एक ही निगाह में ,वो सब बता गया 
दर्द का पूछा तो ,मज़हब बता गया 
अंदाज़ा मुझे भी इंकार का ही था 
यक़ीन हुआ नाम गलत जब बता गया 
हाथ मिलाया तो नज़रें जेब पर थीं 
यार मिलने का यूं सबब बता गया 
लूटता रहा गरीबों को ताउम्र जो 
पूछने पर ख़ुद को साहब बता गया 
वादे कमाल के किये उसने ,मुकरा तो 
कभी उन्हें अदा ,कभी करतब बता गया 
बता देता राज़ तो तमाशा ही न होता 
खेल ख़त्म हुआ ,वो तब बता गया 
 

 
 
 
अति सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया और आभार सर
हटाएंहर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया और आभार संजय
हटाएंबहुत खूब अजय जी ...
जवाब देंहटाएंलजवाब है हर छंद ... जीवन के सच को बयान करना ...
प्रतिक्रया और स्नेह के लिए आपका आभार सर
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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