प्रचार खिडकी

सोमवार, 18 मई 2020

वो गरीब है, तभी मौत के करीब है
















सोमवार, 20 अप्रैल 2020

कल को खूबसूरत बनाने की कवायद





सोच रहा हूँ कि कल को फेसबुक जब मेमोरीज़ में ये आज कल हमारे द्वारा लिखी कही गयी बातों को दिखाएगा उस वक्त तक हम निश्चित रूप से इन झंझावातों से गुज़र चुके होंगे और ये अच्छे बुरे दिन ही यादों के पन्नों पर अंकित होकर रह जाएंगे। इन हालातों से ,इन हादसों से हम क्या कितना सबक ले पाए ये भी तब तक सबपर ज़ाहिर हो ही जाएगा।  

देखने वाली बात ये भी होगी कि कुदरत ने हमें ख़बरदार करके जो ये कहा है कि चुपचाप पड़े रहो जहां हो जितने हो जैसे हो क्यूंकि मुझे तुमसे इससे ज्यादा चाहिए भी नहीं। तुम आज जब अपनी जान की फ़िक्र में अपने घर में ,अपनों के बीच ,अच्छा बुरा जो भी समय काट रहे हो न ,ये तरह तरह के आयोजन प्रयोजन से अपना समय बिता रहे हो न असल में जीवन तो यही है इसी का नाम है। जब जितनी जरूरत है वही लाकर और उसी के सहारे आगे को सरका रहे हो न शांति से असल में ज़िंदगी यही थी तुम्हारी और होनी भी यही चाहिए थी।  

और इस बीच मैं यानि तुम्हारी धरती ,तुम्हारा पानी ,तुम्हारी हवा सब हम खुद को नई ज़िंदगी नया जीवन दे रहे हैं क्यूंकि कल जब तुम और तुम्हारे बाद की नस्लें फिर से सब कुछ भूल कर हमें बर्बादी के कगार पर पहुंचाने के लिए उद्धत होने लगोगे तो उससे पहले हम कम से कम अगले बहुत सारे सालों के लिए खुद की भी मरम्मत तो करनी ही होगी। 

यादों में जब इन दिनों का एल्बम पलट कर सामने आएगा तो आएगा ये भी की कैसे अमेज़न और नेटफ्लिक्स ,सोनी स्टार प्लस को बुरी तरह नकार कर रामायण महाभारत ने दूरदर्शन को करीब दर्शन में बदल दिया था। ये भी याद आएगा जरूर कि स्विगी ज़ोमेटो की नकली स्वाद की दुनिया से अचानक हम सबने कैसे घरों की रसोई को अपनी माँ दादी वाली रसोई में तब्दील कर दिया दिया।  

याद तो ये भी आएगा कि त्यौहारों पर भी अब अलग थलग रहने वाले हम सब कैसे अपने देश के मुखिया के कहने भर से शंख और दीये लेकर एक लय एक प्रकाश में खुद को पिरो कर खड़े हो गए थे।  याद तो ये एल्बम हमें ये भी दिलाएगा कि हमारे अंदर छुपी दबी हुई हर वो बात अपने आप निकल कर सामने आ गयी थी और हममें से कोई चित्रकार के रूप में सामने आ गया था तो कोई प्यारे से गीतकार के रूप में।  

आसपास चल रही तमाम नकारात्मकता को सिरे से नकार कर ,झटकर सिर्फ अच्छी और बहुत अच्छी यादें बातें सहेजने समेटने का वक्त है ये। अच्छी यादें बनाने का समय है ये 


शनिवार, 14 मार्च 2020

मैं अब भी लिखता हूँ...... और आप ??





जैसे जैसे कंप्यूटर और मोबाइल का चलन घर से लेकर दफ्तरों तक बढ़ गया है उससे किताबों को पढ़ने की रवायत तो कम हो ही गई है इसके साथ साथ जो एक आदत बिलकुल ख़त्म होती जा रही है वो है हाथों से कागज़ पर लिखना | कचहरी जैसे दफ्तर में जहाँ कंप्यूटर तकनीक बहुत पहले आ जाने के बावजूद भी अब तक हाथों से बहुत सारा लिखने की गुंजाईश बनी हुई है | अफ़सोस कि अब सहकर्मियों ,वरिष्ठ तो वरिष्ठ जो कनिष्ठ और युवा हैं वे भी यथासंभव हाथ से कुछ भी लिखने की आदत से कतराते हैं | बहुत ऐसा इसलिए भी करते हैं क्युंकि उनकी लिखावट साफ़ और स्पष्ट नहीं है |

