प्रचार खिडकी

शनिवार, 15 अगस्त 2009

नहीं मुझे कोई शिकायत नहीं , न देश से न उसकी आजादी से ..




















साल में दो बार जब भी देश के स्वतंत्र और गणतंत्र दिवस को मनाये जाने का अवसर आता है उस समय हमेशा ही ये प्रश्न उठता और उठाया जाता है की ...क्या यही है आजादी...क्या इसी के लिए हमारे पुरखों ने संघर्ष किया था ..क्या यही वो सपना था जो उन्होंने देखा था....और यकीनन फटाक से उसका जवाब मिलता है ...बिलकुल नहीं जी...ऐसा तो कतई नहीं सोचा था ....ये सब तो अब हो रहा है ...और कई बार तो ये तक कहा जाता है की .......यार इससे भले तो अंग्रेजों के जमाने में थे ...तो क्या सिर्फ इतने ही वर्षों में स्वतन्त्रता हमें भारी लगने लगी है ...इतनी की अब तो उसे मनाने का मन भी नहीं करता ...आज बहुत से लोगों के लिए ये सिर्फ एक छुट्टी बन कर रह गयी है ....यानि शिकायत ही शिकायत ..एक छटपटाहट ..एक व्याकुलता ...मगर किसलिए ...

क्या सचमुच देश को आजादी मिलने से ..हमें स्वतंत्र होने से ...कोई अंतर नहीं आया ...कम से कम मुझे तो ऐसा नहीं लगता ...हाँ ये हो सकता है की ऐसा मुझे अपने जीवन से मिले निजी अनुभवों के कारण लगता हो ....मगर अपने स्थान पर खड़े हर व्यक्ति से मैं कम से कम यही अपेक्षा तो कर ही सकता हूँ की ..हमें कोई शिकायत नहीं है ..इस देश के आजाद होने ..और आजादी बनी रहने से ..इस बात का भी अफ़सोस नहीं है की ..हम इस देश के नागरिक हैं ...और कहूँ तो गर्व है ..किन किन बातों पर ..वो एक अलहदा मुद्दा है ...जिसमें बहस की बहुत गुंजाईश है ...दोष और गुण ...दो सर्वथा अनिवार्य तत्त्व हैं ...जो सब जगह मिल ही जाते हैं ....बस फर्क आपके देखने का होता है ...मुझे बहुत अच्छी तरह स्मरण है की पिताजी बताते थे कि किस तरह वे और उनके पिताजी जी तोड़ मेहनत के बावजूद दो वक्त का खाना नहीं खा पाते थे क्यूंकि ..सारा अनाज लगान में ही चला जाता था ....समय बदला ...पहले उन्होंने फौज में देश की सेवा की....अपने बाल बच्चों को यथासंभव और यथाशक्ति ...उस समय उपलब्ध संसाधनों और शिक्षा सुविधाओं के अनुरूप ..पढाया लिखा कर एक जिम्मेदार नागरिक और एक अच्छा इंसान बनाया ..चाहते तो वे भी अपने मित्रों की तरह बहुत से व्यसन करते ..हो सकता था कि औरों की तरह वे भी अपने परिवार को ग्रामीण परिवेश में छोड़ कर ...बाद में नौकरी न मिलने के लिए देश को, सरकार को, उसके तंत्र को कोसते ..मगर ऐसा हुआ नहीं....आज मैं राजधानी में एक सरकारी नौकरी में हूँ ..अपनी संतानों के लिए ..उनके भविष्य के लिए ..उन्हें जो भी दे सकता हूँ दे रहा हूँ ...और मुझे कभी भी नहीं लगा कि ..सरकार , ये देश, मेरे लिए कोई ऐसी बाधा खड़ी कर रहे हैं ...

