प्रचार खिडकी

गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

दैनिक विराट वैभव (दिल्ली ) में प्रकाशित मेरा एक आलेख ...









आलेख को पढने के लिए उस पर चटका लगा दें , छवि बडी होकर अलग खिडकी में खुल जाएगी

2 टिप्‍पणियां:

  1. ... पुराने खजाने से निकलते हुये हीरे-ज्वाहारात, बधाई!

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  2. बहुत ज़रूरी विषय । मुझे कुमार विकल की एक कविता याद आई - यह जो सड़क पर खून बह रहा है / इसे सूंघकर देखो / यह हिन्दू का है या मुसलमान का / सिख का या ईसाइ का / किसी बहन का या भाई का / सड़क पर पड़े टिफिन कैरियर से जो रोटी की गन्ध आ रही है ? वह किस जाति की है " यह एक दुर्घटना का दृश्य है ।

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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