प्रचार खिडकी

रविवार, 2 मार्च 2008

क्यों पैदा होती हैं बेटियाँ ?

आप सोचेंगे कि ये क्या सवाल हुआ .फ़िर तो कोई कहेगा कि क्यों निकलता है सूरज और क्यों होती है रात, क्यों बदलते हैं दिन और महीने। हाँ , हाँ हो सकता है कि आप को ये इसी तरह का एक बेतुका सवाल लगे मगर मैं ये बात यहाँ इसलिए उठा रहा हूँ क्योंकि पिछले कुछ समय से ना सिर्फ़ इस ब्लॉगजगत पर बल्कि विभिन्न माध्यमों में और बहुत से लोगों , विशेषकर महिलाओं द्वारा , ये सवाल खूब उठाया गया है, बहुत सारे तर्क-वितर्क , आकलन, विश्लेषण, आरोप खासकर पुरुषवादी मानसिकता और समाज पर हर बार उंगली उठाई जाती रही है। और कमोबेश ये कहीं ना कहीं सच तो हैं ही, मगर और भी कुछ बातें हैं जो शायद सामने नहीं आती , या कि उन्हें सामने लाया नहीं जाता।

कल यूं ही किसी ने किसी से पूछ लिया , यार ये बेटियाँ पैदा ही क्यों होती हैं, काफी देर के बहस के बाद कुछ उत्तर ऐसे मिले :-

--बेटियाँ इसलिए पैदा होती हैं, ताकि उसे पैदा करने वाली माँ को उसके पापबोध का एहसास कराया जा सके। उसे बताया जा सके कि ये उसके सभी गुनाहों की या कहें कि ख़ुद औरत के रूप में पैदा होने की सबसे बड़ी सजा है जिसकी कोई माफी नहीं है॥

बेटियाँ इसलिए पैदा होती हैं ताकि बेटों को एहसास दिलाया जा सके कि देखो इनकी तुलना में तुम्हारा महत्व हमेशा ज्यादा रहा है और रहेगा॥

बेटियाँ इसलिए भी पैदा होती हैं ताकि समाज को कोई मिल सके , कोसने के लिए, पीटने के लिए, नोचने के लिए, सहने के लिए...

बेटियाँ , और बेटियों के बाद फ़िर बेटियाँ इसलिए पैदा होती हैं कि , काश किसी बार बेटा पैदा हो जाए .....

उत्तर मिल ही रहे थे कि बीच में किसी ने टोक दिया , क्यों फालतू की मगजमारी कर रहे हो । तुम्हें नहीं पता अब बेटियाँ कहाँ पैदा हो रही हैं, उन्हें तो गर्भ में ही मारा जा रहा है।

दूसरे ने कहा , तुम हर बार ये बात उठाते हो और वही पुराना राग अलापते हो मगर किसी बार ये नहीं कहते कि बेटियोंके जन्म पर सबसे ज्यादा दुःख और अफ़सोस कौन जताता है, माँ, सास , चाचे, मामी और ये कन्या बरुन हत्या करने वाली दोक्टोर्स के अन्दर क्या किसी पुरूष का दिल और दिमाग लगा रहता है। ये बहस चलती ही जा रही है और आगे भी चलती रहेगी। बेटियाँ पैदा होती रहे इसी में इस संसार का अस्तित्व बचा है अन्यथा कहीं कुछ भी नहीं बचेगा.....

सोचिये आप भी सोचिये ......

मेरा अगला पन्ना :- कमजोर हिन्दी नहीं हम हैं .

4 टिप्‍पणियां:

  1. ह्म्म !
    चिंता और खेद अभिव्यक्त करती यह पोस्ट है । शायद यह संघटन बदलते ही कविता हो जाती ।

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  2. ह्कीकत से रुबरु कराता आपका यह लेख दिल को ्झकझोरता है काश,ये उन असंवेदनशील मन में भी कोइ एहसास जगा पाता………।

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  3. बेटियाँ पैदा होती रहे इसी में इस संसार का अस्तित्व बचा है अन्यथा कहीं कुछ भी नहीं बचेगा.....

    इन पंक्तियों ने सभी कुछ कह दिया।

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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