढ सकते हैं पेट्रोल के दाम ,
अबे ये क्यों हो रिया है , जब चचा सैम निपटा लिए ओसामा सद्दाम
मायावती ने चार मंत्रियों को किया बर्खास्त ,
लेट बहुत हो गया बहिन जी , सरकार का खुदे ,सांस है लास्ट
सालाना रपट कुछ इस तरह की , हम रहे हैं ठेल ,
कुछ पिटाए ,कुछ जेल गए , डाग्दर मोहन भी हो गए फ़ेल ,
लोकपाल एक्स्प्रेस चली तो सरकार हुई डिरेल ,
पचास परसेंट में भारी छूट , लगी आरक्षण महासेल ...
अगले एक हफ़्ते में साल भर की रपट पिरसतुत की जाएगी सीरीमान ,
चुल्लू भर पानी ,सरकार के लिए , हाय इत्ता जनता देने को ,बैठी है सम्मान ..
ल्यो जी सरकार अपनी बेशर्मी ,और लोग अपने सब्र का पैमाना जांच रहे हैं ,
बुद्धू बक्सा बोका भया , बिग बास में ,कुछ इंसान ,बंदर बनके नाच रहे हैं
लेबल:
बिखरे आखर,
रद्दी की टोकरी
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
बुधवार, 30 नवंबर 2011
चंद पंक्तियां , बिखरी सिमटी सी
कभी बिकते हैं , कभी किसी के खरीददार हो गए हैं ,
संभालो बे इस देश को ,हम तो बस ,बाज़ार हो गए हैं ॥
पत्थर का जंगल , बस रहा है ,बहुत बेतरतीब सा ,
बुत सा एक प्रधान मिला ,देश हुआ बदनसीब सा ॥
अबे कित्ते दिनों तक यूं गोलघर में काम नहीं करोगे ,
कभी झांक के देखना आईने में ,वहीं डूब के मरोगे ॥
अबे रुको , हटो बे , हमसे न कहना कि संभलो , आगे मंदी है ,
हम जनता जनार्दन हैं झेल लेंगे , बेशक सियासत की नज़र गंदी है
डेली धमाल से देस का पोलटिस में उठा रे गजब बवाल ,
दो सोटे उसके पीछे , और दो इसके , सबका लालम लाल ॥
आज अचानक शाम को ठंड का एक थपेडा चेहरे से टकराया ,
मैंने पूछा तो , शर्माता सकुचाता ठंड का मौसम बोला , अभी आया अभी आया ॥
बहिन जी :केंद्र में आने पर देंगे 365 दिन रोजगार ,
टीए डीए का चिंता न करें , एक एक ठो हाथी भी सबको देगी सरकार ॥
बहिन जी : राहुल की नींद हाथी ने उडाई है ,
बस इत्ता और बता दो ,हथवा कमाइस जादे कि हथिनी कमाई है ॥
हमारे हवाई अड्डे खाली करे अमेरिका : पाकिस्तान
हम वहां बस अड्डे खोलना चाहते हैं : पाकिस्तान
भक्तजनों , संसद में फ़िर से ,कुकुर कटौंज है ज़ारी ,
अईसन जमा के मारा हाय जनता का हाथ बडा रे भारी ॥
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
शनिवार, 12 नवंबर 2011
फ़िर वही बातें , फ़िर वही अंदाज़ है
चित्र गूगल सर्च से लिया गया है , साभार , मूल स्वामी से , |
तो प्रजाजनों ,आज के भी यही हैं बस मुख्य समाचार ,
आप फ़िकर कतई न करें , खुद सरकार कर रही है देश का बंटाधार
अबे साईर न समझो हमको ,हम दिल के फ़ुंके , दिल के जलाए हुए हैं ,
जानते हैं कि जो मौका मिला , हिला देगी दुनिया , इसलिए हमही दुनिया हिलाए हुए हैं
बहुत मशरूफ़ रहा इस दुनिया में , अब कुछ समय अज्ञात में कटेंगे ,
जाने कितने बरस कट गए , बात बात में , अब कुछ बेबात में कटेंगे .
ज़िंदगी अब यूं न इतराया कर , अब पहले सी मुहब्बत नहीं रही तुझसे ,
ले बता भी दिया है सीना ठोककर , बाद शिकायत करती नहीं कही तुझसे
मेड्डम्म जी :सिर्फ़ भाषण से और आरोप लगाने से नहीं मिटेगा भ्रष्टाचार
पब्लिक जी : ये दोनों भी तो आप और आपके ही नेताजी करते हैं सरकार ..
लाखों टन अनाज़ सड गया , मगर मर गई बुधिया भूखे ,
लीद (लीड ) न्यूज़ में फ़िर भी आया , वो महाशतक से चूके
कई बार सोचा ,चलो आज कुछ नहीं सुनते ,आज कुछ नहीं कहते ,
कोशिश की भी ,मगर नाकाम रहे , समझ गए कि चेहरे कभी चुप नहीं रहते
मेरे शब्दों का ,मुझसे ही , सबब पूछते हो ,
तुम जब भी पूछते हो , गजब पूछते हो ..
बिग बास में और बास फ़ैलाने को पहुंचे अग्निवेश ,
सांपनाथ जी , करेंगे करतब ,धर के नागनाथ का भेष
उफ़्फ़ हाय कि अब तो दे दो , चाहे दे दो बस ज़रा सी ,
पाकिस्तान भी कहने लेगा , अबे अब तो दे दो फ़ांसी
पीएम जी फ़रमाते हैं ,गिलानी शांति के दूत हैं ,
इत्ता और बता देते , कि कसाब और अफ़ज़ल , किस दूत के पूत हैं ...
उन दिनों ,जब इन जगहों पर सियासत के पहरेदार रहा करेंगे ,
तुम घबराना मत ,अरे आदत पुरानी है ,खत से सुना कहा करेंगे ..
