प्रचार खिडकी

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

दर्द बेचो , या नंगापन, अच्छी पैकिंग में सब बिकता है..........


जो दिखता है, वो बिकता है, और,
जो बिकता है, वही दिखता है।
दर्द बेचो , या नंगापन,
अच्छी पैकिंग में सब बिकता है॥

मोहब्बत-नफरत, घटना-दुर्घटना,
हत्या-आत्महत्या, व्यापार ,व्याभिचार,
सब खबरें हैं इस मंडी की,
ये गर्म ख़बरों का है बाज़ार ..

नाबालिग़ की अस्मत लुटना, एक्सक्लूसिव है,
आन्तंक-अपराध, रोज़ के आकर्षण,
भूत-प्रेत , नाग-नागिन, डायन-चुडैल,
जाने किसे-किसे, है आमंत्रण॥

पत्रकारिता की ना जाने,
ये कौन सी मजबूरी है,
सब कुछ ख़बर बन ही जाए,
क्या ये बात जरूरी है ?

काश कि हमारा मीडिया ये बात समझ पाता !

8 टिप्‍पणियां:

  1. पत्रकारिता की ना जाने,
    ये कौन सी मजबूरी है,
    सब कुछ ख़बर बन ही जाए,
    क्या ये बात जरूरी है ?

    काश कि हमारा मीडिया ये बात समझ पाता
    KARARA JWAAB

    जवाब देंहटाएं
  2. मीडिया वाले इतनी जल्दि नहीं समझ पायेंगे अजय भईया ।

    जवाब देंहटाएं
  3. जो दिखता है, वो बिकता है, और,
    जो बिकता है, वही दिखता है।
    दर्द बेचो , या नंगापन,
    अच्छी पैकिंग में सब बिकता है॥

    दुखती रग छेड़ दी अजय भाई !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खुब, अजय भाई।
    सब पैसे की माया है।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत अच्छी धुलाई की आपने । सुन्दर रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  6. काश हमारे मिडिया वाले से समझते, ओर जनता की दुखती रग से ना खेलते

    जवाब देंहटाएं
  7. पत्रकारिता की ना जाने,
    ये कौन सी मजबूरी है,
    सब कुछ ख़बर बन ही जाए,
    क्या ये बात जरूरी है ?

    saara masla hi yahi hai..

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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