प्रचार खिडकी

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

आंखों में मंजर यही, हर बार रहता है........



माहौल कुछ ऐसा है,
या कि, अपनी,
आदत बन गयी है ये,
अब तो,
हर घड़ी,
इक नए हाससे का,
इन्तजार रहता है,
हकीकत है ये,
कि बेदिली की इंतहा,
देखते हैं, पहला,
दूसरा पहले से,
तैयार रहता है,

घटना- दुर्घटना ,
हादसे-धमाके,
प्रतिरोध-गतिरोध,
बिलखते लोग,
चीखता मीडिया,
बेबस सरकार,
आंखों में मंजर यही,
हर बार रहता है........

हाँ, शायद आज यही हमारी हकीकत बन चुकी है , कि एक के बाद एक नयी नयी घटनाएं, सामने आती जाती हैं, पिछली हम भूलते जाते हैं, और अगले का इंतज़ार करते हैं, यदि दूसरों पर बीती तो ख़बर, अपने पर बीती तो दर्द....

8 टिप्‍पणियां:

  1. सटीक बात कही है आपने
    दर्द भी एक ख़बर का रुप ले चुका है

    जवाब देंहटाएं
  2. शायद आज यही हमारी हकीकत बन चुकी है , कि एक के बाद एक नयी नयी घटनाएं, सामने आती जाती हैं, पिछली हम भूलते जाते हैं, और अगले का इंतज़ार करते हैं, यदि दूसरों पर बीती तो ख़बर, अपने पर बीती तो दर्द...

    बहुत सही बात कही आपने.....

    जवाब देंहटाएं
  3. na ham kuchh kar sakte hain na sarkar sivaye afsos jatane ke... aur koi shivsena bhi atankwaad ka virodh nahin karti yahi to rona hai..

    जवाब देंहटाएं
  4. घटना- दुर्घटना ,
    हादसे-धमाके,
    प्रतिरोध-गतिरोध,
    बिलखते लोग,
    चीखता मीडिया,
    बेबस सरकार,
    आंखों में मंजर यही,
    हर बार रहता है........
    yakinan aapane sachchai ko sabake samane badi khoobsurati se darshaya hai .
    poonam

    जवाब देंहटाएं
  5. घटनाओं को घटते देखते रहने की शायद हमारी आदत बन गयी है.
    सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  6. आये दिन तबाही के मंजरो के सैलाब देखने को मिल रहे हैं बहुत सटीक ...

    जवाब देंहटाएं
  7. ऎसी घटनाये रोज देख कर शायद आदत पड गई है ओर संवेदनाये भी मर सी गई है.लेकिन यही घटना अपनो पर गुजरती है तो दर्द होता है संवेदनाये जाग उठती है, आप ने सही लिखा

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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