इस दुनिया में, प्यार , सिर्फ़ एहसासों का ,इक धोखा है ,
नहीं मानोगे तुम , जानता हूं , खुद महसूस करो , हमने कब रोका है
लाख चाहे भी तो ये नज़रें , दिल से वफ़ा कहां कर पाती हैं ,
होंठ तो फ़िर भी साथ देते हैं इस झूठे दिले का , ये आंखें सच बयां कर जाती हैं
फ़साने मुहब्बत के हमें सुनाया न करो , हम खुद दीवाने हैं ,
जिनको अपना बनाने को , सबको किया बेगाना , आज वही अपने बेगाने हैं
इस देश का भाग्य हाय जाने लिखता कौन सा रे विधाता है ,
गरीब हटे न गरीबी , कभी सियासत कभी खुदाई ,रोज़ गरीब मिटाता है
लगा लेने दो ज़ोर सियासत को इस बार , सारा कस बल निकल जाने दो ,
या जला दो अब खोखले कानूनों को , ये फ़िर अब इस देश को जल जाने दो
अबे कौन सी दुनिया है ये , दिन दिन नहीं होता ,रात रात नहीं होती ,
न दिन में दिखते हैं गौरईयों के झुंड , ठंडी छत पर लेट के तारों से बात नहीं होती .
लेबल:
कुछ पंक्तियां,
चंद पंक्तियां,
दो पंक्तियां
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011
बतियाते बोलते अक्षर
Radio Japan |
वक्त ने हमें भी ,इक बार बस प्यार से जो थामा ,
उस वक्त से इस वक्त तक , बस होता रहा हंगामा
जब से नेता जी लगे खेलने ,
चिट्ट्ठी चिट्ठी हाय राम ,
सूचना के अधिकार से ,हाय ,
सब कुछ जान गया अवाम ,
मंत्री लडें कुकुर कटौंज ,
गठबंधन हुआ धडाम ,
पिरधान को चिंता हुई ,
क्या व्यर्थ गया मेडम का बलिदान ,
फ़ौरन ही मीटिंग बुला डाली ,
रोका जाए इसको,चाहे जुगत लगे तमाम ,
फ़ौरन एक उपाय मिला ,
चलो करते हैं ऐसा काम ,
सूचना दो न अधिकार उन्हें ,
लगा दो दुन्नो पर लगाम
उफ़्फ़ ये पब्लिक भी न सब चट से समझ जाती है ,कमबख्त ,
जो कल तक सुनाते थे दूसरों का फ़ैसला , आज खुद की ज़मानत ज़ब्त
मंत्री जी अरेस्ट हुए ,बढ गया बीपी ,चेहरा हुआ ज़र्द ,
कोई पकड के किडनी लोटा ,किसी के सीने में हुआ दर्द .
रथ का चक्का जाम हुआ , अब तो बस येदुरप्पा हो रिया ,
इस दशक का सबसे हिट पिक्चर ले के आ रहे हैं रेसमिया ..
आडवाणी की यात्रा पर लगा भ्रष्टाचार का ग्रहण ,
तो का घोडा उनका बिदक गया ,अबे किससे नहीं हुआ सहन
देखो ई बात तो समझ गए कि , भूषण बोले और हो गया बवाल ,
लेकिन ऊ कौन से थे रिपोर्टर बाबू , जो उनसे पूछे ई सवाल
पाक भारत को मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन का दर्ज़ा देगा
भारत , ताउम्र , कसाब की बिरयानी का खर्चा देगा
उपी का फ़्यूचर अब नहीं रहेगा डार्क ,
बहिन जी बनवाई हैं , करोडों का इक पार्क
रथ सारे निकल पडे ,और जाग गई है सीरी राम जी की सेना ,
लगता है अबकि राम राज आकर ही रहेगा ,अबे तो आने दे ना
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011
कुछ अनमना सा , कुछ अनकहा , कुछ अनसुना सा ...
प्लास्टिक थैला उत्पादन पर प्रतिबंध लगेगा ,
तुम देखना , इसका पैम्फ़लेट , पॉलिथिन में बंटेगा ....
हाय ! कित्ता पडा रे भारी , मैडम इटली का त्याग रे ,
दूध बन गया ज़हर समान , पेट्रोल में लग गई आग रे ...
बीच सडक पर , आज फ़िर जना एक मां ने बच्चा ,
मां तडपती सरे राह ,हाय देश , तेरा अर्थशास्त्र निकला कच्चा
अब तो ये तय है कि , जब तक ये सरकारी गाल रहेंगे ,
दिन रात इन पे पडते , जनता के चमाटों से लाल रहेंगे
काठ फ़ूस का इक रावण मिला , बताई अपने दिल की हूक ,
असली रावण राज कर रहे ,क्यों हर बार मुझको ही देते हो फ़ूंक .....
हाइटेक होगा आडवाणी का रथ ,
होता रहे , फ़िर भी मिलेगा गड्ढे वाला पथ ....
फ़ेसबुकियाओ , ऑरुकुटाओ , गुगलियाओ या ट्विट्टियाते रहो ,
कुदरत ने जब खाने वाले बख्शे हैं देश को , तुम सुबह शाम जुतियाते रहो
अबे ई खबर है , युवराज़ ने की मेट्रो और टैक्सी की सवारी ,
शुक्र मनाओ कि जनता अभी होश में , वर्ना छापते आरती कैसे गई उतारी
दादा बोले हैं कि दू हज़ार चौदह का चुनाव , युवराज की अगुवाई में ही लडा जाएगा ,
अबे एतना डिले कर दिए हो ,देखना, बियाह से पहले इनको वृद्धा पेंशन दिया जाएगा
अब जो आते हैं आंखों मे , उन्हें सपना कहूं तो कैसे कहूं
रोज़ गुजरते हैं जो बगल से अक्सर , मगर अपना कहूं तो कैसे कहूं
कहीं हो रहा कन्या पूजन , कहीं देवी का श्रंगार रे ,
वहीं हो रहा मान भी मर्दन , वहीं कोई ईलाज खर्च से रही जिंदगी हार रे ..
लो जी चार्ल्स शोभराज जी हैं एकदम्मे बेकसूर ,
बिग बॉस में उनकी कनिया proove कर देंगी जरूर .
मिलावटी पदार्थ बेचने वालों की खैर नहीं ,
तब तक कोई न बच पाए ,रहे इन्हें खरीदे बगैर नहीं
लो अबके हो लेगा ये बिग बॉस और भी मशहूर ,
तेरह गो कुल जनानी हैं , एक ठो शक्ति कपूर ....
