प्रचार खिडकी

शुक्रवार, 30 अगस्त 2019

वो सब बता गया








एक ही निगाह में ,वो सब बता गया 
दर्द का पूछा तो ,मज़हब बता गया 

अंदाज़ा मुझे भी इंकार का ही था 
यक़ीन हुआ नाम गलत जब बता गया 

हाथ मिलाया तो नज़रें जेब पर थीं 
यार मिलने का यूं सबब बता गया 

लूटता रहा गरीबों को ताउम्र जो 
पूछने पर ख़ुद को साहब बता गया 

वादे कमाल के किये उसने ,मुकरा तो 
कभी उन्हें अदा ,कभी करतब बता गया 

बता देता राज़ तो तमाशा ही न होता 
खेल ख़त्म हुआ ,वो तब बता गया 

8 टिप्‍पणियां:

  1. हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें

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  2. बहुत खूब अजय जी ...
    लजवाब है हर छंद ... जीवन के सच को बयान करना ...

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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