होगा कई,
शहरों -कस्बों ,
मैदानों-सड़कों,
का मालिक,
फ़िर भी,
चला वो,
सड़क किनारे,
नहीं बीच में,
चलते देखा॥
कहते होंगे,
उसे सभी , वो,
है बड़े,
दिल का मालिक,
पर वो तो,
हाथ मिलाता सबसे,
कभी किसी से,
नहीं गले मिलते देखा॥
मुझको लगता था,
मैं ऐसा हूँ,
दोस्तों से भी,
चिढ जाता हूँ,
पर उसको भी,
अक्सर,
यारों की,
कामयाबी पर,
जलते देखा॥
सूखी ही सही,
रोटी ही सही,
पर माँ , मुझको,
ख़ुद देती है,
उसके बच्चों ,
को तो ,
आया के हाथों,
पलते देखा॥
मुझको लगा की,
कमजोरी ने,
मुझको बूढा बना दिया,
देखा तो,
कुछ,
झुर्रियां ही,
थोड़ी कम थी,
उम्र के उस मोड़ पर,
उसको भी,
ढलते देखा॥
शहरों -कस्बों ,
मैदानों-सड़कों,
का मालिक,
फ़िर भी,
चला वो,
सड़क किनारे,
नहीं बीच में,
चलते देखा॥
कहते होंगे,
उसे सभी , वो,
है बड़े,
दिल का मालिक,
पर वो तो,
हाथ मिलाता सबसे,
कभी किसी से,
नहीं गले मिलते देखा॥
मुझको लगता था,
मैं ऐसा हूँ,
दोस्तों से भी,
चिढ जाता हूँ,
पर उसको भी,
अक्सर,
यारों की,
कामयाबी पर,
जलते देखा॥
सूखी ही सही,
रोटी ही सही,
पर माँ , मुझको,
ख़ुद देती है,
उसके बच्चों ,
को तो ,
आया के हाथों,
पलते देखा॥
मुझको लगा की,
कमजोरी ने,
मुझको बूढा बना दिया,
देखा तो,
कुछ,
झुर्रियां ही,
थोड़ी कम थी,
उम्र के उस मोड़ पर,
उसको भी,
ढलते देखा॥
दिल.. दिमाग और जाने क्या क्या जीत लिया इन पंक्तियों ने... बस अब इससे आगे कोई क्या सच कहेगा..
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
देखा तो,
जवाब देंहटाएंकुछ,
झुर्रियां ही,
थोड़ी कम थी,
उम्र के उस मोड़ पर,
उसको भी,
ढलते देखा॥
-ओह! बड़ी गहरी सोच में डूबे हैं.
अजय भाई,
जवाब देंहटाएंकविता शानदार है...लेकिन दुनिया को हंसी बांटने वाले के इतने धीर-गंभीर अंदाज़ क्यों है आजकल...
लगता है दो-तीन घंटे आपके साथ रहकर लाफ्टर का डबल डोज़ देना ही पड़ेगा...मैं पहले भी कह चुका हूं आपसे...बाकी दिया गल्ला छड़ो, बस दिल साफ़ होना चाहिदा...
जय हिंद...
हाथ मिलाता सबसे,
जवाब देंहटाएंकभी किसी से,
नहीं गले मिलते देखा॥
दूरी जो बरकरार रखनी है
बहुत सुन्दर
सूखी ही सही,
जवाब देंहटाएंरोटी ही सही,
पर माँ , मुझको,
ख़ुद देती है,
उसके बच्चों ,
को तो ,
आया के हाथों,
पलते देखा॥
कौन खो रहा है , कौन पा रहा है ,विचारणीय है
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
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