सोच रहा हूँ कि कल को फेसबुक जब मेमोरीज़ में ये आज कल हमारे द्वारा लिखी कही गयी बातों को दिखाएगा उस वक्त तक हम निश्चित रूप से इन झंझावातों से गुज़र चुके होंगे और ये अच्छे बुरे दिन ही यादों के पन्नों पर अंकित होकर रह जाएंगे। इन हालातों से ,इन हादसों से हम क्या कितना सबक ले पाए ये भी तब तक सबपर ज़ाहिर हो ही जाएगा।
देखने वाली बात ये भी होगी कि कुदरत ने हमें ख़बरदार करके जो ये कहा है कि चुपचाप पड़े रहो जहां हो जितने हो जैसे हो क्यूंकि मुझे तुमसे इससे ज्यादा चाहिए भी नहीं। तुम आज जब अपनी जान की फ़िक्र में अपने घर में ,अपनों के बीच ,अच्छा बुरा जो भी समय काट रहे हो न ,ये तरह तरह के आयोजन प्रयोजन से अपना समय बिता रहे हो न असल में जीवन तो यही है इसी का नाम है। जब जितनी जरूरत है वही लाकर और उसी के सहारे आगे को सरका रहे हो न शांति से असल में ज़िंदगी यही थी तुम्हारी और होनी भी यही चाहिए थी।
और इस बीच मैं यानि तुम्हारी धरती ,तुम्हारा पानी ,तुम्हारी हवा सब हम खुद को नई ज़िंदगी नया जीवन दे रहे हैं क्यूंकि कल जब तुम और तुम्हारे बाद की नस्लें फिर से सब कुछ भूल कर हमें बर्बादी के कगार पर पहुंचाने के लिए उद्धत होने लगोगे तो उससे पहले हम कम से कम अगले बहुत सारे सालों के लिए खुद की भी मरम्मत तो करनी ही होगी।
यादों में जब इन दिनों का एल्बम पलट कर सामने आएगा तो आएगा ये भी की कैसे अमेज़न और नेटफ्लिक्स ,सोनी स्टार प्लस को बुरी तरह नकार कर रामायण महाभारत ने दूरदर्शन को करीब दर्शन में बदल दिया था। ये भी याद आएगा जरूर कि स्विगी ज़ोमेटो की नकली स्वाद की दुनिया से अचानक हम सबने कैसे घरों की रसोई को अपनी माँ दादी वाली रसोई में तब्दील कर दिया दिया।
याद तो ये भी आएगा कि त्यौहारों पर भी अब अलग थलग रहने वाले हम सब कैसे अपने देश के मुखिया के कहने भर से शंख और दीये लेकर एक लय एक प्रकाश में खुद को पिरो कर खड़े हो गए थे। याद तो ये एल्बम हमें ये भी दिलाएगा कि हमारे अंदर छुपी दबी हुई हर वो बात अपने आप निकल कर सामने आ गयी थी और हममें से कोई चित्रकार के रूप में सामने आ गया था तो कोई प्यारे से गीतकार के रूप में।
आसपास चल रही तमाम नकारात्मकता को सिरे से नकार कर ,झटकर सिर्फ अच्छी और बहुत अच्छी यादें बातें सहेजने समेटने का वक्त है ये। अच्छी यादें बनाने का समय है ये
हाँ , ये आत्मविश्लेषण करने का समय है , अपने को तौलने का समय है । हम वाकई आज से तीस साल प ले वाले जीवन पर आ खड़े हुए हैं । अच्छा है सहनशीलता, सामंजस्य और सहयोग तो आ रहा है ।
जवाब देंहटाएंइस समय की सकारात्मकता यही है कि हम कुछ सीखने का, आत्मविश्लेषण का काम करें. प्रकृति ने अपने लिए समय निकाला है, हम सबको कैद करवा कर तो फिर उसका सदुपयोग ही किया जाये.
जवाब देंहटाएंआपने एक आइना रख दिया है सामने, जिसमें विस्तृत क्षितिज व भविष्य दोनों ही अंकित है। जरा सा देख लेने से भी आत्मग्लानि होने लगती है। कितने आत्ममुग्ध थे हम, पर वो झूठ था।
जवाब देंहटाएंसत्य वही है जो घटित हो रहा है, और इसे ऐसा होना ही था।
शायद मेरी प्रतिक्रिया भी भविष्य के पन्नों में सिमटकर रह जाय, फिर भी मौन शब्द हुंकार तो भरेंगे ही।
सधन्यवाद
इस समय सकारात्मक बने रहकर आत्ममंथन करने का समय है। सब कुछ ठहरा हुआ है और हमें फिर उसी सहजता को पाने के लिए प्रेरित कर रहा है
जवाब देंहटाएंइस समय सकारात्मक बने रहकर आत्ममंथन करने का समय है। सब कुछ ठहरा हुआ है और हमें फिर उसी सहजता को पाने के लिए प्रेरित कर रहा है
जवाब देंहटाएंसमय की सकारात्मकता यही है
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