प्रचार खिडकी

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

हुआ जो , हादसा, मेरे साथ, जमाने भर , के लिए, वो बस, एक ख़बर थी

हुआ जो ,
हादसा,
मेरे साथ,
जमाने भर ,
के लिए,
वो बस,
एक ख़बर थी॥

मैं तो,
सतर्क था,
और ,
सचेत भी,
मगर जिसने ,
हमें रखा,
अपनी ठोकरों पर,
शायद उसकी ही,
कहीं और ,
नज़र थी॥

मैंने छोड़ दिए,
कई रास्ते,
और कई,
मंजिलें भी,
जिसके लिए,
वो तो,
पहले ही,
किसी और की,
हमसफर थी॥

मैं ढूँढ ,
रहा था,
अपनी किस्मत को,
आकाश की,
बुलंदियों पर,
पाया तो ,
गर्दिशों में,
दर बदर थी॥

इक छटपटाहट,
सी थी,
जीवन चक्र
को चूमने की,
जब छुआ ,
तो जाना,
ये झील ।
में घूमती,
भंवर थी...


13 टिप्‍पणियां:

  1. इक छटपटाहट,
    सी थी,
    जीवन चक्र
    को चूमने की,
    जब छुआ ,
    तो जाना,
    ये झील ।
    में घूमती,
    भंवर थी...

    खूबसूरती से जज़्बात अभिव्यक्त किये हैं...जिंदगी सच में ही भंवर के समान ही होती है...बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  2. इक छटपटाहट,
    सी थी,
    जीवन चक्र
    को चूमने की,
    जब छुआ ,
    तो जाना,
    ये झील ।
    में घूमती,
    भंवर थी...

    जवाब देंहटाएं
  3. इक छटपटाहट,
    सी थी,
    जीवन चक्र
    को चूमने की,
    जब छुआ ,
    तो जाना,
    ये झील ।
    में घूमती,
    भंवर थी...


    वाह क्या खूब कहा ।

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!! बहुत खुब..आभार!
    http://kavyamanjusha.blogspot.com/

    जवाब देंहटाएं
  5. भँवर थी....
    हमने भी यही जाना, बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर रचना है। बधाई स्वीकारें।

    जवाब देंहटाएं
  7. इक छटपटाहट,
    सी थी,
    जीवन चक्र
    को चूमने की,
    जब छुआ ,
    तो जाना,
    ये झील ।
    में घूमती,
    भंवर थी...

    -बहुत उम्दा रचा है आपने!! वाह!

    जवाब देंहटाएं
  8. एक दुटे दिल की भाव पुर्ण आवाज, एक खामोश दिल की छट पटाहट
    यह आंदाज बहुत अच्छा लगा.धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

टोकरी में जो भी होता है...उसे उडेलता रहता हूँ..मगर उसे यहाँ उडेलने के बाद उम्मीद रहती है कि....आपकी अनमोल टिप्पणियों से उसे भर ही लूँगा...मेरी उम्मीद ठीक है न.....

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