एआईईईई पेपर लीक मामले की रिपोर्ट एचआरडी मंत्रालय ने दबाई !
जब देखो , दबने दबाने की खबर आती है , अबे इस मंत्रालय की कराओ दवाई
बहन जी ने कहा है कि अब आरक्षण का कोटा बढाया जाए,
इतना ही क्यों , हम तो कहते हैं , एक एक पत्थर का हाथी भी दिलाया जाए
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कविता,
दो पंक्तियां,
बिखरे आखर
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
शनिवार, 1 अक्तूबर 2011
दो पंक्तियां जो अक्सर मैं कह जाता हूं .......
आपके अपना |
नहीं तुम नहीं समझ सकते ,
सियासतदानों, तुमने कौन कब अपना खोया है ,
हिम्मत है तो किसी खिडकी से झांक लो उस घर में ,
जिसमें कल रात हर आंख का जोडा रोया है..
बुजुर्गों को बधाई , विश्व,आज बुजुर्ग दिवस मना रहा है ,
सुना प्रशासन थोक के भाव "वृद्धाश्रम " बना रहा है .
नए आरोपों पर बहस से , किया राजा ने इंकार ,
फ़िकर नॉट , पुराने से , तुम्हरा होगा बंटाधार
सात सालों से पीएम बिना छुट्टी लिए कर रहे हैं काम जी,
ओह इत्ती घनघोर ड्यूटी के बावजूद ,ये हुआ अंजाम जी
उसने व्रत के खर्चे का हिसाब लगाया ,
उससे सस्ते में तो दुर्गो पूजा हो रही थी ....
बारह पेज में बारह बस खबरें , हाय कैसा हुआ अखबार रे ,
नीचे लिखा गरीब मरा भूख से , ऊपर कुत्तों के बिस्कुट का प्रचार रे
पहले लिखी पाती , फ़िर अपनी ही बात से मंत्री जी गए पलट,
बंद कमरे में फ़िर चला इक डिरामा , सब मामला गया सुलट
अफ़ज़ल की फ़ांसी के खिलाफ़ हैं उमर ,
काश कोई नेता भी उस दिन जाता मर
बकौल हिना , भारत के साथ हर मुद्दा सुलझाने की इच्छा है ,
हमने सुना , दिल बहलाने को रब्बानी , ये भी ख्याल अच्छा है
सालों पहले कांग्रेस के राज में , मौनी बाबा थे एक , जिनका पूरा मंत्रीमंडल भ्रष्ट ,
फ़िर वही सब दोहरा रहे , मौनी बाबा फ़िर से आए , करने देश को नष्ट .
हादसों का हश्र यही , जांच और मुआवजा , चैप्टर हुआ क्लोज़,
सरकार का कौन मरता है कोई , चाहे इक हादसा होता रहे रोज़
नहीं नहीं कोई दबाव नहीं है , सीबीआई संस्था है स्वायत्त ,
कोने कोने से आवाज ये आई , अबे हुर्रर्रर्र , हट , धत्त ...
देश की राजनीति , लोकतंत्र का मतलब बदल रही है ,
कसाब , अफ़ज़लों को बचाने के लिए , कैसे विधानसभाएं मचल रही हैं
लेबल:
रद्दी की टोकरी,
हिन्दी कविता
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
मंगलवार, 27 सितंबर 2011
बिखरे -समेटे , चंद आखर .........झा जी कहिन
चित्र , गूगल सर्च से साभार |
सायकिल से गिरने की चोट , कैसे मां से छुपाई थी ,
महीनों बाद सिर्फ़ निशान देख , उसकी चीख निकल आई थी,
न वो सडक बची ,न सायकिल और अब तो मां भी नहीं
उस दोस्त की तलाश में हूं ,साइकिल जिससे मांग कर चलाई थी ...
इतने पर भी हाय तौब्बा और ये ठसक ,
कि उफ़्फ़ जरा भी शर्मसार नहीं हो ,
हम तो कब से लिए बैठे हैं बहीखाते तुम्हारे ,
हिसाब के लिए तुम्ही तैयार नहीं हो
तहज़ीब से बात करना मिला फ़टेहाल , कांधे पर कमीज़ नहीं थी ,
सलीकेदार थी अचकन उसकी , पर उसे सलाम करने की तमीज़ नहीं थी
कौनो सीडिया रहा है (अमर बब्बा),कौनो चिट्ठिया रहा है (दादा मुकर्जी)
सियासत के इस नए दौर में , हर कोई किसी के पिछवाडे लतिया रहा है
जिंदगी छोटी सी है , उस पर,जिंदगी की दुश्वारियां बहुत हैं ,
गरीबों के अस्पताल कम हैं , मगर उसकी बीमारियां बहुत हैं
भ्रष्ट , बेईमान,घोटालेबाज़, ढीठ और बेसरम ,
कलमाडी , मोझी , राजा , रेड्डी, चिदंबरम .....
उन्होंने चुटकियों में रिश्तों को पकड रखा था , बजाते ही टूट के बिखर गए ,
हंसते हुए गए हों न हों , रोते ही लौटे वापस , जब उनकी गलियों से गुज़र गए ...
सवा अरब के लोगों का ये देश , क्या इतना भी काबिल नहीं ,
खुद बोल ले कभी , ऐसा एक पी एम तक इसे हासिल नहीं...
आज के लिए इतने ही शब्द ........
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
गुरुवार, 8 सितंबर 2011
कुछ बेतरतीब से , छिटके , भटके ....कुछ बिखरे आखर
पिछले दिनों मन अशांत रहा और शायद उद्वेलित भी , जाने किन किन रौ में बहता हुआ क्या कुछ लिखता रहा , कहीं स्टेटस के रूप में तो कहीं किसी टिप्पणी के रूप में , देखिए आप भी ,
लो फ़िर दे गया आदेश किसी को , कोई पाकिस्तानी आका ,
अजमल , अफ़ज़ल , को ज़िंदा रखो , करें रोज़ शहर में धमाका
राजा , कलमाडी , मोझी , रेड्डी , और आज गए अमर ,
अजब देश की गजब कहानी , जेल में अब सिर्फ़ नेता आते नज़र .
