प्रचार खिडकी

रविवार, 23 दिसंबर 2007

एक और saal ख़त्म होने को है

जब से पढाई लिखाई के बाद होश सम्भाला और इस नौकरी चाकरी के चक्कर में पड़े ,उसके बाद जैसा कि हेमेशा होता आया है शादी फिर बच्चे और सब कुछ वैसा ही, तभी से ना जाने ये समय कम्भाक्त जैसे पंख लगा के उड़ता चला जा रहा है । या फिर मुन्हे ऐसा इसलिए लग रहा है क्योंकि मेरी जिन्दगी में एक निश्चिन्तता तो आ ही गयी है , और ऐसा उन्हें ना लगता हो जो अभी भी जीवन के संघर्ष में लगे हों । उन्हें तो शायद इस समय को बिताना ही कठिन लग रहा होगा। जो भी हो इतना तो तय है कि समय तो खिसक खिसक कर नयी नयी तारीखों की तरफ बढ़ता चला जाता है हमेशा।

सोचता हूँ कि साल के अंत आते आते हम क्या सोचने लगते हैं यही ना कि यार देखते देखते ये साल भी बीत गया इस साल में ये नहीं हो पाया या फिर कि चलो इस साल ये काम तो निपट गया। अब अगले साल ये काम भी हो जाएगा या फिर कि अगले साल से ये काम बिल्कुल नहीं करना है , या ये भी चाहे कुछ भी हो जाये इस आने वाले साल में कम से कम ये काम तो करना ही है। सब के मन में यही सब तो चलता रहता है और ये तो हमेशा से चलता आ रहा है।


इस बार मैं सोच रहा था कि हम में से कितने लोग सोचते हैं कि यार इस बार कुछ ऐसा कर पाए जिससे हमारे समाज को हमारे अपनों जो हमारे अपने नहीं थे उन्हें भी कुछ ऐसे मिल पाया जिसके लिए वे हमें याद रख सकते हैं। दरअसल अब हम सबकी जिन्दगी उस जगह पर पहुंच गयी है जहाँ शायद इन सब बातों के लिए किसी के पास फुरसत ही नहीं है, या फिर ये कि ये साड़ी बातें सिर्फ बातों में ही अच्छी लगती हैं। चलिए मान लिया यदि ऐसा भी है तो क्या हम इतना भी नहीं कर सकते कि वे बातें वे काम करने से खुद को बचा सकें जो या जिससे किसी को दुःख या चोट पहुंचे । हाँ ये थोडा मुश्किल जरूर है मगर कोशिश करने से शायद संभव तो है ही।

मुझे ये तो नहीं पता कि अगले साल मैं क्या सब करने वाल हूँ या कि कि मेरे साथ क्या सब होने वाला है मगर इतना तय है कि अपना काम पूरी इमानदारी से करता रहूंगा जैसा करता आ रहा हूँ। घर पर और बाहर भी जो जितना कर सकूंगा वो सब भी करता रहूंगा । हाँ कुछ पुराने रिश्तों कुछ पुराने दोस्तों को दूंध्ने कि कोशिश करूंगा क्योंकि ये ज़िंदगी जितनी दिखाई देती है उससे भी छोटी होती है।


कहिये आप लोग क्या सब करने वाले हैं?

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