प्रचार खिडकी

रविवार, 21 फ़रवरी 2010

जाने किस ओर से, ये खुश्क हवा सी आई है


परेशान है हर,
आदमी आज,
क्यों इतनी,
बदहवासी सी छाई है॥

शुष्क है आंखें और,
सूखी-सूखी आत्मा भी,
जाने किस ओर से,
ये खुश्क हवा सी आई है॥

मोहब्बत के मायने बदले,
प्रेम प्यार का फलसफा भी,
आज इश्क में, वो बात कहाँ,
कहीं गुस्सा, कहीं धोखा, कहीं पर रुसवाई है॥

ये मुमकिन है कि ,
वक्त अलग हो और जगह अलहदा,
बस तय है इतना कि,
हर दिल ने चोट खाई है॥

हर तरफ़ नफरत की आंधी,
राग द्वेष यूं पसरा है,
ख़ाक होने को घर भी नहीं उतने,
जितने हाथों में दियासलाई है




14 टिप्‍पणियां:

  1. ख़ाक होने को घर भी नहीं उतने,
    जितने हाथों में दियासलाई है॥
    वाह अजय भाई बहुत गहरे भाव लिये है आप की यह रचना,
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. हर तरफ़ नफरत की आंधी,
    राग द्वेष यूं पसरा है,
    ख़ाक होने को घर भी नहीं उतने,
    जितने हाथों में दियासलाई है॥
    Waah! kitani sahi baat kahi aapane..bahut hi acchi rachana!
    Aabhar

    जवाब देंहटाएं
  3. ख़ाक होने को घर भी नहीं उतने,
    जितने हाथों में दियासलाई है॥

    -जबरदस्त बात कह गये आप तो!! वाह!!

    जवाब देंहटाएं
  4. ख़ाक होने को घर भी नहीं उतने,
    जितने हाथों में दियासलाई है॥
    बेहद संगीन पर हकीकत बयान करती रचना.

    जवाब देंहटाएं
  5. Jha ji,
    sabse pahle to blog ka sheershak badliye...
    'Raddi ka tokari' aur etna khoobsurat ?? baat nahi banti hai ...

    ख़ाक होने को घर भी नहीं उतने,
    जितने हाथों में दियासलाई है॥

    ayeaur ye jo aap likh diye hain...baap re jhakaas likhe hain bahuteeeeey badhiyaan..
    lajwaab, bemisaal, hadtaal, jhaptaal, golmaal...ha ha ha..

    जवाब देंहटाएं
  6. बस तय है इतना कि,
    हर दिल ने चोट खाई है॥

    बहुत बढिया रचना
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  7. सचमुच कैसी भयंकर है यह खुश्क हवा जो फागुनी हवाओं पर भी भारी है

    जवाब देंहटाएं
  8. तो...चलो उनके हाथों से यह दियासलाई छीन लें या उन्हे बतायें कि इसका उपयोग सिर्फ चूल्हा जलाने के लिये करें ।

    जवाब देंहटाएं
  9. ख़ाक होने को घर भी नहीं उतने,
    जितने हाथों में दियासलाई है....
    फागुन की बयार और खुश्क हवा (??) ...कचोटती है ...
    ये रद्दी की टोकरी भी कमाल है ...
    बहुत बढ़िया ...!!

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...