बहिन जी का जुत्ती आया , धर के हवाईजहाज ,
विकीलीक्ज़ को आगरा भेजो , खोल दिहिस सब राज़ ...
आजकल बस एक ही बात , इकदूजे से ,पूछें जेल के संतरी ,
कित्ता स्कोर हो गया टोटल , अबे कितने आ गए मंतरी ...
लो फ़िर दे गया आदेश किसी को , कोई पाकिस्तानी आका ,
अजमल , अफ़ज़ल , को ज़िंदा रखो , करें रोज़ शहर में धमाका ...
कै ठो नयका प्रपोजल ले के ,पिरधान जी,चले थे ढाका ,
रूठ के ममता बैठ गईं , लुट गए मोहन काका ...
अमर जी मांगे थे छूट , रे हमरी एक किडनी है फ़ेल ,
अदालत बोली , एक किडनी वाले भी जा सकते हैं जेल .....
तुम कमज़ोर , हो कायर भी , निर्दोंषों को छुप कर देते मार ,
तुम निश्चिंत , तुम बेफ़िक्र , क्योंकि फ़िर बचा लेगी सरकार ,
आम आदमी ही बस क्यों रहता , निशाने पर हर बार ,
कभी उन्हें भी मौत दो , जो देते तुम्हें हथियार ......
कोई घडियाली टसुए बहा रहा होगा ,
क्या किया , क्या करना है , बता रहा होगा ,
कल वही , उसी हैवान की बगल में ,
किसी ज़ेल में भी , कहकहे लगा रहा होगा
अब क्यों सुनें और क्या सुनें तुम्हारी ,
तुम्हारी ही सुन कर तो इतने जीवन बर्बाद हुए ,
अबे छोडो , हर बार वही बकवास करते हो , तुमसे तो,
नए जुमले भी अब तक नहीं ईज़ाद हुए .
पिरधान जी पिरेसान थे , केतना सताया टू जी ,
ये जी जी की आदत गले पडे ,अब आ गए हू जी
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
बुधवार, 31 अगस्त 2011
रांची एक्सप्रेस , रांची में प्रकाशित एक आलेख
लेबल:
एक प्रकाशित आलेख
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
सोमवार, 22 अगस्त 2011
आदमी सियासत को चुभे तेज़ाब की तरह ......
देखिए हर मस्तक तना , हर छाती पे गर्व है , हां उनसे कह दो , जनता मनाती आजादी का पर्व है |
फ़ैला दो इस आग को शोलों के सैलाब की तरह ,
कि एक एक आदमी सियासत को चुभे तेज़ाब की तरह ॥
मन में है चोर और नीयत बेइमान , तो जनता के बीच फ़िर जाएं कैसे ,
उफ़्फ़ ये तो इंतहा है उनकी मजबूरी की, घर में भी टीवी चलाएं कैसे .
उतर आए जो बगावत पे , कहो क्या सिर्फ़ हमारी खता है ,
क्या करें , कि लोगों को अब तुम्हारी फ़ितरत का पता है
बनके बारूद ज़र्रे ज़रे पे ,
बिखर जाओ दोस्तों ,
जो रखना है महफ़ूज़ घर को ,
अब सडकों पे उतर आओ दोस्तों ,
बढाओ आकार और आवाज़ इतनी ,
कि सत्ता जो मूंद भी ले आखें ,
तो भी उसे , तुम नज़र आओ दोस्तों ॥
सियासतदानों , क्या अब भी कोई ,
दुविधा है , या मन में कोई भ्रांति है ।
जाग गई और जान गई ये जनता ,
हर सीने में बगावत , हर सडक पे क्रांति है ॥
संसद सर्वोच्च है , सत्ता है मगरूर ,
तभी , दोनों मान रहे , जनता को मजबूर ,
शुक्र मनाओ सियासतदानों , लोग नहीं हुए हैं क्रूर ,
करने को तो पल भर में कर दें ,नशा तेरा काफ़ूर ॥
सत्ता तेरी कुर्सी का हर पाया हुआ निकम्मा ,
तू एक से परेशान थी , अब तो सारा देश ही अन्ना ॥
बताओ तो कहां हो मंत्री जी , कहां तुम्हारी कार खडी है ,
घर से लेकर सडक तक , लेके अपने सवाल, जनता तैयार खडी है ...
कांग्रेसी भौंकें , बारी बारी , दिग्गी सिब्बल फ़िर तिवारी ,
रे कौन कुकुर काटा था सबको , हो गई बस एक्के बीमारी .................
तुम्हें जनलोकपाल से ऐतराज़ क्या है ,
इतना क्यों डर गए ,ये राज़ क्या है ,
जानते हैं कि परेशान हो गए हो सोच कर,
सोई हुई जनता को हुआ आज क्या है .............
लेबल:
अन्ना हज़ारे,
जनलोकपाल,
जनांदोलन,
रामलीला मैदान
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
बुधवार, 6 जुलाई 2011
मन हाथ से कहता है , कलम बूझता जाता है .... बिखरे आखर
कवि जी आपके जाने पहचाने से हैं |
यूं ही सिलसिला चलता है,यूं ही बनते हैं अफ़साने अक्सर
मन हाथ से कहता है , कलम बूझता जाता है ....
अब तोतों के झुंडों का , मुझे इंतज़ार नहीं रहता ,
गनीमत है कि कबूतरों का , जोडा दिख तो जाता है ....
बेशक तुम्हारे दौर के गीत अलग और बोल अलग ,
शुक्र है कि अब भी हर रेडियों , पुराने गाने बजाता है ...
दुश्मन मोहब्बत का लाख हो जाए ये जमाना तो क्या ,
हर गली में किसी लडकी लडके को प्यार हो ही जाता है ...
है गरीब की किस्मत , एक नियति बस एक सी ,
कभी कुदरत सताती है , तो कभी इंसान सताता है ..
गया वो दौर , छुप कर एहसान निभाने का ,
अब जो जितना भी करता है , वो उतना जताता है ...
आज नशे में चूर हैं जो , मतवाले बौराए बेशर्म से ,
एक मौसम आता है ,हाथ जोडे वो दर दर पे जाता है ....
