बदल रहा है ज़माना,
या कि,
रिश्ते बदल रहे हैं॥
अब तो लाशें,
और कातिल ,
एक ही,
घर के निकल रहे हैं॥
पर्त चिकनी , हो रही है,
पाप की,
अच्छे-अच्छे,
फिसल रहे हैं॥
बंदूक और खिलोने,
एक ही,
सांचे में ढल रहे हैं॥
जायज़ रिश्तों के,
खून से सीच कर,
नाजायज़ रिश्ते,
पल रहे हैं॥
मगर फिक्र की,
बात नहीं है,
हम ज़माने के,
साथ चल रहे हैं...
बदल रहा है ज़माना,
या कि,
रिश्ते बदल रहे हैं॥
बहुत सामयिक और बढिया रचना है।बधाई।
जवाब देंहटाएंTareef karoon kya uski jisne ise banaya... :)
जवाब देंहटाएंवक्त के बदलते परिवेश का अहसास कराती शानदार रचना. मगर:
जवाब देंहटाएंमगर फिक्र की,बात नहीं है, हम ज़माने के,साथ चल रहे हैं...
फिक्र भी हो तो सोने पै सुहागा जिससे सच्चे रिश्तों की उम्मीद कायम रहे.
हाँ हम जमाने के साथ ही चल रहे हैं। कोशिश करेंगे कि हमारे यहाँ भी पाप और पुण्य एक जैसे ही दिखें।
जवाब देंहटाएंबंदूक और खिलोने,
जवाब देंहटाएंएक ही,
सांचे में ढल रहे हैं ...
बदलते ज़माने का खाका खींच दिया आपने ......... बहुत उम्दा .......
रिश्ते बदल रहे हैं.nice
जवाब देंहटाएंबदल रहा है ज़माना,
जवाब देंहटाएंया कि,
रिश्ते बदल रहे हैं॥
सोचनीय प्रश्न है
या फिर ऐसा तो नहीं
कि हम
जरूरत से ज्यादा
संभल रहे हैं
मगर फिक्र की,
जवाब देंहटाएंबात नहीं है,
हम ज़माने के,
साथ चल रहे हैं...
बदल रहा है ज़माना,
या कि,
रिश्ते बदल रहे हैं॥
वाह अजय जी बेहद सुन्दर !
पर्त चिकनी , हो रही है,
जवाब देंहटाएंपाप की,
अच्छे-अच्छे,
फिसल रहे हैं॥
बंदूक और खिलोने,
एक ही,
सांचे में ढल रहे हैं॥
वाह...क्या बात कही....
यथार्थ को तीखे शब्दों में सामने रखती बहुत ही सुन्दर रचना...
waah........gazab ki rachna hai ..........bahut hi sundar bhav.
जवाब देंहटाएंसुंदर और सच्ची रचना।
जवाब देंहटाएंबदलते दौर में हम सब बदल रहे हैं..
जवाब देंहटाएंबदल रहा है ज़माना,
जवाब देंहटाएंया कि,
रिश्ते बदल रहे हैं॥
वाह अजय जी बेहद सुन्दर !