प्रचार खिडकी

सोमवार, 4 फ़रवरी 2008

जिन्दगी (एक कविता )

क्यों तन्हा ,
और,
वीरान है जिन्दगी॥

ना जाने,
किस गम से,
परेशान है जिन्दगी॥

साँसे तो हैं,
इस दिल में , पर,
बेजान है जिन्दगी॥

इतनी आबादियों के ,
बीच भी,
सुनसान है जिन्दगी॥

बीते और आने वाले ,
कल के बीच ,
वर्तमान है जिन्दगी॥

युगों युगों की दौड़ में,
चंद बरसों की,
मेहमान है जिन्दगी॥

प्रेम-द्वेष, सुख-दुःख,
हर फलसफे, हर एहसास की ,
पहचान है जिन्दगी॥

बहुत जाना , बहुत समझा,
लेकिन अब भी ,
अनजान है जिन्दगी॥

दोनो सच्चे पहलू हैं,
कभी दर्द का कतरा,
कभी मुस्कान है जिन्दगी॥

कहिये आप क्या कहते हैं जिन्दगी के बारे में.

2 टिप्‍पणियां:

  1. दूसरों को हँसाना...
    खुद कोने में छुप कर रोना है ज़िन्दगी
    दूसरों की हसीन...
    अपनी बेडौल है ज़िन्दगी

    जवाब देंहटाएं
  2. aap dono kaa dhanyavaad, chaliye pata to chala ki is jindagee mein auron kee jindagee bhee shamil hai..

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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