लेबल:
कुछ पंक्तियां,
बिखरे आखर
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
शुक्रवार, 24 जून 2011
कुछ टूटे-फ़ूटे बिखरे आखर
जडों से कटकर , जिंदगी ,कुछ ऐसी उलझी शाखों में ,
खूब हंसे उजालों में , और जी भर के रोए रातों में ...
उदासियों को लपेट के , इन पनियाली आंखों से ,
अक्सर कई शामें गुज़ारा करते हैं .....
हमें यकीं है उनकी मौत का , फ़िर भी,
वहीं जाकर , उन्हें रोज़ पुकारा करते हैं ....
आज उन दोस्तों से इक बात तो कह दूं ,
जो उठते हैं जब छतों पर अपने,तो सामने हरा खेत दिखता है
तो देख लो और जुरा लो ,
अपनी आंखें मन भर ,
एक बार निकले तो फ़िर ,
मरूस्थल का बस रेत दिखता है ...
पुरवाइयों को झोंका , अब छत पे मेरी नहीं आता ,
बस लोगों को गुमा है , मैं हाकिम बडा हूं ........
ये आंसू , मेरे मुखौटे का रकीब क्यों है ,
बस ज़रा दूर होतीं ,आखें ,दिल के करीब क्यों है
अक्सर इन हालातों में खुद ही खुद को सताता हूं मैं ,
एक हाथों से लिखता हूं , दूसरे से मिटाता हूं मैं ..
थाम के सिरा यादों का अपनी, दीवारों से लिपट के रोया वो ,
किसी शाम का किस्सा यूं गुजरा , पहले रोया , फ़िर सोया वो
बहुत लंबी फ़ेहरिस्त है ,
जिंदगी के इम्तहानों की ,
आदमी जीता है बहुत है मगर ,
जिंदगी छोटी है इंसानों की ,
इस पत्थर के जंगलों में
यूं तो बस्तियां ही बस्तियां हैं ,
जहां प्यार मिलता था ,
ताले जडे हैं दरवाज़ों पे ,
खिडकियां बंद है उन मकानों की ..
कतरा कतरा ,ज़िंदगी ,पिघलती रही,
बिना रुके , बिना थके ,बस यूं ही चलती रही ,
धुंआं देखा तो लोगों ने अंदाज़ा लगाया ,
कभी वो जलता रहा , कभी जिंदगी जलती रही
लेबल:
कुछ पंक्तियां,
बिखरे आखर
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
सोमवार, 6 जून 2011
पिटा तेरा जनार्दन , पीटने वाल जनता जनार्दन है ...
जनता जनार्दन है ,हर वक्त रहती है इम्तहानों में ,
संसद में लुटता है लोकतंत्र , और पिटता है मैदानों में ..
वो जो रातों को खुद चुपके से करते हैं प्रहार ,
उन्हें दिन के उजाले में रक्षक कैसे मान लें यार ..
सत्ता में बैठे , हुक्मरानों से कह दो ये खुलेआम ,
हमेशा भारी पडता है बस आदमी एक आम .....
कब तलक चला सकोगे यूं , ये दौर बेहयाई का ,
अब तो वक्त भी आ गया , तुम्हारी जूतों से पिटाई का ..
अन्ना , बाबा , जनता ने रूप अब कई लिए हैं धर ,
सोच लो क्या हो जो हर एक अपनी पे आया उतर ....
दबाओ , झुकाओ , उठाओ , कर के देख लो अपनी हर तरकीब ,
अब जनता तैयार है ,खुद ,लिखने को सत्ता का नसीब ...........
अब हर मिनट , है क्रांति , हर दिन एक आंदोलन है ....
पिटा तेरा जनार्दन , पीटने वाल जनता जनार्दन है ...
लेबल:
कुछ पंक्तियां,
जनता,
जनार्दन,
बिखरे आखर
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
गुरुवार, 2 जून 2011
हर बार ये हादसा टल जाता है ......बिखरे आखर
चित्र , गूगल से साभार |
होते होते इश्क ये बस रह जाता है ,
हर बार ये हादसा टल जाता है ,
हम रूमानी होते हैं रुत देख के,
मौसम , बिन बताए ही बदल जाता है ....
यूं तो रूठने मनाने का है अपना मजा ,
कौन कब रूठे कब माने , किसको पता,
मेहबूबा का दिल है तो ऐसा ही होगा ,
पल में माना , फ़िर पल में ही मचल जाता है ......
हां , मौका देती है जिंदगी , सबको एक बार ,
उसके ईशारे को फ़िर भी, जो समझ न सके ,
उसकी तकदीर फ़िर दफ़न हो कर रहे,
जो समझा ईशारा , तो संभल जाता है ........
ख्वाहिशों के भी रंग हैं कितने हज़ार,
आंखें जितनी सपने भी उतने , बस ,
किसी को चांद चूमने का चाहत , और,
किसी का मन, कंकड से ही बहल जाता है ...
कोशिश हर बार करता हूं , नई नई ,
जाने कितने ही नुस्खे आजमाता हूं ,
जितना ही फ़ूंक के करता हूं ठंडा ,
कलेजा, उतना अक्सर उबल जाता है .....
मेरी बांहो को रही है तलाश हमेशा ही ,
कुछ दोस्तों का साथ भी मैंने खोया-पाया,
मुझे छोडते नहीं हैं ,यार मेरे ,अकेला कभी,
कोई न कोई तो साथ टहल जाता है ....
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कविता,
कुछ पंक्तियां,
बिखरे आखर
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
शनिवार, 21 मई 2011
सामने रख कर आईना , किताब लिखने बैठा हूं मैं ......
कवि जी पुराने ही हैं .. |
बारूद की स्याही से , नया इंकलाब लिखने बैठा हूं मैं ,
सियासतदानों , तुम्हारा ही तो हिसाब लिखने बैठा हूं मैं
बहुत लिख लिया , शब्दों को सुंदर बना बना के ,
कसम से तुम्हारे लिए तो बहुत , खराब लिखने बैठा हूं मैं
टलता ही रहा है अब तक , आमना सामना हमारा ,
लेके सवालों की तुम्हारी सूची, जवाब लिखने बैठा हूं मैं
सपने देखूं , फ़िर साकार करूं उसे , इतनी फ़ुर्सत कहां ,
खुली आंखों से ही इक , ख्वाब लिखने बैठा हूं मैं ......
