प्रचार खिडकी

बुधवार, 5 मार्च 2008

में खुद को ही प्यार करने लगा

जब लगे,
दुत्कारने,
मुझको सभी,
परित्यक्त ,
सा हर कोई,
व्यवहार करने लगा॥

खुद को,
उठाया,
गले से,
लगाया,
में खुद ,
खुद को,
ही प्यार करने लगा॥

जीता रहा,
जिस दुनिया को,
अपने,
सीने से लगाए,
मुझे अपने से,
दूर जब ये,
संसार करने लगा॥

खुद को,
सम्भाला,
संवारा-सराहा,
स्नेह से,
पुचकारा,
खुद को ही,
लाड करने लगा॥

उसने इतना,
दिया नहीं मौका,
कि उसे,
कह पाता,
मैं बेवफा,
तो खुद ,
आईने में,
अपने अक्स से,
मोहब्बत का,
इजहार करने लगा।

क्या करता सोचा चलो कोई तो होना ही चाहिए प्यार करने वाला तो मैं खुद ही क्यों ना

4 टिप्‍पणियां:

  1. उसने इतना,
    दिया नहीं मौका,
    कि उसे,
    कह पाता,
    मैं बेवफा!

    जीवन चलते रहने का नाम है... उसके लिए क्या रुकना जो रास्ते में ही साथ छोड़ दे. अच्छी रचना है! धन्यवाद.

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  2. simply awesome,somebody has said rightly,luv thyself and the world will luv u,bahut jandar shandar.aur ek baat wordverification hatane ke liye aur wordpress blogwalo ko tippani ki suvidha dene ke liye thanks

    जवाब देंहटाएं
  3. aap dono kaa dhanyavaad, aje kya karein mehhekk jee mujhe isse pehle pataa hee nahin tha ki ya sab kiya kaise jaataa hai.

    जवाब देंहटाएं
  4. khud ko pyaar karna itna aasaan to nahi,haa koshish ki jaa sakti hai.aapki rachna bahut sundar hai.Mujhe apne pasandeeda logo ki soochi me shamil karne ke liye shukriya .

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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