मेरी आदत इससे ठीक उलट है | मैं आलेख पत्र आदि नियमित लिखने के साथ ही दफ्तर में भी पूरे दिन हाथ से लिखता रहता हूँ | लिखावट साफ़ और ठीक है सो महसूस किया है कि पहला ही प्रभाव सकारात्मक दिखता है और टाइपिंग कंप्यूटर से इतर हाथ की लिखावट उसे अलग कर देती है | मेरे दफ्तर में कोई भी कागज़ ,रजिस्टर ,यदि मेरी टेबल से होकर गुजरा है तो उसमें यकीनन ही मेरी लिखावट आपको कहीं न कहीं दिख जाएगी | इसी तरह जहाँ जहाँ भी मेरी नियुक्ति रही है अब तक उन तमाम विभागों ,संभागों ,में मेरी लिखावट के निशान उपलब्ध फाइलों ,रिकार्ड्स आदि पर अब भी वैसे के वैसे ही मिलते हैं |

मुझे हाथों से लिखना बेहद पसंद है और मेरी आदत भी।    ....... और आपको

रविवार, 1 मार्च 2020

दंगों वाली दिल्ली पर दो टूक





मैं शुरू से ही ये मान रहा था और जहां भी मुझे लगा यही कह रहा था की नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करने वालों के सामने हर हाल में सिर्फ और सिर्फ वर्दी वाले ही होने चाहिए ,सत्ता और प्रशासन ही रहने चाहिए | 

चाहे कुछ  भी हो ,इस कानून का और सरकार के इस रुख का समर्थन करने वाले हर व्यक्ति को अपना समर्थन दिखाने जताने बताने के लिए सड़क पर आने और आर पार खड़े होने की कोई आवश्यकता नहीं है बिलकुल भी नहीं क्यूंकि यही वो समय होगा जब पूरा विपक्ष और उनके इर्द गिर्द भिनभिनाते अन्य तमाम इसे मज़हबी उन्माद और दंगों की शक्ल देने में रत्ती भर समय भी नहीं लगाएंगे | 

यही हुआ ,साजिश रचने वालों को बस उस मौके उस बहाने की तलाश थी जिसके नाम पर वो महीनों से इकठ्ठा कर रहे असलों का उपयोग और अच्छी तरह से सीख सकें | जहर जब जमीन के नीचे रिस कर चला जाता है तो फिर फसलें नहीं नस्लें बर्बाद होती हैं ,ये वही समय है , अफ़सोस की बात है कि ये इन सब बातों का अंत नहीं है 

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वे आपके लिखे लिखाए क़ानून के पन्नों पर लिखे शब्दों को ठीक आपकी कनपटी के नीचे टिकाते हुए बड़ी ही तफसील के साथ वो सब बदस्तूर और बेख़ौफ़ करते रहेंगे कि जिनकी बाबत आपका सोचना ये है कि एक दिन न्याय व्यवस्था आपको इन सबसे छुटकारा दिलवा सकेगी मैं विशवास दिलाता हूँ न्याय व्यवस्था जिस रफ़्तार से अपनी साख खो रही है और खोने के बावजूद चिंतित नहीं है जनता सड़कों पर इसी तरह के फैसले कुछ इन्हीं तरीकों से ले रही होगी |

 दिल पर हाथ रख कर बताइये कि 150 से अधिक मुकदमे और 700 के लगभग अपराधियों में से कितनों को लोगों के घर फूंकने ,चाकू से गोद कर हत्या करने के लिए जिम्मेदार ठहरा कर सजा दी जा सकेगी तिस पर गारंटी अगले दंगे न होने देने की नहीं है हाँ मुआवजे और जांच कमीशन की जरूर पक्की है ,कमीशन अच्छा है न दोनों सहानुभूतियों में 



शुक्रवार, 3 जनवरी 2020

ज़िंदगी और मुहब्बत के नाम



दो पंक्तियों में लिखे हुए कुछ शब्द जो मुहब्बत और ज़िंदगी के फलसफों को समझने के लिए लिखे गए | देखिये आप भी , इन्हें मैं अनाम आदमी के नाम से अलग अलग मंचों पर साझा करता रहा हूँ | यदि प्रयास पसंद आए तो चैनल के साथी बनें |



शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

वो सब बता गया








एक ही निगाह में ,वो सब बता गया 
दर्द का पूछा तो ,मज़हब बता गया 

अंदाज़ा मुझे भी इंकार का ही था 
यक़ीन हुआ नाम गलत जब बता गया 

हाथ मिलाया तो नज़रें जेब पर थीं 
यार मिलने का यूं सबब बता गया 

लूटता रहा गरीबों को ताउम्र जो 
पूछने पर ख़ुद को साहब बता गया 

वादे कमाल के किये उसने ,मुकरा तो 
कभी उन्हें अदा ,कभी करतब बता गया 

बता देता राज़ तो तमाशा ही न होता 
खेल ख़त्म हुआ ,वो तब बता गया 

मंगलवार, 27 अगस्त 2019

मेरा कत्ल किसने किया


चंद पंक्तियाँ ,बेतरतीब ,बिखरी ,सिमटी हुई , आप खुद देखें














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