मुझे पता था कि बेईमानी कर ही बैठूंगा मैं ,अकेले में,
सामने रख कर आईना , किताब लिखने बैठा हूं मैं ...
जबसे सुना है कि उन्हें फ़ूलों से मुहब्बत है ,
खत के कोने पे रख के ,गुलाब , लिखने बैठा हूं मैं
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चंद पंक्तियां,
हिंदी कविता
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
शुक्रवार, 20 मई 2011
अब, खतों का मेरे , कोई जवाब नहीं देता.....
कवि जी , इन कविताई पोज़ |
हां ,बदल ही गया होगा दस्तूर जमाने का ,
अब ,खतों का मेरे , कोई जवाब नहीं देता ॥
सयाने हुए हैं सारे , अब जरूरत नहीं होती,
यही वजह है कि , तोहफ़े मे अब कोई किताब नहीं देता ॥
अब कहां , कशिश बची है मोहब्बत की ,
किताबों में रखने को , कोई अब गुलाब नहीं देता ॥
दूसरों की खामियां देखते , उम्र गुजर जाती है ,
अपने गुनाहों का , खुद कोई क्यों हिसाब नहीं देता ॥
दुश्मन ही है वो , कैसी पडोसी मान लें ,
जो होता पडोसी , तो हर साल एक नया "कसाब " नहीं देता ॥
हर कोई दिखाता है रुतबा अपनी पहचान और ओहदे का
सच्चा और ईमानदार ही बस , अपना रुआब नहीं देता ॥
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कुछ पंक्तियां,
रद्दी की टोकरी,
हिंदी कविता
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
मंगलवार, 17 मई 2011
सॉरी ! नो क्वेश्चन ऑफ़ इकोनोमिक्स प्लीज़
पापा जी इकोनोमिक्स वाले |
खबरी लाल : पीएम साहब ! पेट्रोल की कीमत फ़िर बढा दी है सरकार ने , क्या आपको अब भी नहीं लगता कि महंगाई आसमान छू रही है । जनता त्रस्त से पस्त वाली स्थिति की ओर अग्रस है और आप शाश्वत रूप से मस्त वाली कटेगरी में फ़िट हो गए हैं ..इस बार पेट्रोल की कीमत आपने पांच रुपए बढा दी , सर जी ..पिछले कुछ महीनों में आपने छब्बीस रुपए तक बढा दिया है ..आपको पता है ..
पापा जी इकोनोमिक्स वाले : सॉरी ! नो क्वेश्चन ऑफ़ इकोनोमिक्स प्लीज़
खबरी लाल : अच्छा सर , किसानों की समस्या तो सुना है कि आप तक पहुंच गई , जी..नहीं नहीं सर किसान की समस्या ..कसाब की समस्या नहीं ..किसान की समस्या ..देश के किसान की समस्या तो आप तक पहुंच गई है न ..जी हां हां कसाब को तो आपकी सरकार समस्या मानती ही नहीं है ..सर अभी भट्टा परसौल में ..इतने किसानों की जानें चली गई ...बाबा ......नहीं सर ..बाबा से मेरा तात्पर्य बाबा रामदेव नहीं है ...सर बाबा बोले तो राहुल बाबा ..तो खुद फ़टाक से फ़टफ़टिया पर लिफ़्ट लेकर पहुंच गए ..भट्टा में बहिन जी का भट्टा बैठाने के लिए किंतु बहिन जी दन्न से बरेली का बांस कर दिया ..बाबा निकल लिए .तो सर आपको पता है कि किसानों के मरने का आंकडा हर साल उन्नीस प्रतिशत बढ
पापा जी इकोनिमिक्स वाले : सॉरी ! नो क्वेश्चन ऑफ़ इकोनोमिक्स प्लीज़
खबरी लाल : लानत है , अब इसमें भी इकोनोमिक्स ही था ..अच्छा चलिए इसको भी जाने दीजीए ..सर राष्ट्रमंडल खेल को अब लोग भ्रष्टमंडल खेल कहने लगे हैं ..सर उसमें तो सुना है कि कलमाडी जी ने उतना कमा लिया जितना कि ललित मोदी भी न कमा सके थे ..क्रिकेट प्लेयर्स को चीयर लीडर्स में बदल कर ...आखिर सच क्या है सर ..सुना है कि कलमाडी का काला मुंह जनता के सामने सिर्फ़ इस लिए आ गया क्योंकि उन्होंने किसी के साथ मुंह काला नहीं किया और खुद ही सारी रकम डकार ली ..सर सुप्रीम कोर्ट तक इतने जारे जीरो एक ही नीरो के कब्जे में देख कर चकित हो गई ..तो सर उस घोटाले में तो अलग अलग सैक्शन बनाए जा सकते हैं ...एक में नौ सौ करोड ......दूसरे मे पांच हजार करोड ..सर सर ..
पापा जी इकोनिमिक्स वाले : सॉरी ! नो क्वेश्चन ऑफ़ इकोनोमिक्स प्लीज़
खबरी लाल :आयं , ये भी इकोनोमिक्स से ही रिलेटेड था सर ...अच्छा सर चलिए इन सबसे दूर हट कर कोई अलग सवाल लेते हैं ....सर कहा जा रहा है ..आपकी पार्टी के युवराज बहुत ज्यादा एज़ के हो रहे हैं ..शादी वैगेरह का कोई चक्कर ही नहीं चल रहा है ..अब देश भी एक युवराज का शाही शादी देखने के लिए बेताब है सर ...उनकी उम्र भी तो अब हो गई है .,.....
पापा जी इकोनिमिक्स वाले : सॉरी ! नो क्वेश्चन ऑफ़ इकोनोमिक्स प्लीज़ ..
खबरी लाल : सत्यानाश , सब कुछ इकोनोमिक्स ही है ..ओह अब तो कुछ पूछते भी डर लगता है ..अच्छा सर आप अपने पीएम बनने के सफ़र को कैसे देखते हैं ...हे भगवान अब इसमें भी इकोनोमिक्स न निकल जाए
पापा जी इकोनिमिक्स वाले : हे हे हे हे ..फ़ायनली यू आस्कड मी ए माई लाईक क्वेश्चन ....सी मैडम के त्याग के बारे में ..आई नैवर फ़ील सॉरी ...एक्चुअली ..
