प्रचार खिडकी

बुधवार, 28 नवंबर 2007

विवादों पर जीने वाले परजीवी

बहुत पहले एक रेल यात्रा के दौरान एक चित्रकार महोदय से औपचारिक बातचीत में मैंने यही पूछा था कि एक कलाकार की कला किसके लिए होती है समाज के लिए या खुद उसके लिए? उन्होने जो भी जितने देर भी बहस की उसका निष्कर्ष यही था कि कला , कलाकार के लिए होती है। मकबूल जी की तूलिका यदि रामायण-महाभारत को चित्रित कर सकती है तो आख़िर वो कौन से कारण हैं कि उन्हे देवी को अपमानजनक रुप में चित्रित करने दो मजबूर होना पडा। तस्लीमा जे, हों या सलमान रश्दी जी, उन्होने जब भी जिस भी समस्या को उठाया है क्या बिना किसी धार्मिक आस्था पर चोट पहुँचाये या विवाद पैदा किये उसे सबके सामने लाना नामुमकिन था। और आजकल तो किताब हो या फिल्म, विज्ञापन हो या भाषण, विवाद -आलोचना के बिना बेकार है, स्वाद हीन।

हाँ, मगर विशेषताओं से युक्त इन तमाम प्रबुद्ध कलाकारों से एक प्र्दाष्ण पूछने का मन तो करता है कि यदि कला सिर्फ कलाकार के लिए है तो फिर समाज से प्द्रतिक्रिया ,सम्मान, आलोचना की अपेक्षा क्यों ?
क्या ये विवादों पर जीवित रहने वाले परजीवी लोग हैं ? आप ही बतायें ।

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