प्रचार खिडकी

रविवार, 8 मई 2011

जिसे किसी ने कभी मां न कहा ........रद्दी की टोकरी से





तू खुद ही उजाड ले , कायनात अपनी ओ खुदा ,
खुद इंसान भी तो है , इसी ज़िद पर तुला ....


हवा बदली ,फ़िज़ा बदली , यूं तो मुहब्बत भी रोज बदलती रही ,
बस न बदला तो वो समाज जो हमेशा बेवफ़ा ही रहा .......


आजा माता का दिन है , तो है संतान का भी , पर ,
कोई ऐसा भी है जिसे किसी ने कभी मां न कहा ........


ये जरूरी नहीं कि आग मजबूत हो , दे जला दे पूरा ,
बस जलनी और जलती रहनी है जरूरी , तू जला , तू जला


दस्तूर कब और ये जाने क्योंकर बना ,अजनबी नहीं ,
सबको हर बार किसी दोस्त ने ही दी  है   दगा


मौत देते हो खुद तुम हाथों से अपने ..
कभी मिठाई तो कभी कह के दवा


अन्याय के साथ ही चलता न्याय का सिलसिला ,
कब हो फ़ैसला , बस ये नहीं हो रहा फ़ैसला .....


कौन कहता है मुझसे तेरा दिल न मिला , न तू खुद तो नहीं ,
है जिसको ये शक , बस इक बार गले से लगा ले ज़रा ....



मुझे शायरी नहीं आती , गज़ल का मतलब मुझे पता ही नहीं , मितले और मिसरे का समझ का तो सवाल ही नहीं , ..बस दिल जो लिखाता है..वो यहां आ जाता है ...मिलता हूं ..अगली पोस्ट के साथ

11 टिप्‍पणियां:

  1. हाय!! डिसक्लेमर की क्या जरुरत आ गई थी हमरे झा जी को...दिल से लिखो..भाव संप्रेषित हो रहे हैं...बस्स!! इतना ही तो चाहिये....

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  2. उंह्हह्ह ..हमको बुडबक समझते हैं क्या ..सोच के लिखे थे ..शायर सबको फ़ंसाने के लिए जाल बिछाए हैं ..देखिए कईसे पहिला शायर को खींच लिए ..अभी तो और आएंगे ..महफ़िलों में कि इक हम आप अकेले के दिल में नहीं हैं ...

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  3. नही आने पर तो ये हाल है और आ गयी तो क्या होगा………सारे ब्लोगर भाग जायेंगे…………शानदार प्रस्तुति।

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति और श्रीमती वन्दना जी से भी सहमत हूँ .

    अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?

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  5. जब आप शायर नहीं है तो भला हम श्रोता कैसे बने ... पर यह दिल तो बच्चा है जी सो एक दुसरे बच्चे की बात समझता है !! बड़े तो सब समझते हुए भी कुछ नहीं समझते !

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  6. बहुत सुंदर लिखा है आपने .... .... हर पंक्ति अर्थपूर्ण लगी....

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  7. जब शायरी नहीं आती तो इतनी अच्छी गज़ल कही
    यदि आती तो पता नहीं क्या क्या गज़ब ढाते

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  8. बहुत बढ़िया... शायरी तो दिल से लिखी और पढि जाती है.. बाकी तो औपचारिकताएं हैं.. शुभकामनाएं...

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  9. प्रिय दोस्तों! क्षमा करें.कुछ निजी कारणों से आपकी पोस्ट/सारी पोस्टों का पढने का फ़िलहाल समय नहीं हैं,क्योंकि 20 मई से मेरी तपस्या शुरू हो रही है.तब कुछ समय मिला तो आपकी पोस्ट जरुर पढूंगा.फ़िलहाल आपके पास समय हो तो नीचे भेजे लिंकों को पढ़कर मेरी विचारधारा समझने की कोशिश करें.
    दोस्तों,क्या सबसे बकवास पोस्ट पर टिप्पणी करोंगे. मत करना,वरना......... भारत देश के किसी थाने में आपके खिलाफ फर्जी देशद्रोह या किसी अन्य धारा के तहत केस दर्ज हो जायेगा. क्या कहा आपको डर नहीं लगता? फिर दिखाओ सब अपनी-अपनी हिम्मत का नमूना और यह रहा उसका लिंक प्यार करने वाले जीते हैं शान से, मरते हैं शान से
    श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी लगाये है.इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है.मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.
    क्या ब्लॉगर मेरी थोड़ी मदद कर सकते हैं अगर मुझे थोडा-सा साथ(धर्म और जाति से ऊपर उठकर"इंसानियत" के फर्ज के चलते ब्लॉगर भाइयों का ही)और तकनीकी जानकारी मिल जाए तो मैं इन भ्रष्टाचारियों को बेनकाब करने के साथ ही अपने प्राणों की आहुति देने को भी तैयार हूँ.
    अगर आप चाहे तो मेरे इस संकल्प को पूरा करने में अपना सहयोग कर सकते हैं. आप द्वारा दी दो आँखों से दो व्यक्तियों को रोशनी मिलती हैं. क्या आप किन्ही दो व्यक्तियों को रोशनी देना चाहेंगे? नेत्रदान आप करें और दूसरों को भी प्रेरित करें क्या है आपकी नेत्रदान पर विचारधारा?
    यह टी.आर.पी जो संस्थाएं तय करती हैं, वे उन्हीं व्यावसायिक घरानों के दिमाग की उपज हैं. जो प्रत्यक्ष तौर पर मनुष्य का शोषण करती हैं. इस लिहाज से टी.वी. चैनल भी परोक्ष रूप से जनता के शोषण के हथियार हैं, वैसे ही जैसे ज्यादातर बड़े अखबार. ये प्रसार माध्यम हैं जो विकृत होकर कंपनियों और रसूखवाले लोगों की गतिविधियों को समाचार बनाकर परोस रहे हैं.? कोशिश करें-तब ब्लाग भी "मीडिया" बन सकता है क्या है आपकी विचारधारा?

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टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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