खबरी लाल : ....बस बस बस बस ..सर टाईम खत्म ..बीच में ..ये तो बडा टोइंग है .....के विज्ञापन भी आने हैं ....
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
रविवार, 8 मई 2011
जिसे किसी ने कभी मां न कहा ........रद्दी की टोकरी से
तू खुद ही उजाड ले , कायनात अपनी ओ खुदा ,
खुद इंसान भी तो है , इसी ज़िद पर तुला ....
हवा बदली ,फ़िज़ा बदली , यूं तो मुहब्बत भी रोज बदलती रही ,
बस न बदला तो वो समाज जो हमेशा बेवफ़ा ही रहा .......
आजा माता का दिन है , तो है संतान का भी , पर ,
कोई ऐसा भी है जिसे किसी ने कभी मां न कहा ........
ये जरूरी नहीं कि आग मजबूत हो , दे जला दे पूरा ,
बस जलनी और जलती रहनी है जरूरी , तू जला , तू जला
दस्तूर कब और ये जाने क्योंकर बना ,अजनबी नहीं ,
सबको हर बार किसी दोस्त ने ही दी है दगा
मौत देते हो खुद तुम हाथों से अपने ..
कभी मिठाई तो कभी कह के दवा
अन्याय के साथ ही चलता न्याय का सिलसिला ,
कब हो फ़ैसला , बस ये नहीं हो रहा फ़ैसला .....
कौन कहता है मुझसे तेरा दिल न मिला , न तू खुद तो नहीं ,
है जिसको ये शक , बस इक बार गले से लगा ले ज़रा ....
मुझे शायरी नहीं आती , गज़ल का मतलब मुझे पता ही नहीं , मितले और मिसरे का समझ का तो सवाल ही नहीं , ..बस दिल जो लिखाता है..वो यहां आ जाता है ...मिलता हूं ..अगली पोस्ट के साथ
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
रविवार, 1 मई 2011
पहले बनाते हैं , बाद में चलाते हैं .......सुना आज मजदूर दिवस है
मजदूर दिवस को ,
फ़िर आज ,
मनाने की ,
जोरदार थी तैयारी ....
मीडिया की ,
फ़िर मंत्री जी की ,
और टाटा-बिडला की भी ,
आज आनी थी बारी ,
सबने की घोषणा ,
अबकि इसे,
मजदूरों के बीच ही ,
जाकर मनाया जाएगा
कितनी चिंता है ,
आज हमें, कामगारों की ,
उन्हें साथ बिठाकर
ये बताया जाएगा
शहर के छोर की ,
गंदी झुग्गी बस्ती के ,
एक कोने की ,
कराई गई सफ़ाई
टेंट लगे और ,
बडे से भोंपू , ताकि ,
जो बोलें मंत्री जी ,
वो सबको दे सुनाई
नेताजी आए , थोडा
अचकचाए फ़िर सकपकाए,
अरे ! अब आ गए हम हैं ,काहे का गम है ,
लेकिन आपकी संख्या थोडी कम है ??
पीए ने कान में बताया ,
फ़ुसफ़ुसा के समझाया ,
नेताजी जल्दी से कुछ भी ,
बोले के , फ़ौरन जाईये निकल,
अभी अभी पता चला है कि ,
इस बस्ती के ,दस मजदूर ,
कल लगी तो जो आग ,
उसमें जिंदा गए थे जल
आयं ! काहे की ,फ़ैक्ट्री थी ,
कौन सा था वो कारखाना
अबे जब ऐसा था तो ,
तुम्हें ये पहले ही था बताना
सर, जूतों का था वो कारखाना,
जहां कल लगी थी आग ,
मालिक ने जड दिया था ताला ,
अंदर दस जिंदगियां राख
नेताजी चौंके, नीचे उतर आए ,
चलो फ़िर मंत्रालय में ही मजदूर दिवस मनाते हैं ,
अच्छा हुआ जूते जल गए , और मजदूर भी ,
पहले जूते बनाते हैं , बाद में जूते चलाते हैं
सुना है कि सरकार ने आज उन अभागे मजदूरों के परिवार वालों को दो दो लाख रुपए का मुआवजा देने की घोषणा की है ...काश कि इस या इससे ज्यादा मुआवजे में ..मजदूरों को भी कभी ...एक फ़ैक्ट्री मालिक , एक नेता या मंत्री जिंदा जलाने को मिल जाता
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
बुधवार, 13 अप्रैल 2011
जालियांवाला बाग में बिताए कुछ घंटे .....
