प्रचार खिडकी

बुधवार, 5 जून 2013

नाम-पता अपना, दीवारों पे दर्ज़ किया है

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जिंदगी !यूं तो हर सुबह किया तेरा इस्तकबाल
और हर शाम तुझको ही आदाब अर्ज़ किया है,
मगर मौत इल्ज़ाम न लगा दे बेवफ़ाई का हमपे ,
नाम-पता अपना ,दीवारों पे इसलिए तो दर्ज़ किया है ,

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पूछ सवाल , तू पूछती जा जिंदगी , बताऊं तो किसके लिए ,
न जिंदगी बचे न सवाल कोई अब , बचाऊं तो किसके लिए

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मुहब्बत तू मान या न मान मगर सच तो यही है ,
तुझ पर कयामत तक यही इल्ज़ाम रहेगा ,
जिंदगी तो रही है हमेशा बेवफ़ा सितमगर ,
मगर मौत से पहले मरना , बस तेरे ही नाम रहेगा

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नादां है दिल तू खुद मेरे तो किसी और से क्या कहना है ,
शीशा-ए-दिल भी अपना और तोडा जिसने वो पत्थर भी अपना है

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पत्थर के शहर , अब जाना , तुझको ये दिल हमने बेकार ही दिया ,
तेरी तो तू ही जाने पत्थर दिल , हमने तो जब भी किया प्यार ही किया

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मत पूछ यार मेरे मुझसे कि तू परेशान क्यूं है ,
जिंदगी पूछे लाख सवाल तो ठीक ,मैं पूछ बैठा एक तो हैरान क्यूं है

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रात को सन्नाटे में चुपके से मुझसे मिलने मेरी तन्हाई आती है ,
दिन में जब शोर करती है दुनिया , मिलने मेरी परछाई आती है

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दिल की अंगीठी सुनगती है रात दिन , आंच ये सीली सीली सी है ,
रहने दो न करो खोलने की कोशिश ,आंखों में गांठ ये गीली गीली सी है

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6 टिप्‍पणियां:

  1. दिल की अंगीठी सुनगती है रात दिन , आंच ये सीली सीली सी है ,अपने भावो को बहुत सुंदरता से तराश कर अमूल्य रचना का रूप दिया है....सुबह सुबह मन प्रसन्न हुआ रचना पढ़कर !

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  2. बेहद सुन्दर रचना अजय सर आपका आभार।

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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