जानते हैं हमारी समस्या क्या है ...हम आसानी से ही ...बिना किसी सोच विचार के ..एक दम से निर्णय पर पहुंच जाते हैं कि ......सब दोष सिर्फ सरकार का इस देश की परिस्थितियों का ही है ....आखिर ये देश है कौन ..क्या मिटटी ,पानी, पहाड़, जंगल ,,गाँव , शहर ,,यही देश हैं...नहीं देश तो हम और आप हैं ...और हम आप क्या ....यदि आप खुद ठीक हैं ..तो देश ठीक है .....तो कीजिये न खुद का आकलन ..झांकिए न अपने अन्दर ..पूछिए न अपनी अंतरात्मा से प्रश्न ....और मुझे लगता है कि आपको जो जवाब मिलेगा वो ही बतायेगी कि ...देश का ...उसकी आजादी का महत्व क्या और कितना है ....वैसे भी पकिस्तान, बंगलादेश, चीन जैसे ....मासूम मित्र देशों की फितरत ,नीयत , और उद्देश्यों को कौन नहीं जान रहा है ...तो ऐसे में यदि हम खुद ही अपने देश के दुश्मन,,उसके विरोधी बने रहने का दिखावा करते हैं, (दिखावा इसलिए कह रहा हूँ क्यूंकि मैं जानता अहूँ कि भले हम थोड़ी देर के लिए भडास निकाल लें ,,खूब भला बुरा कह लें ...मगर हर हाल में दिल से भारतीय ही रहते हैं ..और रहेंगे ..न जाने कितने युगों तक ) तो ये ठीक नहीं होगा.....इसलिए ...दोस्तों इस आजादी को ..इस देश को ..और इस देश के आप जैसे सभी प्यारे देशवासियों के हर जज्बे को सलाम ......

4 टिप्‍पणियां:

  1. निश्चित रूप से आजादी के अपने संघर्ष पर हमें गर्व है। आजादी को हासिल करने का भी गर्व है। आजादी के आरंभिक वर्षों में जो योजनाएँ बनीं और जिन की ठोस जमीन पर आज का हिन्दुस्तान खड़ा है उस पर भी हमें नाज है। लेकिन उस के बाद हमारी पीढ़ी से पहले की पीढ़ी और हमारी पीढ़ी ने इस देश को जिस स्थान पर पहुँचा दिया है उस पर शर्म भी हमें आज के दिन महसूस होनी चाहिए। संविधान बनाते हुए हम ने जो लक्ष्य निर्धारित किए थे वे कहाँ हैं। एक सिर्फ एक बात स्मरण कराना चाहता हूँ कि आरक्षण जो केवल कुछ वर्षों के लिए एक व्यवस्था थी उसे हम साठ वर्ष तक खींच गए हैं और दस वर्ष के लिए हम ने उसे बढ़ा दिया है। जातियों के बीच जो ऊँच-नीच है उसे समाप्त करने से हम कितनी दूर हैं? हमें सोचना चाहिए कि क्या अगले दस वर्ष बाद इस जातिगत आरक्षण से क्या मुक्ति पायी जा सकती है। यदि हाँ तो उस के क्या उपाय हो सकते हैं।

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  2. haan bilkul theek kahaa aapne...magar phir bhi....
    क्या हुआ जो मुहँ में घास है
    अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
    क्या हुआ जो चोरों के सर पर ताज है
    अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
    क्या हुआ जो गरीबों के हिस्से में कोढ़ ओर खाज है
    अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
    क्या हुआ जो अब हमें देशद्रोहियों पर नाज है
    अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
    क्या हुआ जो सोने के दामों में बिक रहा अनाज है
    अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
    क्या हुआ जो आधे देश में आतंकवादियों का राज है
    अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
    क्या जो कदम-कदम पे स्त्री की लुट रही लाज है
    अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
    क्या हुआ जो हर आम आदमी हो रहा बर्बाद है
    अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
    क्या हुआ जो हर शासन से सारी जनता नाराज है
    अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
    क्या हुआ जो देश के अंजाम का बहुत बुरा आगाज है
    अरे कम-से-कम देश तो आजाद है.....!!
    इस लोकतंत्र में हर तरफ से आ रही गालियों की आवाज़ है
    बस इसी तरह से मेरा यह देश आजाद है....!!!!

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  3. बहुत ही तीक्ष्ण दृष्टीकोण. क्या वाकयी हम पूरी तरह आजाद है...?

    कदम आगे बढते तो है...पर दो कदम पीछे क्यों हट जाते है..?. हम सब जान कर भी अन्जान है.

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  4. आप सबके मत और विचारों का आदर करता हूँ....और द्विवेदी जी ..आप जिन संवैधानिक व्यवस्थाओं की बात कर रहे हैं ..वे तो निश्चित ही एक कोढ़ का रूप ले चुके हैं आज...मगर मेरा कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना था की ..पहले हमें खुद को ....सिर्फ खुद को समर्थ, विचारवान. जिम्मेदार होने, बनने की जरूरत है ..और जिसकी मुझे आज बहुत ही कमी दिखाई देती है ..और अन्य हालातों , स्थितियों पर तो मैं आप सबसे ...मैं क्या सभी एक स्वर में सहमत होंगे ही...आभार

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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