कल देर रात को अनुज समान मित्र शिवम मिश्रा जी का फ़ोन आया । उन्होंने याद दिलाया कि आज यानि तेरह अप्रैल वही दिन है जब जालियांवाला बाग नरसंहार हुआ था और चूंकि मैं हाल ही में वहां सपरिवार गया हुआ था इसलिए अपने अनुभव को साझा करने के लिए आज के दिन से उपयुक्त और क्या हो सकता है । मैंने उन्हें ये कहते हुए धन्यवाद दिया कि हिंदी ब्लॉगजगत को इस बात के लिए अवश्य ही गर्व होगा कि वे ऐसे कुछ गिने चुने ब्लॉगरों में से एक हैं जो हमेशा ही अपने विचारों , अपने लेखों और पोस्टों से न सिर्फ़ देशभक्ति का जज़्बा जगाए रखते हैं बल्कि मुझ जैसे बहुत से ब्लॉगर मित्रों /सखाओं को आज के दिन भी कृतघ्न बने रहने से बचा लेते हैं ।
जालियांवाला बाग से मेरा परिचय इतना पुराना है कि बस एक धुंधली सी याद ही थी । पिताजी की फ़ौज की नौकरी के दौरान फ़िरोज़पुर में नियुक्ति के समय ही हम सपरिवार जालियांवाला बाग गए थे । मुझे सिर्फ़ एक ही चीज़ याद थी और वो था , शहीदी कुंआं जो तब सिर्फ़ एक कुंआ ही था , बिल्कुल खुला और कुंए जैसा । इसलिए पिछले वर्ष जब अमृतसर का कार्यक्रम बना तो मैं ये सोच के रोमांचित और उत्तेजित हो गया कि इतिहास एक बार अपने आपको फ़िर से दोहरा रहा था शायद । मेरा पुत्र भी लगभग उसी समय उस पावन स्थल के दर्शन करने जा रहा था जिसके मैंने शायद इसी उम्र में किए थे । पत्नी का गृह राज्य पंजाब होने के बावजूद अभी तक वो भी इसे देखने से वंचित थी सो ये और भी पक्का हो गया ।
इससे पहले कि जालियांवाला बाग में प्रवेश करूं कुछ बातें जो तब और अब भी मेरे दिमाग में घूम रही थीं वो कुछ इस तरह की थीं । हमें अपने देश पर बलिदान होने वालों को अपनी स्मृति में बसाए रखने , ताउम्र उनकी कृतज्ञता मानने और इस तरह की तमाम भावनाओं को नि:संदेह पश्चिमी देशों से सीखना चाहिए तो आज भी इन मामलों में हमसे कहीं आगे और अनुकरणीय हैं । आज देश के कर्णधारों और निर्लज्जता की पराकाष्ठा पर पहुंच चुके उन तमाम राजनेताओं से क्या उम्मीद की जा सकती है जो सुना है कि भगत सिंह , सुखदेव को भी आज की जाति धर्म , भाषा की छिछली राजनीति में घसीटने में लगे हैं ।
मुझे जालियांवाला बाग के अंदर जाते समय एक बात और जो ध्यान आई वो ये कि ब्रितानी सरकार जो पूरे विश्व को सभ्यता और संस्कार उसकी महारानी सालों के बाद भी जब उस जालियांवाला बाग में आती है या उस साम्राज्य का युवराज उस स्थल को देखने आता है तो शर्मिंदगी और माफ़ी की जगह पर यदि ये कह कर निकल जाता है कि वहां उस दिन नरसंहार में मरने और घायल लोगों की संख्या को बढा चढा कर बताया दिखाया गया है तो या तो तो भारत सरकार को उसे धक्के मार के निकाल देना चाहिए थी या खुद भी उस दिन शर्म से डूब मरना चाहिए था । लेकिन सरकार तो राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन के बहाने अब भी उनके तलुवे चाटने का कोई मौका नहीं चूकती । ऐसी स्थिति में तो यही विकल्प बचता है कि अगर हम वाकई चाहते हैं कि हमारी आने वाली नस्लें भी इतनी ही संवेदनहीन न हो जाएं तो यकीनन उन्हें ये बताते रहना होगा कि ये और देश भर में इन जैसे तमाम स्थलों का भारत को ऋणी रहना चाहिए चिर काल तक क्योंकि ये आजादी उन्हीं के बलिदानों के कारण मिली है ।
कुछ यादों के पन्ने से ..................
मुख्य द्वार |
सूचना पट्टिकाएं |
अंदर घुसते ही सामने बना हुआ छोटा सा आश्रय स्थल |
भीतर का अहाता जिसे अब सीमेंटेड कर दिया गया है |
जालियां वाला बाग द्वार के साथ ही बना संग्राहलय |
अमर ज्योति |
शहीदों को समर्पित ज्योति की लौ |
अंखंड अमर ज्योति |
अमर ज्योति के नीचे शिलापट्ट |
विश्राम स्थल |
दूर चमकता शहीद स्तंभ |
शहीद स्तंभ |
जालियांवाला बाग ....का बाग |
बाग का मनोहारी दृश्य |
संग्रहालय से लेकर शहीदी कुएं तक जाने के लिए बना आकर्षक कॉरीडोर |
सुदूर दक्षिण राज्यों से आया हुआ बच्चों का एक दल जिन्हें विशेष रूप से जालियांवाला बाग घुमाने के लिए लाया गया था |
बाग के अंदर घूमते विभिन्न प्रांतों से आए हुए लोग |
संग्राहलय के अंदर बना हुआ विशालकाय चित्र जो उस दिन हुए नरसंहार को प्रतिबिंबित कर रहा है |
इस चित्र के आगे खडे होकर आप एक पल के लिए उस दिन को अनुभव कर सकते हैं और यकीनन ये आपको सिहरा के रख देगा |
शहीदी कुंआं , जिसे अब एक स्मारक का रूप दे दिया गया है |
कुंए के भीतर झांकते गोलू जी और पुत्री बुलबुल अपनी मां के साथ |
कुंए को चारों तरफ़ से जाल लगा के बंद कर दिया गया है अब |
कुंए के अंदर का एक दृश्य |
इस कुंएं में झांकते हुए जब मैंने श्रीमती जी को पूरा बात बताई तो वे सिहर उठीं थीं और उनकी आंखों के कोर से ढुलकता आक्रोश बहुत कुछ कह गया था । सच कहूं तो मुझे अच्छा लगा था कि वे भी ठीक वैसा ही महसूस करती हैं जैसा कि मैं ।
ये वही जगह है जहां खडे होकर जनरल डायर ने बाग में मौजूद हजारों निर्दोष लोगों पर गोलियां बरसाईं थीं |
पुत्र आयुष गौर से पढते हुए |
पुत्र आयुष और साथ में ही घूमने आया साढू साहब के साहबजादे जॉनी , ने उन चार घंटों में लगातार एक के बाद एक प्रश्नों की झडी लगाकर मुझे इतिहास के उन पन्नों को फ़िर से पढने और याद करने पर मजबूर कर दिया जिन्हें कभी स्कूल कॉलेज में पढकर हम उत्तेजित हो जाया करते थे । मैंने उन्हें एक एक बात जो मुझे उस समय याद थी सब सुनाई और बताई उधम सिंह तक
द्वार पर स्थित अहाता |
उस दिन शहीद हो उन तमाम आत्माओं को नमन कि आज हम चैन की सांस ले पा रहे हैं । आजाद सोच के साथ जी पा रहे हैं , लिख पा रहे हैं , पढ पा रहे हैं ....उन्हें शत शत नमन
एक आम आदमी ..........जिसकी कोशिश है कि ...इंसान बना जाए
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